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Deewali Celebration | भारत का दिवाली

Culture, Festival, India

भारतीय त्योहारों में सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव दिवाली (Deewali Celebration) है। कहने के लिए यह त्यौहार हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों का त्यौहार कहलाता है, किन्तु असलियत में पूरा भारत इस उत्सव को मनाता है। 

दिवाली को भारत में बुराई पर अच्छे की विजय के उत्सव के रूप में अत्यंत उत्साह के साथ सभी धर्म एवं जातियों के लोग मनाते हैं। 

दिवाली के दौरान स्वादिष्ट मिठाइयों का आनंद लेकर और दीये जलाकर लोग भगवान राम की अयोध्या वापसी का जश्न मनाते है। यह त्योहार भारत में सदियों से मनाया जाता रहा है।

Deewali Meaning | दीवाली का अर्थ 

दिवाली, या दीपावली का त्योहार सबसे बड़े भारतीय त्योहारों में से एक है तथा भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भी एक प्रमुख उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

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“दिवाली ” संस्कृत के शब्द “दीपावली” का एक रूपांतरण है जिसका अर्थ है “दीपों की एक सतत रेखा”  जिसमें  ‘दीप’ का अर्थ है “प्रकाश”, तथा  ‘अवली’ का अर्थ है “एक सतत रेखा”।

भारत में हिंदू एवं सिख समान रूप से इसे जीवन का उत्सव मानते हैं तथा  इस अवसर का उपयोग पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने के लिए करते हैं।

हिंदुओं मान्यता में विश्वास करने वालों के लिए यह त्योहार न केवल आनंद मनाने का समय है, बल्कि भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी जैसे हिंदू धर्म में पवित्र माने जाने वाले देवताओं की पूजा करने का भी समय होता है।

गणेश उत्सव (ganesh chaturthi), दुर्गा पूजा (Durga Puja), नवरात्री (navratri) और गरबा (garba) की भी चमक धमक देखने लायक होती है। अधिक जानने के लिए उपरोक्त लिंक पर क्लीक करे एवम सम्पूर्ण विवरण प्राप्त करे।

भारत के त्योहारों में सबसे रंगोंभरा त्यौहार है। होली जिसमे भारत की रंगबिरंगी छठा देखते ही बनती है। होली उत्सव को अधिक गहराई से जानने के लिए Holi अवश्य पढ़े।

होली के सामान ही पति पत्नी के प्रेम के त्यौहार करवा चौथ को भी जानने के लिये प्यार भरा करवा चौथ (karva chauth) पढ़े।

The Reason Behind Deewali’s Calibration | दिवाली मनाने का उद्देश्य

किसी भी त्यौहार को मनाने की शुरुआत के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। वैसे ही भारत में दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे भी कुछ कारण एवं कहानियां जुड़ी है।  

The Reason Behind Deewali's Calibration

The return of Lord Rama | राम की अयोध्या वापसी

हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों द्वारा रौशनी का त्यौहार दीवाली मनाने का सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण कारण रामायण में उल्लेखित भगवान राम की लंका नरेश रावण पर विजय प्राप्ति उपरांत अयोध्या वापसी है। 

रामायण के अनुसार  राक्षस राज लंकापति रावण द्वारा माता सीता का अपहरण करने के उपरांत वह उनको लंका ले गया तथा उनको वाहन अशोक वाटिका में बंधक बनाकर रख लिया। 

जब भगवान् राम को इस विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने वानर सेना के सहायता से लंका पर चढ़ाई कर दी, तथा रावण का उसके भाई कुम्भकरण तथा मेघनाद के साथ वध किया। 

उसके बाद राम जी भ्राता लक्ष्मण एवं माता सीता से साथ अपने 14 वर्ष के वनवास उपरांत अयोध्या वापस लोटे। इस ख़ुशी में सभी अयोध्या वासियों द्वारा सम्पूर्ण नगर को दीपों तथा फूलों से सजाकर उनका स्वागत किया। 

मान्यता है,कि तभी से भगवान राम के अनुयायी हर वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या को इस दिवस की याद में दीपोत्सव या दिवाली का त्यौहार मनाने लगे। 

समय के साथ-साथ इसने एक हिन्दू परंपरा एवं त्यौहार का रूप ले लिया तथा समस्त भारतवासी जाति एवं धर्म का भेद मिटाकर हर वर्ष दिवाली का त्यौहार मनाने लगे। 

