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नरक चतुर्दशी – नरक चतुर्दशी का महत्व, कहानी और पूजा विधि | Narak Chaturdashi – Narak Chaturdashi Ka Mahatva Kahani Aur Puja Vidhi

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नरक चतुर्दशी – Narak Chaturdashi

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi)को छोटी दिवाली या यम चतुर्दर्शी भी कहा जाता है, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी या फिर रूप चतुर्दशी के रूप में मनाते है, इस दिन यमराज की पूजा अर्चना करने और उनके लिए व्रत करने का शास्त्रों में विधान है। माना जाता है कि महाबली श्री राम भक्त हनुमान जी का जन्म इसी तिथि को हुआ था, इसीलिए आज बजरंग बली की भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है।


नरक चतुर्दशी का महत्व –  Significance of Narak Chaturdashi in Hindi

ऐसा बताया जाता है कि इस दिन आलस्य और बुराई को हटाकर जिंदगी में सच्चाई की रोशनी का आगमन होता है। रात को घर के बाहर दिए जलाकर रखने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु की संभावना टल जाती है।

नरक चतुर्दशी स्टोरी – narak chaturdashi story

एक कथा के मुताबिक इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था. भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर को क्रूर कर्म करने से रोका। उन्होंने 16 हजार कन्याओं को उस दुष्ट की कैद से छुड़ाकर अपनी शरण दी और नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया। नरकासुर प्रतीक है – वासनाओं के समूह और अहंकार का। जैसे, श्रीकृष्ण ने उन कन्याओं को अपनी शरण देकर नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया, वैसे ही आप भी अपने चित्त में विद्यमान नरकासुररूपी अहंकार और वासनाओं के समूह को श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दो, ताकि आपका अहं यमपुरी पहुँच जाय और आपकी असंख्य वृत्तियाँ श्री कृष्ण के अधीन हो जायें। ऐसा स्मरण कराता हुआ पर्व है नरक चतुर्दशी।

नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं

इन दिनों में अंधकार में उजाला किया जाता है। हे मनुष्य ! अपने जीवन में चाहे जितना अंधकार दिखता हो, चाहे जितना नरकासुर अर्थात् वासना और अहं का प्रभाव दिखता हो, आप अपने आत्मकृष्ण को पुकारना। श्रीकृष्ण रुक्मिणी को आगेवानी देकर अर्थात् अपनी ब्रह्मविद्या को आगे करके नरकासुर को ठिकाने लगा देंगे। स्त्रियों में कितनी शक्ति है। नरकासुर के साथ केवल श्रीकृष्ण लड़े हों, ऐसी बात नहीं है। श्रीकृष्ण के साथ रुक्मिणी जी भी थीं। सोलह-सोलह हजार कन्याओं को वश में करने वाले श्रीकृष्ण को एक स्त्री (रुक्मणीजी) ने वश में कर लिया। नारी में कितनी अदभुत शक्ति है इसकी याद दिलाते हैं श्रीकृष्ण। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन चतुर्मुखी दीप का दान करने से नरक भय से मुक्ति मिलती है।

नरक चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम

दो विभिन्न परंपरा के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।

1. कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।
2. यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि अरुणोदय अथवा चंद्र उदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा अगर चतुर्दशी तिथि अरुणोदय या चंद्र उदय का स्पर्श नहीं करती है तो भी नरक चतुर्दशी पहले ही दिन मनानी चाहिए।
3. नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले चंद्र उदय या फिर अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग( मालिश) और यम तर्पण करने की परंपरा है।

नरक चतुर्दशी में क्या करें – narak chaturdashi puja

एक चार मुख (चार लौ) वाला दीप जलाकर इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

दत्तो दीपश्चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया।
चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापापनुत्तये।।

नरक चतुर्दशी मंत्र – Narak Chaturdashi Mantra

सितालोष्ठसमायुक्तं संकण्टकदलान्वितम्। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।

नरक चतुर्दशी पूजा विधि – Narak Chaturdashi Puja Vidhi

1. नरक चतुर्दशी के दिन प्रात:काल सूर्य उदय से पहले स्नान करने का महत्व है। इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा (औधषीय पौधा) को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाए।
2. नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
3. स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।
4. इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।
5. नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।
6. नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
7. इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए।

इन 14 मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जल की अंजलि देनी चाहिए

  1. ऊं यमाय नम:
  2. ऊं धर्मराजाय नम:
  3. ऊं मृत्यवे नम:
  4. ऊं अन्तकाय नम:
  5. ऊं वैवस्वताय नम:
  6. ऊं कालाय नम:
  7. ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:
  8. ऊं औदुम्बराय नम:
  9. ऊं दध्राय नम:
  10. ऊं नीलाय नम:
  11. ऊं परमेष्ठिने नम:
  12. ऊं वृकोदराय नम:
  13. ऊं चित्राय नम:
  14. ऊं चित्रगुप्ताय नम:

इस दिन दीये जलाकर घर के बाहर रखते हैं. ऐसी मान्यता है की दीप की रोशनी से प‌ितरों को अपने लोक जाने का रास्ता द‌िखता है. इससे प‌ितर प्रसन्न होते हैं और प‌ितरों की प्रसन्नता से देवता और देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं. दीप दान से संतान सुख में आने वाली बाधा दूर होती है. इससे वंश की वृद्ध‌ि होती है।


नरक चतुर्दशी FAQ

प्रश्न – नरक चतुर्दशी का क्या महत्व है?
उत्तर – नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा की जाती है, जिससे व्यक्ति के जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। साथ ही इस दिन यमराज के समक्ष दीपक जलाने से नरक के भय से भी मुक्ति मिलती है।

प्रश्न – नरक चतुर्दशी कैसे बनाएं?
उत्तर – नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय देवताओं की पूजा करने के बाद घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ तेल का दिया जलाया जाता है। साथ ही इस दिन रूप और सौन्दर्य के लिए भगवान कृष्ण की पूजा का भी विधान बताया गया है।

प्रश्न – नरक चतुर्दशी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
उत्तर – नरक चतुर्दशी के दिन एक काम की मनाही होती है। इस दिन भूल से भी अपने घर को अकेला न छोड़ने की सलाह दी जाती है।

प्रश्न – चतुर्दशी के दिन क्या करना चाहिए?
उत्तर – नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करनी चाहिए। इससे अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा का विधान बताया गया है।

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