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विपश्यना ध्यान विधि Vipassana Meditation Technique

नवग्रह

ज्योतिषहिन्दी.इन के नियमित पाठकों का ह्रदय से अभिनन्दन । आज हम एक अत्यंत महत्वपूर्ण श्वास विधि को लेकर आपके समक्ष उपस्थित हुए हैं जिसके प्रयोग से न जाने कितने साधकों का उद्धार हुआ और वो ध्यान को उपलब्ध हो सके । देश विदेशों में प्रचलित अनेक ध्यान विधिओं में इस विधि का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । आज की हमारी चर्चा का विषय विपश्यना है । यूँ तो इस विधि से सम्वबन्धित बहुत सी जानकारी नेट पर उपलब्ध है परन्तु मेरी व्यक्तिगत राय में आचार्य रजनीश ( ओशो ) द्वारा विपश्यना ध्यान विधि पर दिए गए प्रवचन बेजोड़ हैं । ओशो ने विज्ञानं भैरव तंत्र में वर्णित एक सौ बारह ध्यान प्रयोगों पर विस्तार से चर्चा की है और उनमे भी विपश्यना को सर्वाधिक मूलयवान बताया है।


विपश्यना ध्यान विधि Vipassana Meditation Technique :

मनुष्य जाती के इतिहास में जितनी भी ध्यान विधियां मौजूद हैं उन सबसे अधिक महत्वपूर्ण ध्यान विधि है विपश्यना । इसका अर्थ होता है लौटकर देखना । केवल देखना । ध्यान देने योग्य है की कुछ करना नहीं है, किसी भी प्रकार सांसों को व्यवस्थित नहीं करना है ! बस देखना है । ध्यान रखें सांसों को किसी भी प्रकार बदलना नहीं है, यह जैसी भी चलती है चलने देना है । श्वास उथली है तो उथली सही है, उबड़ खाबड़ है तो भी सही है, गहरी आती है तो भी सही है आपको कुछ नहीं करना है ! बस देखना है । ध्यान रखें बुद्ध ने कहा है अगर तुमने किसी तरह से प्रयास करके या चेष्टा से श्वास को नियोजित किया तो तुम्हे कभी भी महत फल प्राप्त नहीं हो सकते । यदि आप अपनी शारीरिक क्रियाओं पर ध्यान देते हैं तो इसे स्थूल विपश्यना कहा जाता है । यदि मन की क्रियायों पर ध्यान देते हैं तो इसे सूक्ष्म विपश्यना कहा गया है । महात्मा बुद्ध मध्य मार्ग का अनुसरण करते हैं, उन्होंने श्वाश पर ध्यान ले जाने को महत्व दिया है । श्वास भीतर आती है, क्षण भर के लिए रूकती है और बाहर जाती है फिर क्षण भर के लिए रूकती है । इस आती जाती श्वास को शांत बैठकर देखते रहना ही विपश्यना है ।

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श्वास को देखने से क्या होता है Results of Watching Breath :

मन में सहज ही प्रश्न उठता है की क्या होता है श्वास को देखे से । यहाँ आपसे साँझा कर दें की ध्यान की परम गहराइयों को उपलब्ध ज्ञानीजनों ने कहा है की शांत बैठकर, मौन बैठकर आती जाती श्वास को देखने से अपूर्व होता है । चित्त के सारे रोग तिरोहित हो जाते हैं, साधक को स्पष्ट बोध हो जाता है की न तो वह शरीर ही है और न ही मन । साधक अपने को शरीर व् मन से से भिन्न देख लेता है । उसे भली प्रकार भान हो जाता है की वह न तो शरीर है न ही मन है और न ही श्वास है । पहचान तो लेता है की मैं कौन हूँ लेकिन कह नहीं पाता है । भीतर ही भीतर गुनगुनाता है, मस्ती में डोलता है, अपुर्व आनंद से भर जाता है । दर्शन ही तो सत्य है ।

विपश्यना ध्यान विधि का सही समय Vipassana Meditation Timing :

विपश्यना एक ऐसा ध्यान प्रयोग है जिसके लिए किसी विशेष व्यवस्था की आवश्यकता नहीं है । इसे कभी भी कहीं पर भी किया जा सकता है । आप ऑफिस में हों या बस में अथवा ट्रैन या प्लेन में इस विधि का प्रयोग कहीं भी किया जा सकता है । किसी विशेष आसान की आवश्यकता नहीं है । यदि यह विधि आपके लिए कारगर साबित होती है तो आपकी सजगता बढ़ जाएगी और आपको नींद आने में बाधा हो सकती है । इसलिए किसी योग्य साधक से भली प्रकार समझकर इस विधि का प्रयोग करें । प्रातः काल का समय विपश्यना के लिए उपुक्त कहा गया है । दिन के बारह बजे से पूर्व इस विधि का प्रयोग किया जाये तो बेहतर रहता है ।

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