Narkasur vadh | कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध 

पांच दिवसीय दीपोत्सव के दौरान लक्ष्मी पूजन या बड़ी दिवाली से एक दिन पहले नरक चतुर्दर्शी या छोटी दिवाली का उत्सव होता है। 

इस दिवस को मानाने के पीछे भी हिन्दू ग्रंथो में भगवन कृष्ण से जुड़ा एक रोचक अध्याय आपको देखने एवं पढ़ने को मिलेगा। 

कथा अनुसार द्वापर युग में विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण ने वर्तमान असम के पास प्रागज्योतिषपुर के दुष्ट राजा नरकासुर का वध किया, जिसने 16,000 लड़कियों को बंदी बना लिया था। 

उत्तरी भारत में ब्रज क्षेत्र में तथा असम के कुछ हिस्सों, साथ ही दक्षिणी तमिल एवं तेलुगु समुदायों में नरक चतुर्दशी को उस दिन के रूप में शुभ मना जाता है, जिस दिन कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था।

तभी से दिवाली से पहले नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। सभी लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते है तथा अपने पाप कर्मों के लिए ईश्वर से क्षमा याचना करते है। 

Pandu’s reappearance | पांडवों की हस्तिनापुर वापसी 

हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार कौरवों द्वारा जुए पराजित होने पर पांडवों को 12 वर्ष के लिए हस्तिनापुर से निर्वासित कर दिया गया था। 

अपने निर्वासन को समाप्त करने के उपरांत पांडव जब 12 साल बाद हस्तिनापुर वापस लौटे तो समस्त नगर वासियों ने सारे नगर को दीपमालाओं द्वारा सजाया गया। मान्यता अनुसार तभी से दिवाली का त्यौहार शुरू हुआ। 

Goddess Lakshmi | लक्ष्मी जी का जन्म एवं विवाह 

एक अन्य लोकप्रिय हिन्दू कथा के अनुसार, माना जाता है, कि समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था। दिवाली की रात माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने वर के रूप में चुना था। 

तभी से कार्तिक मास की अमावस्या को लोग दीप जलाकर तथा फूलों से अपने मुख्य द्वार को सजाकर इस दिन की खुशियां मनाई जाती है। 

विष्णु द्वारा माता लक्ष्मी जी की रक्षा

ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने अपने पांचवें वामन अवतार में देवी लक्ष्मी को राजा बलि के कारागार से छुड़ाया था। 

इस दिन भगवान विष्णु के आदेश पर राजा बलि को पाताल लोक पर शासन करने के लिए भेज दिया गया था। तभी से इस दिन को दीपोत्सव के रूप में मनाया जाता है। 

Bandi Chhor Divas | बंदी छोर दिवस

सिख धर्म में दिवाली का संबंध एक ऐतिहासिक घटना से है। छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद, 52 अन्य हिंदू राजाओं के साथ, दीवाली के दिन मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा कैद से रिहा किया गया था।

तभी से सिख धर्म में इस दिवस को अत्यंत उत्साह से मनाया जाने लगा। सभी सिख धर्म के अनुयायी अपने गुरु की विजय को दीपों तथा पुष्पों से अपने घरों तथा व्यावसायिक स्थान को सजाते हैं। 

Lord Mahavir Nirvana | महावीर निर्वाण दिवस

जैन धर्म  के चौबीसवें और अंतिम  तीर्थंकर महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। कार्तिक मास की चतुर्दशी को भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।

महर्षि दयानन्द का निर्वाण दिवस 

कार्तिक मास की अमावस्या के दिन आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद जी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। तभी से आर्य समाज के लोग दिवाली को अति उत्साह से मनाते है। 

महाराजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक

पौराणिक हिंदू राजा विक्रमादित्य को दिवाली के दिन पर ताज पहनाया गया था। उन्हें एक आदर्श राजा के रूप में जाना जाता है, उनको उदारता, साहस और विद्वानों के संरक्षण के लिए जाना जाता है।

काली पूजा

शक्तिवाद में विश्वास रखने वाले कलिकुला संप्रदाय के अनुसार, देवी महाकाली के अंतिम अवतार, कमलात्मिका के अवतरण  के दिन को कमलात्मिका जयंती के रूप में मनाया जाता है, यह दीपावली के दिन पड़ता है। 

काली पूजा बंगाल, मिथिला, ओडिशा, असम, सिलहट, चटगांव और महाराष्ट्र के टिटवाला शहर के क्षेत्रों में मनाई जाती है।

वर्ष की फसलों के मौसम का अंत

एक अन्य लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, दिवाली की शुरुआत फसल उत्सव के रूप में हुई हो सकती है, जो सर्दियों से वर्ष की आखिरी फसल को चिह्नित करती है।

