नरक चतुर्दशी का महत्व | Narak Chaturdashi
इस पोस्ट में जाने नरक चतुर्दशी का महत्व, नरक चतुर्दशी क्या है, नरक चतुर्दशी की कहानी, नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं, भूत चतुर्दशी, काली चौदस का त्यौहार, रूप चतुर्दशी, नरक चतुर्दशी स्टोरी और नरक चतुर्दशी पूजन विधि –
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नर्क चतुर्दशी, नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी नामों से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। दीपावाली से ठीक एक दिन पहले मनाये जाने की वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय दीये जलाए जाते हैं। इस दिन यमराज की पूजा कर अकाल मृत्यु से मुक्ति और बेहतर स्वास्थ्य की कामना की जाती है। इसके अलावा नरक चौदस के दिन प्रात: काल सूर्य उदय से पहले शरीर पर तिल्ली का तेल मलकर और अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियां पानी में डालकर स्नान करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है और मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
नरक चतुर्दशी क्या है
पौराणिक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है।
नरक चतुर्दशी की कहानी | Narak Chaturdashi Story
वही एक कथा यह भी है की दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में नाप दिया था। राजा बलि जो कि परम दानी थे, उन्होंने यह देखकर अपना समस्त राज्य भगवान वामन को दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा। दैत्यराज बलि ने कहा कि हे प्रभु, त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिनों में हर वर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य में मेरे राज्य में दीपावली मनाए उसके घर में लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके सभी पितर नरक में ना रहें और ना उन्हें यमराज यातना ना दें।
नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं | Narak chaturdashi kyon manae jaati hai
राजा बलि की बात सुनकर भगवान वामन प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन शुरू हुआ।
भूत चतुर्दशी। Bhoot Chaturdashi
पूर्वी भारत मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में इसे भूत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन तंत्र-मंत्र विद्या व ज्योतिष के अनुसार अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन तांत्रिक इत्यादि माँ काली की पूजा (Bhoot Chaturdashi Kali Puja) कर सिद्धि प्राप्त करते है। उनके द्वारा इस दिन भूतो की भी पूजा की जाती हैं तथा उनसे शक्तियां प्राप्त की जाती है। इसलिये इसे भूत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है।
काली चौदस का त्यौहार | Kali Chaudas Meaning In Hindi
काली चौदस त्यौहार का संबंध माँ काली से है। माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों में माँ काली का रूप अत्यंत भयानक व संहारक है जिसका वर्ण एक दम काला है। वे शत्रु, राक्षसों, अधर्मियों व असुरों पर बिल्कुल भी दया नही करती (Kali Chaudas Importance In Hindi) तथा उनका वध करके ही उन्हें संतोष प्राप्त होता है।
इसलिये उन्हें बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में (Kali Chaudas Ki Raat) याद किया जाता है। इस दिन उनकी पूजा करने से संबंध अपने मन से आलस, ईर्ष्या, द्वेष, मोह इत्यादि बुरी भावनाओं को त्यागकर भक्ति भाव अपनाने का होता है। इसलिये इसे काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
रूप चतुर्दशी। Roop Chaturdashi
रूप चतुर्दशी से संबंध मृत्यु के देवता यमराज से है। इस दिन संध्या में यमराज के नाम का दीप भी घर में जलाया जाता है। मान्यता हैं कि इस दिन यमराज के नाम का दीपक जलाने से नरक के भय व अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है व यमराज प्रसन्न होते है। इससे जुड़ी एक प्राचीन कथा भी जुड़ी हुई है।
नरक चतुर्दशी स्टोरी | Narak chaturdashi story in hindi
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह भी है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
नरक चतुर्दशी पूजन विधि | Narak Chaturdashi Puja
- नरक चतुर्दशी के दिन प्रात:काल सूर्य उदय से पहले स्नान करने का महत्व है। इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा (औधषीय पौधा) को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाए।
- नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
- स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।
- इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।
- नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।
- नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
- इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए।