भारत भूमि को त्योहारों एवं उत्सवों की धरती कहा जाता है। यहाँ हमेशा किसी न किसी धर्म, संप्रदाय एवं समूह के लोगों द्वारा कोई न कोई उत्सव या त्योहार मनाया जाता है।
यह भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ मनाये जाने वाले त्यौहार या उत्सव किसी जाति या समूह तक ही सीमित नहीं होते, बल्कि देश में हर कोई किसी न किसी तरह से उस उत्सव से जुड़ा होता है।
ऐसा ही हिन्दू धर्म के विश्वासियों द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है, दीपावली (Deewali ) जिसे भारत की पहचान के रूप में समस्त संसार में जाना जाता है।
दिवाली का उत्सव पांच दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत धनतेरस (Dhanteras) के साथ होती है। इस दिन सोना, चांदी एवं बर्तनों की खरीद को शुभ माना जाता है।
भारत के अलावा नेपाल में भी दिवाली का उत्सव समान उत्साह से मनाया जाता है। नेपाल में इसे तिहारा के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
धनतेरस के साथ ही लोग अपने घरों पर बिजली से रौशनी एवं दीपक जलाने की शुरुआत के साथ ही बच्चे पटाखे चलना शुरू कर देते है।
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Dhanteras Meaning | धनतेरस का अर्थ एवं महत्व
धनतेरस दो शब्दों को जोड़कर बना है। जिसमे धन का अर्थ है पैसा या सम्पदा तथा तेरस यानि तेरहवा दिन। यह दोनों शब्द मिलकर धनतेरस बनते है।
यदि हम इसके संक्षेपित अर्थ को समझें तो कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की तेरहवीं तिथि को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
धनतेरस को प्राचीन आयुर्वेद ज्ञाता धन्वंतरि ऋषि से जोड़कर भी देखा जाता है, जिन्होंने मानव कल्याण के लिए आयुर्वेद पद्धति की रचना एवं स्थापना की जिससे लोगों को रोगमुक्त किया जा सके।
कहा जाता है, कि यदि कोई भी इस दिन अपने घर सोना, चांदी या अन्य अमूल्य धातु या रत्नो के आभूषण लेकर आते है तो उनके घर हमेशा धन संपत्ति का वास रहता है।
Mythology | धनतेरस से जुड़ी कथा
जैसे कि हर भारतीय त्यौहार के पीछे उससे जुड़ी कोई न कोई कथा या कहानी होती है, वैसे ही धनतेरस से जुड़ी हुई भी बहुत सारी कहानियां भी हैं।
धनतेरस की सबसे प्रसिद्ध कहानी हिमालय राज हिम से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार शादी के चौथे दिन एक ज्योतिषी ने राजा हिम को लेकर भविष्यवाणी की कि उनकी मृत्यु जल्द ही हो जाएगी।
ज्योतिषी की भविष्यवाणी सुनकर राजा हिम की पत्नी ने अपने सभी कीमती आभूषण उतार कर अपने शयनकक्ष के दरवाज़े पर रख दिए तथा शाम को वहां एक दीपक प्रज्जवलित किया।
जब शाम होने पर मृत्यु के देवता यम एक सर्प के रूप में राजा हिम को मारने आये तो कक्ष के दरवाज़े पर रखे आभूषणो की चमक से उसकी आंखे चुंधिया गयी और वह अँधा हो गया।
सर्प रुपी यम रानी द्वारा जमा किय आभूषणों के ऊपर चढ़ गए और रात भर रानी द्वारा सुनाई गयी कहानियों को सुनते रहे।
यमराज को रात पूरी होने पर राजा हिम के प्राण लिए बिना ही यमलोक वापस लौटना पड़ा। तभी से लोग धनतेरस के दिन स्वर्ण आभूषण जैसे चमकदार धातुएं अपने घर लाने लगे।