नए साल के रूप में दिवाली

पश्चिमी राज्यों जैसे गुजरात और भारत के कुछ उत्तरी हिंदू समुदायों में दिवाली का त्यौहार नए साल की शुरुआत का प्रतीक है।

How to celebrate Deewali | दिवाली कैसे मनाएं 

दिवाली रोशनी का त्योहार है, बुराई पर अच्छाई की जीत एवं जीवन की नई शुरुआत का सम्मान करने वाला 5 दिवसीय उत्सव।

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दिवाली के त्यौहार का मतलब है, अपने घर को रोशनी एवं रंगों में सजाना, अपने परिवार और दोस्तों को दिवाली कार्ड देना, अपने प्रियजनों के साथ समय बिताना तथा उनके साथ में स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेना।

इसके अलावा कुछ विशेष काम होते है, जिनकी शुरुआत के साथ ही सबको पता लग जाता है, कि दीपावली नज़दीक ही है। 

घर की साफ़- सफाई 

दिवाली से कई दिन पहले से सभी लोग अपने घरों में वार्षिक साफ-सफाई की शुरुआत कर देते हैं। वह घर के अंदर का पुराना सामान कबाड़ी को बेच देते हैं। 

घरों की रंगाई,पुताई का काम शुरू हो जाता है। इसके साथ ही यदि किसी को अपने घर की टूट-फूट का सुधार या पुनर्निर्माण करना होता है तो वह दिवाली पूर्व ही इन सब कामें की समाप्त कर लेता है। 

दिवाली से पहले ही लोग अपने घरों को सुन्दर दिखाने एवं सजाने के लिए साफ़ सफाई शुरू कर दिवाली के पांच दिवसीय उत्सव की तैयारी कर देते हैं। 

नया सजावटी सामान खरीदना 

दिवाली पर अधिकतर लोग अपने घरों में नया फर्नीचर,नए परदे,चादर इत्यादि लाते हैं, जिसकी तैयारी वह दिवाली से कई दिन पूर्व ही शुरू कर देते हैं। 

लक्ष्मी चरण स्थापित करना 

दिवाली के पांच दिवसीय उत्सव की शुरुआत लोग अपने घर के मुख्य द्वार पर माता लक्ष्मी के चरण स्थापित करके करते हैं। 

इसके लिए कुछ लोग रंगोली से इसको बनाते हैं, वहीँ कुछ लोग स्टीकर पादुका को भी लगाते हैं। लाल रंग की लक्ष्मी पादुका घर के मुख्य द्वार पर शुभता का प्रतीक होती हैं। 

नवीन वस्त्र, आभूषण की खरीदारी 

दिवाली से पहले लोग अपने बच्चों एवं परिवार के अन्य सदस्यों के लिए नवीन वस्त्र एवं आभूषण की खरीदारी शुरू कर देते हैं, विशेष रूप से धनतेरस के दिन आभूषण तथा बर्तन की खरीदारी करते हैं। 

रंगोली सजाना 

दिवाली पर सभी लोग अपने घर के आंगन,मुख्य द्वार एवं मंदिर के सामने सुंदर रंगोली सजाते हैं। बिना रंगोली के दिवाली के उत्सव के विषय में आप सोच भी नहीं सकते। 

दीपक एवं झालर से घर की सजावट 

दिवाली क्योंकि रौशनी का त्यौहार है इसलिए इसकी कल्पना रौशनी के बिना कोई नहीं कर सकता है। इसलिए इस त्यौहार पर कई दिन पहले विशेष रूप से धनतेरस के दिन से लोग अपने घरों को रोशनी से सजाते है। 

इसके लिए वह दीपक, मोमबत्ती एवं बिजली की झालरों का उपयोग करते है। आपको हर तरफ रंगीन रोशनियों से जगमगाते हुए घर एवं दुकाने दिखाई देंगी। 

स्वादिष्ट पकवान एवं मिठाइयां

दिवाली पर सभी घरों में स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं, जिनमें अलग-अलग प्रकार के मिष्ठान, नमकीन इत्यादि शामिल होते हैं। 

दिवाली की रात अधिकतर लोग सर्दियों में आने वाली सब्ज़ियों को बनाने की शुरुआत करते हैं, जैसे मैथी, पालक, मटर इत्यादि।

पटाखे फोड़ना तथा उपहार का आदान-प्रदान 

सभी लोग मिलकर एक दुसरे के साथ विशेष रूप से बच्चे पटाखे फोड़ते हैं तथा बड़े अपने से छोटों को उपहार देते हैं। 

