Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

बृहस्पति

ज्योतिष

महर्षि अंगीरा का विवाह कर्दम ऋषि की पुत्री श्रद्धा से हुआ था. उन्ही के गर्भ से गुरु का जन्म हुआ था. गुरु की धर्मपत्नी का नाम तारा था. गुरु अपने उत्कृष्ट ज्ञान से देवताओं की रक्षा करते है. गुरु भगवान शंकर की तपस्या करके देवों का प्राचार्य पद प्राप्त किए. कुलगुरु के पद पर अभिषेकित किए जाने के कारण इन्हें गुरुदेव कहा जाता है.

वृहस्पति ग्रह जीवन की रक्षा करने वाला और सांसारिक सुखों को बढ़ाने वाला ग्रह है . कुंडली में गुरु बलवान व शुभ स्थानों में हो तो जीवन में उन्नति का मार्ग आसान हो जाता है. कम ही परिश्रम से अनुकूल सफलता की प्राप्ति होती है.

आशय यह है कि गुरु के बलवान होने से बलारिष्ट दोष एवं अन्य दुर्भाग्य योग अपना प्रभाव खो देते है.

  • राशि नक्षत्र
  • कर्क पुष्य
  • सिंह मघा
  • वृश्चिक अनुराधा
  • धनु
  • कुम्भ शतभिषा
  • मीन रेवती

– में गुरु बली होते है.

विभिन्न राशियों में वृहस्पति के जो जो अशुभ प्रभाव होने संभव है उन सबका प्रस्तुतिकरण :

मेष राशि में स्थित गुरु :- मेष राशि में गुरु होने से गुप्त शत्रुओं के द्वारा परेशानी होती है. अत्यधिक धन व्यय होता देख मित्र भी शत्रु हो जाते है. गुरु का सम्बन्ध यदि मंगल, बुध या शनि से हो जाय तो धन संचय में बाधा के योग बनते है. तथा व्यवहार में इमान की कमी भी , कोई न कोई घाव चोट या त्वचा की विकृति परेशान कर सकती है. मित्रों तथा संतान के कारण चिंता रहती है.

वृष राशि में स्थित गुरु :- वृष राशि में गुरु होने से जीवनसाथी के कारण मन में उदासी रहती है. दीर्घकालिन रोग के कारण शारीरिक कष्ट होते है. शनि का सम्बन्ध होने से विवाह में बाधा तथा लोकप्रियता में कुछ कमी होती है. गुरु वृष राशि में अपने शत्रु की राशि में होने से धर्म एवं वैभव संपन्नता में अंतर्द्वंद चलता रहता है. फलस्वरूप ऐसे जातक धन सम्पदा को जनकल्याण व परोपकार के कामों में लगाकर प्रसन्नता का अनुभव करता है.

मिथुन-कन्या राशि में स्थित गुरु :- इन राशियों में स्थित गुरु के कारण अपने कार्य में गहरी रूचि के कारण कभी साथियों सहयोगियों के साथ कदम ताल नहीं बन पाता. ऐसे जातक बुद्धिमान, निष्कपट सरल ह्रदय परोपकारी कुशल वक्ता व मिलनसार होता है. साझेदारो से परेशानी होती है. किसी भी विषय पर एकाग्रता से ग्रहण अध्ययन करने में असमर्थ होता है. परन्तु विभिन्न सूचनाओं का अपार भंडार होने से इसकी क्षतिपुर्ती हो जाया करती है.

कर्क राशि में स्थित गुरु :- गुरु कर्क में उच्च होता है अगर नवांश में नीच राशि में हो जाय साथ ही साथ शनि, मंगल सूर्य से दृष्ट हो तो भयंकर रोग हो जाता है तथा शारीरिक कष्ट की संभावना बढ़ जाती है. किसी भी बात को समझने की उत्कृष्ट योग्यता होती है. दूसरों की सेवा सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे. स्नेहपूर्ण सहयोग व आत्मीयता पूर्ण व्यवहार आपकी विशिष्ट पहचान होगी. ऐसे जातक दूसरों के कष्ट मिटाकर सुख की वृद्धि करता है.

सिंहस्थ गुरु :- सिंह राशि स्थित गुरु होने से अधिक क्रोध स्वभाव व वाणी में प्रखरता दुखदायक हो जाती है. मंगल, शनि की दृष्टि होने से सामने तो हिम्मत नहीं जुटा पाते लोग विरोध करने का फलस्वरूप गुप्त शत्रु पैदा हो जाते है. ऐसे लोग महत्वाकांक्षी तथा बड़प्पन पाने के इच्छुक हो जाते है.

