लेख सारिणी
गायत्री मंत्र – Gayatri Mantra
गायत्री मंत्र, सनातन धर्म में सबसे प्रसिद्ध मंत्रों में से एक है। यह वैदिक छंद वृक्ष गायत्री छंद में लिखा गया है और वेदों के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गायत्री मंत्र का जाप अध्यात्मिक साधना और मनन के लिए विशेष रूप से किया जाता है। इस मंत्र का जाप ध्यान एवं चिंतन की शक्ति को बढ़ाता है और व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि और उन्नति में मदद करता है।
गायत्री मंत्र का अर्थ
हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए।
गायत्री मंत्र लिखा हुआ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र का अर्थ हिंदी में निम्नलिखित होता है:
ॐ: यह एक प्राणवाचक शब्द है जो ब्रह्म या अनन्तता को प्रतिष्ठित करता है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का सूत्र है।
भूर्भुवः स्वः: ये तीन शब्द संसार के तीन लोकों के नाम हैं। भूर्भुवः स्वः वे स्वर्गलोक, भूमिलोक और पाताललोक को सूचित करते हैं।
तत्सवितुर्वरेण्यं: “तत्सवितुः” एक और नाम है जो ब्रह्मा को सूचित करता है, और “वरेण्यं” अर्थात् वंदनीय या पूजनीय। इस प्रकार यह भाग इस मंत्र में ब्रह्मा की पूजा का समर्थन करता है।
भर्गो: यह शब्द ज्योति या तेज को दर्शाता है जो ब्रह्मा का एक आभूषण है।
देवस्य धीमहि: यह भाग हम ब्रह्मा को स्मरण करते हैं और उसकी उपासना करते हैं।
धियो यो नः प्रचोदयात्: धीमहि के उपरांत यह भाग है जिसमें हम ब्रह्मा से बुद्धि, ज्ञान, और समझ की माँग करते हैं जो हमें सत्य और धर्म का मार्ग दिखा सके।
गायत्री मंत्र की सच्चाई
इस प्रकार, गायत्री मंत्र में हम ब्रह्मा की पूजा करते हुए बुद्धि, ज्ञान, और समझ का आश्रय लेते हैं ताकि हमारे मन, शरीर, और आत्मा की उन्नति हो सके और हम सत्य और धर्म के मार्ग पर चल सकें। गायत्री मंत्र का नियमित जाप अध्यात्मिक उन्नति में मदद करता है और मानसिक शांति और समृद्धि को प्राप्त करने में सहायक साबित होता है।
नवरात्री में लघु गायत्री साधना – Gayatri Laghu Anusthan – गायत्री लघु अनुष्ठान,
गायत्री साधना विधि – साधना कर शक्ति संचय करने के महापर्व होते है नवरात्री के 9 दिन, अगर नवरात्री में साधक गायत्री महामंत्र का लघु अनुष्ठान करता हैं तो उसके जीवन में सात्विकता तो आती ही है, साथ में उसकी अनेक मनोकामनाएं भी स्वतः ही पूरी होने लगती हैं । अतः इसके लिए नौ दिनों तक 24,000 गायत्री महामंत्र जप करने का विधान है, जिसे ही लघु गायत्री अनुष्ठान या साधना कहा जाता हैं, अगर इस अनुष्ठान को कुछ नियमों का पालन करते हुए किया जाए तो साधक की रक्षा के लिए माँ गायत्री स्वयं एक दिव्य रक्षा कवच बना देती हैं, ताकि साधक निर्विघ्न रूप से अपनी साधना सफलता पूर्वक पूर्ण कर सके ।
गायत्री साधना से असम्भव सम्भव
गायत्री मंत्र का जाप करने से शरीर, मन, और आत्मा को शुद्धि मिलती है और ध्यान में स्थिरता व प्रगति होती है।
गायत्री साधना से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:
- ध्यान शक्ति: गायत्री साधना करने से ध्यान की शक्ति विकसित होती है और व्यक्ति अपने मन को वश में कर सकता है।
- बुद्धि विकास: गायत्री मंत्र के जाप से बुद्धि का विकास होता है और विचारशीलता में सुधार होता है।
- आत्म-ज्ञान: गायत्री साधना से आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति अपने आत्मा को अध्ययन कर सकता है।
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: गायत्री मंत्र के जाप से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- समृद्धि और समर्थता: गायत्री साधना करने से व्यक्ति को समृद्धि और समर्थता की प्राप्ति होती है।
- आत्म-विश्वास: गायत्री मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति का आत्म-विश्वास मजबूत होता है।
यह सभी लाभ उन व्यक्तियों को प्राप्त होते हैं जो नियमित और निष्ठापूर्वक गायत्री साधना का अभ्यास करते हैं। गायत्री साधना को अपने जीवन में सम्भव बनाने के लिए नियमित रूप से गायत्री मंत्र का जाप करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय और ध्यान से इस साधना को करने से इसके लाभ आपको प्राप्त होंगे।
गायत्री साधना विधि pdf
- प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक कुल 24 हजार गायत्री जप करने के लिए प्रतिदिन 27 माला नियमित रूप से जपनी पड़ती हैं ।
- 27 माला का ये जाप सामान्यतः 3 घंटों में पूरा हो जाता है । दिन में दो समय भी जप करके पूजा किया जा सकता हैं ।
- जप को ब्रह्म मुहूर्त में शुरू करे तो अति उत्तम है अन्यथा सुबह 8 बजे से पहले भी कर सकते है
- गायत्री मंत्र का जप तुलसी या रुद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए ।
- जप के समय कुशा के आसन का प्रयोग करें ।
- स्वावलम्बी बने और ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
- हो सके तो भूमि पर ही चटाई या ऊनि चटाई पर सोये ।
- व्यसन, मोबाइल, सोशल मीडिया से दूर रहे और स्वाध्याय करे।
- जप का शताँश हवन भी करना चाहिए ।
- पूर्णाहुति के बाद प्रसाद वितरण, कन्या भोज आदि सामर्थ्यानुसार उत्तम हैं ।