दिवाली पूजन विधि एवं सामग्री 

दिवाली के दिन माता लक्ष्मी एवं गणेश जी की पूजा आराधना करना आपके घर एवं व्यापार में धन सम्पति में वृद्धि के लिए अत्यंत शुभ फलदायी होता है। 

किन्तु इसके लिए आपको पूजन की सही विधि एवं सामग्री के विषय में सही जानकारी होना अत्यंत आवश्यक होता है, तभी आपको सही फल प्राप्त होता है। 

दिवाली पूजन के लिए आपको जिन चीज़ों की आवश्यकता होगी वो निम्न प्रकार हैं – 

  • लकड़ी की चौकी
  • चौकी को ढकने के लिए लाल या पीला कपड़ा
  • देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां/चित्र
  • कुमकुम
  • चंदन
  • हल्दी
  • रोली
  • अक्षत
  • पान और सुपारी
  • साबुत नारियल अपनी भूसी के साथ
  • अगरबत्ती
  • दीपक के लिए घी
  • पीतल का दीपक या मिट्टी का दीपक
  • कपास की बत्ती
  • पंचामृत
  • गंगाजल
  • पुष्प
  • फल
  • कलश
  • जल
  • आम के पत्ते
  • कपूर
  • कलावा 
  • साबुत गेहूं के दाने
  • दूर्वा घास
  • जनेऊ
  • धूप
  • एक छोटी झाड़ू
  • दक्षिणा (नोट और सिक्के)
  • आरती थाली

दिवाली पूजनं के लिए आपको उपरोक्त सभी वस्तुओं को एकत्र करके सभी को एक साथ पूजन के लिए चिन्हित स्थान पर सजा लीना चाहिए ताकि जब आप पूजा करें तो कोई चीज़ कम न पड़े। 

तत्पश्चात पूरे घर को विशेष रूप से पूजास्थल को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध कर लें तथा एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपडा बिछाकर माता लक्ष्मी एवं गणेश जी की मूर्ती स्थापित करें। 

कलश को अनाज के बीच में रखें तथा कलश में पानी भरकर एक सुपारी, गेंदे का फूल, एक सिक्का एवं  कुछ चावल के दाने डाल दें,कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें। 

बीच में देवी लक्ष्मी की मूर्ति तथा  कलश के दाहिनी ओर भगवान गणेश की मूर्ति रखें। एक छोटी थाली लें और चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं, हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें। 

इसके बाद अपने व्यापार/लेखा पुस्तक और अन्य धन/व्यवसाय से संबंधित वस्तुओं को मूर्ति के सामने रखें। अब देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें एवं दीपक जलाएं, इसके साथ ही कलश पर भी तिलक लगाएं। 

अब भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं। इसके बाद पूजा के लिए अपनी हथेली में कुछ फूल रखें। अपनी आंखें बंद करें और दिवाली पूजा मंत्र का पाठ करें। 

हथेली में रखे फूल को भगवान गणेश और लक्ष्मी जी को चढ़ा दें। लक्ष्मी जी की मूर्ति लें और उसे पानी से स्नान कराएं और उसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं। 

इसे फिर से पानी से स्नान कराएं, एक साफ कपड़े से पोछें एवं  वापस रख दें, मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम और चावल डालें।

 माला को देवी के गले में लगाएं, अगरबत्ती जलाएं। नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें। 

देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें। 

थाली में दीपक जलाएं तथा पूजा की घंटी बजाते हुए माता लक्ष्मी की आरती गाकर उनकी आरती सच्चे मन से करें ताकि आपके जीवन में समृद्धि आये। 

सभी लोग आरती लेकर मन में अपनी मनोकामना बोले तत्पश्चात आरती की थाल को पूरे घर में घुमाकर भगवान के चरणों में रख दें। 

विश्वास करिये दिवाली के जगमगाते दीपों की रौशनी से आपका घर आंगन भी जगमगाने लगेगा। पूर्वजो की आत्मा की प्रसन्नता के लिए भारत में मनाये जाने वाले पर्व को जानने के लिये पितृ पक्ष (Pitru Paksha) पर जाये।

भारत में कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) के दिन भगवान् कृष्ण के भक्ति में डूब कर दही हांड़ी का उत्सव मनाता है।

भादो माह में ही मनाये जाने वाले भारत के एक और भाई बहन के प्यार में डूबे प्रसिद्द त्यौहार रक्षा बंधन (Raksha Bandhan ) को भी पढ़े।

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