तुला स्थित गुरु :- तुला राशि स्थित गुरु होने से मित्र सगे संबंधी पीठ पीछे हँसी उड़ने वाले होते है. अतः दूसरों के सलाह पर आँख मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहिए. दाम्पत्य जीवन कुछ कठिनाइयों के साथ व्यतित होते है. ऐसे लोग दूसरों से अपनी बात मनवाने में सिद्धस्त होते है. ऐसे जातक अपने काबिलियत से मिट्टी तक को बेच देते है. न्यायालय संबंधी कार्यों में विशेष रूचि के संकेत मिलते है.

वृश्चिक स्थित गुरु :- वृश्चिक राशि में गुरु होने से दिखावे में आकर सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में खर्च करने की आदत हो जाती है. अपना भेद छुपाये रखता है. अवसर पहचान कर काम करने की आदत विशेष रूप से होती है.

धनु-मीन – दार्शनिक दृष्टिकोण व बुध्हि परक कार्यों में विशेष रूचि होती है. भाषा एवं वाणी पर पूर्ण अधिकार होता है. जुआ सट्टा तथा जोखिमपूर्ण कार्यों में विशेष रूचि होती है. पापग्रह की दृष्टि युति होने से वाद विवाद तथा कलम की लड़ाई में शौकिन होते है.

मकर राशि स्थित गुरु – गुरु जब अपनी नीच राशि मकर में होता है तो बहुत से गुणों में कटौती कर दिया करता है. व्यक्ति धैर्य की कमी बुध्हि के प्रयोग में कंजूसी अच्छे बुरे की समझ कम होना मेहनत करने पर भी सफलता व सुख की कमी, अपने बन्धु बांधव के सुख में कमी. मकर राशि के स्वामी शनि गुरु का ज्ञान पाकर उत्कृष्ट कार्यकर्त्ता बन जाता है. गुरु के पीड़ित होने से आत्मसम्मान की चिंता, क्षोभ, स्वभाव में उध्ग्निता तथा फूहड़पन दिया करता है।

मकर स्थित गुरु अपनी एक राशि धनु से द्वितीय तथा मीन से एकादश होने से वाणी द्वारा धन लाभ की प्राप्ति कराता है. परन्तु इसके लिए अधिक श्रम की आवश्यकता पड़ेगी. घरेलु जीवन विषमताओं से भरा होता है. संतान हानि तथा संतान से वियोग संभव है।

कुम्भ राशि स्तिथ गुरु – ऐसे व्यक्ति दार्शनिक मानवता व परोपकार के आदर्शों से प्रेरित उदासीन व्यक्ति होता है. लालच की अधिकता वचन में कमजोरी आदि फल प्राप्ति होते है। प्राय: अपनी क्षमता का अनेक महत्वहीन कार्यों में अपव्यय करने से लक्ष्य से भटक कर वह सामान्य सा जीवन जीता है।

सावधान रहे – रत्न और रुद्राक्ष कभी भी लैब सर्टिफिकेट के साथ ही खरीदना चाहिए। आज मार्केट में कई लोग नकली रत्न और रुद्राक्ष बेच रहे है, इन लोगो से सावधान रहे। रत्न और रुद्राक्ष कभी भी प्रतिष्ठित जगह से ही ख़रीदे। 100% नेचुरल – लैब सर्टिफाइड रत्न और रुद्राक्ष ख़रीदे, अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें, नवग्रह के रत्न, रुद्राक्ष, रत्न की जानकारी और कई अन्य जानकारी के लिए। आप हमसे Facebook और Instagram पर भी जुड़ सकते है

नवग्रह के नग, नेचरल रुद्राक्ष की जानकारी के लिए आप हमारी साइट Gems For Everyone पर जा सकते हैं। सभी प्रकार के नवग्रह के नग – हिरा, माणिक, पन्ना, पुखराज, नीलम, मोती, लहसुनिया, गोमेद मिलते है। 1 से 14 मुखी नेचरल रुद्राक्ष मिलते है। सभी प्रकार के नवग्रह के नग और रुद्राक्ष बाजार से आधी दरों पर उपलब्ध है। सभी प्रकार के रत्न और रुद्राक्ष सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाते हैं। रत्न और रुद्राक्ष की जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00