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पूर्वजन्म का सिद्धांत

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पूर्वजन्म का सिद्धांत

पिछले जन्म में आप क्या थे? क्या वाकई आप जानना चाहते हैं? क्या आप पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते हैं? पिछला या पुनर्जन्म होता है या नहीं? यह सवाल प्रत्येक व्यक्ति के मन में होगा। हो सकता है कि कुछ लोग मानकर ही बैठ गए हैं कि हां होता है और कुछ लोग यह मानते हैं कि नहीं होता है।दोनों ही तरह के लोग यह कभी जानने का प्रयास नहीं करेंगे कि पुनर्जन्म होता है या नहीं, क्योंकि धर्म ने आपको रेडीमेड उत्तर दे दिए हैं। बचपन सेही मुसलमान को बता दिया जाना है कि पुनर्जन्म नहीं होता है और हिन्दू को बता दिया जाता है कि होता है। अब बस खोज बंद। धर्म ने सब खोज लिया, तुम नाहक ही क्यों परेशान होते हो?

तीन धर्म है –

यहूदी, ईसाईयत, इस्लाम जो पुनर्जन्‍म के सिद्धांत को नहीं मानते। उक्त तीनों धर्मों के समानांतर- हिंदू, जैन और बौद्ध यह तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है। अरब में किसी बच्चे को अपने पिछले जन्म की याद नहीं आती, लेकिन भारत में ऐसे ढेरों किस्से हैं कि फलां-फलां बच्चे को पिछले जन्म का याद आ गया। ऐसा क्यों? विज्ञान इस संबंध में अभी तक खोज कर रहा है। वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है।


पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा गीता में कहा गया है।

हमारा यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, वायु, अग्नि, जल, धरती। यह जिस क्रम में लिखे गए हैं उसी क्रम में इनकी प्राथमिकता है। आकाश अनुमानित तत्व है अर्थात् जिसको आप प्रूव नहीं कर सकते कि यह ‘आकाश’ है। आकाश किसे कहते हैं? आज तक किसी ने आकाश नहीं देखा, उसी तरह जिस तरह की वायु नहीं देखी, लेकिन वायु महसूस होती है इसलिए अनुमानित तत्व नहीं है। आकाश को अनुमानित तत्व कहना गलत है।

खैर। शरीर जब नष्ट होता है तो उसके भीतर का आकाश, आकाश में लीन हो जाता है, वायु भी वायु में समा जाती है। अग्नि में अग्नि और जल में जल समा जाता है। अंत में बच जाती है राख, जो धरती का हिस्सा है। इसके बा‍द में कुछ है जो बच जाता है उसे कहते हैं आत्मा।

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लेकिन इसके बाद भी बहुत कुछ बचता है। एक छठवें तत्व की हम बात करें- हमने कई बार सुना होगा- मन और मस्तिष्क। निश्‍चित ही मस्तिष्क को मन नहीं कहते तब फिर मन क्या है? क्या वह भी शरीर के नष्‍ट होने पर नष्ट हो जाता है? शरीर तो भौतिक जगत का हिस्सा है, लेकिन मन अभौतिक है। यह मन ही आत्मा के साथ आकाशरूप में विद्यमान रहता है।

एक सातवां तत्व भी होता है जो बच जाता है, उसे कहते हैं- बुद्धि। बुद्धि हमारा बोध है। हमने जो भी देखा और भोगा वह बोध ही आकाशरूप में विद्यमान रहता है। इसके बाद एक और अंतिम तत्व होता है जिसे कहते हैं- अहंकार। यह घमंड वाला अहंकार। स्वयं के होने के बोध को ही अंतिम अहंकार कहते हैं। अहंकार से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। गीता में आठ तत्वों की चर्चा की गई है। उक्त आठ तत्वों को विस्तार से जानना है तो वेदों का अंतिम भाग उपनिषद पढ़े, जिसे वेदांत भी कहा जाता है। लगभग 1008 उपनिषद हैं।

योग ने मन, बुद्धि और अहंकार को नाम दिया ‘चित्त’। यह चित्त ही चेतना (आत्मा) का मास्टर चिप है। यह मास्टर पेन ड्राइव है, जिसमें लाखों जन्म का डाटा इकट्ठा होता रहता है। आप इसे कुछ भी अच्छा-सा नाम दे सकते हैं। चित्त की वृत्तियों का निरोध तो किया जा सकता है, किंतु चित्त को समाप्त करना मुश्‍किल है और जो इसे समाप्त कर देता है उसे मोक्ष मिल जाता है।

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