एक अन्य कथा भी है, जो धन्वंतरि से जुड़ी हुई है, जिनको हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के एक अवतार के रूप में मान्यता प्राप्त है।
हिन्दू धर्म ग्रंथों में इन्हे चिकित्सा पद्धति में आयुर्वेद का जनक कहा जाता है। उनके द्वारा मानव कल्याण एवं आरोग्य जीवन के लिए आयुर्वेद की रचना की गयी।
मान्यता के अनुसार इस दिन ही समुद्र मंथन के दौरान ही उनका धरती पर अवतरण हुआ, तभी से इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा।
इससे जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार एक बार अपनी शक्ति एवं सत्ता के नशे में इंद्र देव ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया।
तब क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि आपके अभिमान का नशा अत्यधिक बढ़ गया है, इसलिए धन एवं सम्पन्नता की देवी लक्ष्मी आपका साथ छोड़ दें।
दुर्वासा ऋषि के श्राप के फलस्वरूप देवी लक्ष्मी इन्द्र देव से रुष्ट हो गयी, जिसके फलस्वरूप इंद्र देव की शक्तियां भी क्षीण हो गयी और स्वर्ग पर दानवों का अधिकार हो गया।
कुछ वर्ष उपरांत इंद्र देव भगवान विष्णु की शरण में गए एवं उनसे स्वर्ग की पुनः प्राप्ति का मार्ग सुझाने तथा अपनी शक्तियों की वापसी का रास्ता पूछा। भगवान विष्णु ने उनको समुद्र मंथन का सुझाव दिया।
समुद्र मंथन के फलस्वरूप अमृत प्राप्त होता जिसे पीकर देवता अमर हो जाते तथा दानवों का विनाश कर पाते। इसके लिए मंदार पर्वत को मथनी के रूप में एवं स्वयं भगवान् विष्णु को रस्सी का रूप लेना पड़ा।
समुन्द्र मंथन के दौरान एक सुन्दर स्त्री कमल पुष्प पर कलश में अमृत लिए देवी लक्ष्मी के रूप में अवतरित हुई। उनके गले में कमल की माला एवं एक हाथ में कमल का पुष्प था।
मान्यता अनुसार देवी लक्ष्मी के इस अवतरण दिवस को धनतेरस के रूप में उनकी पूजा करके मनाया जाने लगा ताकि सभी पर उनकी कृपा बनी रह सके।
गणेश उत्सव (ganesh chaturthi), दुर्गा पूजा (Durga Puja), नवरात्री (navratri) और गरबा (garba) की भी चमक धमक देखने लायक होती है। अधिक जानने के लिए उपरोक्त लिंक पर क्लीक करे एवम सम्पूर्ण विवरण प्राप्त करे।
Dhanteras Pooja | धनतेरस पूजन विधि एवं सामग्री
जब हम किसी भी त्यौहार को किसी देवता विशेष को प्रसन्न करने के लिए मनाते हैं, तो हमारे लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि पूजा पूरे विधि विधान से की जाये।
वैसे तो हिन्दू मान्यता में सभी देवताओं की पूजन विधि लगभग समान ही होती है, किन्तु कुछ विशेष अवसरों पर पूजन विधि एवं सामग्री में अंतर होता है।
दिवाली का त्यौहार विशेष रूप से धन-संपत्ति एवमं सुख-समृद्धि से जुड़ा हुआ है। इसी कारण इस पांच दिवसीय उत्सव की शुरुआत धनतेरस की पूजा से होती है।
इस दिन लोग अपने घरों में धन सम्पदा एवं सुख शांति के लिए नए वस्त्र, आभूषण एवं बर्तन लेकर आते है तथा माता लक्ष्मी एवं धन देवता कुबेर को प्रसन्न करते है।
इसी कारण इस दिन की पूजा किस प्रकार से की जाए तथा पूजन सामग्री पूरी हो यह जांचना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
तो चलिए सबसे पहले धनतेरस की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री को जान लेते हैं, ताकि जब आप अपने घर या व्यापारिक स्थल पर पूजन करे, जिससे आपकी पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
धनतेरस पूजा सामग्री
- लकड़ी की चौकी
- लाल या पीला कपडा
- देवी लक्ष्मी एवं गणेश जी की मूर्ति या चित्र
- धन्वंतरि या भगवान कुबेर की मूर्ति या चित्र
- चांदी या सोने का सिक्का जिस पर लक्ष्मी जी एवं गणेश का चित्र हो
- देवी लक्ष्मी के लिए कमल का पुष्प
- भगवान गणेश के लिए फूल एवं दूर्वा घास
- देवताओं के लिए फूल
- भगवान धन्वंतरि के लिए तुलसी के पत्ते
- देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश / भगवान धन्वंतरि या भगवान कुबेर के लिए अलग-अलग तंबूलम।
- तंबूलम में दो पान के पत्ते, सुपारी, फल, एक नारियल, हल्दी, कुमकुम, मिठाई एवं दक्षिणा शामिल हैं।
- गंगाजल
- हल्दी
- रोली
- कलावा
- इत्र
- कुमकुम
- चंदन
- तेल / घी
- दीपक – एक पीतल और एक मिट्टी का
- कपास की बत्ती
- अगरबत्ती
- धूप
- कपूर (कपूर)
- पंचामृत
- लौंग और इलायची
- भोग/नैवेद्य
अपने घर परिवार एवं व्यापार नौकरी में सफलता प्राप्ति तथा धनागम में लगातार वृद्धि के लिए हिन्दू मान्यता अनुसार धनतेरस की पूजा की जाती है।
भारत के त्योहारों में सबसे रंगोंभरा त्यौहार है। होली जिसमे भारत की रंगबिरंगी छठा देखते ही बनती है। होली उत्सव को अधिक गहराई से जानने के लिए Holi अवश्य पढ़े।
होली के सामान ही पति पत्नी के प्रेम के त्यौहार करवा चौथ को भी जानने के लिये प्यार भरा करवा चौथ (karva chauth) पढ़े।
पूजन विधि
माता लक्ष्मी एवं धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करने के लिए यह पूजा पूरे विधि विधान के साथ करने पर आपके जीवन में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं रहती। तो चलिए सही पूजन विधि को जानते हैं।
धनतेरस की पूजा के लिए सबसे सही जगह आपके घर का मंदिर या पूजा स्थल रहता है। आप अपने पूजास्थल में एक लकड़ी की चौकी लगाए तथा उस पर लाल या पीला वस्त्र डालें।
चौकी की दाहिनी तरफ कुछ चावल रखिये तथा एक घी या तेल का दीपक उसके ऊपर स्थापित कीजिए। तत्पश्चात आँखे बंद कर कुछ देर अपने आराध्य का स्मरण करते हुए ध्यान अवस्था में जाइये।
चौकी पर ही कुछ चावल और बिछाए तथा उस पर माता लक्ष्मी एवं गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें। ध्यान रखिए जब भी आप किसी भी भगवान की मूर्ति स्थापित करें तो उसके नीचे चावल का आसान अवश्य लगाएं।
पूजन की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से करे। उनको गंगा जल से शुद्ध करें पुष्प चढ़ाएं तथा उनका आव्हान निर्विघ्न पूजन संपन्न करने के लिए करे।
यदि आपके पास भगवान धन्वंतरि एवं भगवान कुबेर की मूर्तियाँ हैं, तो आप उन्हें कुछ चावल डालकर चौकी पर भी रख सकते हैं।
यदि आपके पास भगवान कुबेर या भगवान धन्वंतरि की मूर्तियाँ नहीं हैं, तो आप दो पूरी सुपारी का उपयोग इनके स्वरूप में पूजा के लिए कर सकते हैं।
आप सुपारी को पूरी तरह से कलावा से ढक दें। फिर आप उन्हें इन देवताओं की मूर्तियों के रूप में चौकी पर रख सकते हैं।
माता लक्ष्मी,गणेश जी, धन्वंतरि एवं कुबेर भगवान का उनसे संबंधित मंत्रों के उच्चारण के द्वारा आव्हान करें ताकि आपको पूजा का सही लाभ मिल सके।
तत्पश्चात निम्न विधि करें –
- पद्य – भगवान के चरणों में एक या दो बूंद पानी चढ़ाएं।
- अर्घ्य – भगवान को एक या दो बूंद जल चढ़ाएं।
- आचमन- भगवान को अर्पित कर अपनी हथेली से जल पिएं।
यदि आप भगवान का अभिषेक भी करना चाहते हैं, तो धीरे-धीरे प्रत्येक देवता की मूर्तियों को एक के बाद एक प्लेट पर रखें एवं निम्नलिखित प्रक्रिया को दोहराएं।
स्नान
स्नान के लिए भगवान को जल अर्पित करें। अगर मूर्तियां धातु की हों तो अभिषेक करने के लिए पानी, दूध, नारियल पानी, गंगाजल, शहद, दही आदि का उपयोग कर सकते हैं।
यदि आप अभिषेक करते हैं, तो अंत में प्रत्येक मूर्ति पर धीरे से पानी डालें और उन्हें एक साफ एवं सूखे कपड़े से पोंछ लें। अभिषेक करने के बाद, आपको मूर्तियों को वापस अपनी-अपनी जगहों पर स्थापित करना होगा।
वस्त्र
स्नान के बाद आपको भगवान को वस्त्र धारण करवाना होते हैं। इसके लिए या तो आप बने हुए वस्त्र का प्रयोग कीजिये या कलावा को भी भगवान को वस्त्र के रूप में अर्पित कर सकते हैं।
यज्ञोपवीत
वस्त्र धारण करवाने के बाद भगवान गणेश, भगवान धन्वंतरि एवं भगवान कुबेर को पवित्र जनेऊ तथा अक्षत अर्पित करें।
अक्षत
यज्ञोपवीत संस्कार के पश्चात् भगवान् को अक्षत समर्पित कीजिये। इसके लिए आप हल्दी, कुमकुम, रोली और अक्षत अर्पित करें।
गंध
अक्षत के बाद देवता को चंदन इत्र जैसी प्राकृतिक सुगंध वाली वस्तु अर्पित करें।
पुष्प
पूजन में सबसे प्रमुख देवता को पुष्प अर्पित करना होता है। प्रत्येक देवी देवता का अपना पसंदीदा पुष्प उल्लेखित है। देवी लक्ष्मी को कमल, धन्वंतरि को तुलसी तथा कुबेर को कमल की पत्तियां अर्पित करें।
देवी लक्ष्मी और अन्य देवताओं को कमल या कोई अन्य फूल चढ़ाएं। भगवान धन्वंतरि (जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है) को तुलसी अर्पित करें।
धूप
पुष्प अर्पण के पश्चात आप भगवान को धूप एवं सुगंधित अगरबत्ती अर्पित करें।
दीप
धूप अर्पण के बाद आप घी या तेल का दीपक भगवान को अर्पित करें।
नैवेद्य
दीप प्रवज्जलित करने के बाद भगवान को मिष्ठान का नैवेध या भोग अर्पित करें।
प्रदक्षिणा या परिक्रमा
भगवान् की चौकी के सामने खड़े होकर अपनी दाहिनी ओर से घुमते हुए भगवन की परिक्रमा पूरी करें।
आरती
परिक्रमा के बाद सभी देवताओं की विधिवत आरती कीजिये।
पुष्पांजलि
आरती की समाप्ति के बाद सभी लोग बारी-बारी से भगवान को पुष्पांजलि अर्पित करें। साथ ही अपने मन में ईश्वर से आपके जीवन में सभी प्रकार से सुख,शांति एवं सम्पन्नता की कामना करे।
यदि आप पूरे मन से धनतेरस पर सभी आराध्यों की विधि-विधान से पूजा अर्चना करेंगे तो आपके जीवन में हमेशा समृद्धि बनी रहेगी।
विश्वास करिये दिवाली के जगमगाते दीपों की रौशनी से आपका घर आंगन भी जगमगाने लगेगा। पूर्वजो की आत्मा की प्रसन्नता के लिए भारत में मनाये जाने वाले पर्व को जानने के लिये पितृ पक्ष (Pitru Paksha) पर जाये।
भारत में कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) के दिन भगवान् कृष्ण के भक्ति में डूब कर दही हांड़ी का उत्सव मनाता है।
भादो माह में ही मनाये जाने वाले भारत के एक और भाई बहन के प्यार में डूबे प्रसिद्द त्यौहार रक्षा बंधन (Raksha Bandhan ) को भी पढ़े।
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