Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

देवपूजन की अचार संहिता – घर के पूजा घर में इन नियमो का पालन करना है अति आवश्यक

Uncategorized

देवपूजन की अचार संहिता

देवपूजा पूर्व या उत्तरमुख होकर और पितृपूजा दक्षिणमुख होकर करनी चाहिये। यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें। पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

नीला, लाल अथवा काला वस्त्र पहनकर और बिना धोया हुआ वस्त्र पहनकर भगवान् विष्णु की उपासना करने वाला दोषी माना जाता है, और उसका पतन निश्चित ही होता है।

गीले वस्त्रों को पहनकर अथवा दोनों हाथ घुटनों से बाहर करके जो जप, होम और दान किया जाता है, वह सब निष्फल हो जाता है।

केश खोलकर आचमन और देवपूजन नहीं करना चाहिये।

ताँबा मंगलस्वरूप, पवित्र एवं भगवान को बहुत प्रिय है। ताँबे के पात्र में रखकर जो वस्तु भगवान को अर्पण की जाती है, उससे भगवान को बड़ी प्रसन्नता होती है। इसलिये भगवान को जल आदि वस्तुएँ ताँबे के पात्र में रखकर अर्पण करनी चाहिये। परन्तु तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

शालग्राम, तुलसी और शंख – इन तीनों को एक साथ रखने से भगवान् बहुत प्रसन्न होते हैं। शालग्राम तथा शंखपर रखी हुई तुलसीको अलग करना पाप है। शालग्राम से तुलसी अलग करने वाले को जन्मान्तर में स्त्री-वियोग की प्राप्ति होती है और शंख से तुलसी अलग करने वाला भार्याहीन तथा सात जन्मोंतक रोगी होता है।

घरमें टूटी-फूटी अथवा अग्नि से जली हुई प्रतिमा की पूजा नहीं करनी चाहिये। ऐसी मूर्ति की पूजा करने से गृहस्वामी के मन में उद्वेग या अनिष्ट होता है।

घरमें दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र और दो शालग्राम का पूजन नहीं करना चाहिये। इनका पूजन करने से गृहस्वामी को दुःख, अशान्तिकी प्राप्ति होती है ।

मनुष्य को चित्रों एवं मन्दिरों में कहीं भी सूर्य के चरणों को नहीं बनाना या बनवाना चाहिये। यदि कोई सूर्य के चरणों का निर्माण करता या करवाता है, वह दुर्गति को प्राप्त होता है तथा इस लोक में दुःख भोगता हुआ कुष्ठरोगी हो जाता है।

पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, सूर्य संक्रान्ति, मध्याह्नकाल, रात्रि, दोनों सन्ध्याएँ, अशौच के समय, रात में और बिना स्नान किये – इन समयों में तथा तेल लगाकर जो मनुष्य तुलसी के पत्तों को तोड़ते हैं, वे मानो भगवान श्री हरि के मस्तक का छेदन करते हैं । शिवजी, गणेश जी और भैरव जी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है. इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है.

सूखे पत्तों, फूलों और फलोंसे कभी देवताका पूजन नहीं करना चाहिये। आँवला, खैर, बिल्व और तमाल के पत्र यदि छिन्न-भिन्न भी हों विद्वान् पुरुष उन्हें दूषित नहीं कहते। कमल और आँवला तीन दिनों तक शुद्ध रहते हैं। तुलसी और बिल्वपत्र सदा शुद्ध रहते हैं ।

सूर्य को नमस्कार प्रिय है, विष्णु को स्तुति प्रिय है, गणेश को तर्पण प्रिय है, दुर्गा को अर्चना प्रिय है और शिव को अभिषेक प्रिय है। अतः इन देवताओंको प्रसन्न करने के लिये इनके प्रिय कार्य ही करने चाहिये।

विष्णु के मन्दिर की चार बार, शंकर के मन्दिर की आधी बार, देवी के मन्दिर की एक बार, सूर्य के मन्दिर की सात बार और गणेश के मन्दिर की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिये। घर में पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए।

घी का दीपक देवता के दायें भाग में और तेल का दीपक बायें भाग में रखना चाहिये। जल पात्र, घंटा, धूपदानी जैसी चीजें हमेशा बाईं तरफ रखनी चाहिए। एक दीपक से दूसरा दीपक, धूप या कपूर कभी न जलाएं।

प्रदक्षिणा, प्रणाम, पूजा, हवन, जप और गुरु तथा देवता के दर्शन के समय गले में वस्त्र नहीं लपेटना चाहिये।

अँधेरी रात में बिना दीपक जलाये भगवान के विग्रह का स्पर्श करना, श्मशान भूमि से लौटकर बिना स्नान किये भगवान का स्पर्श करना, मदिरा या मांस का सेवन करके भगवान की पूजा करना, दूसरे के वस्त्र को पहनकर भगवान की पूजा करना, भगवान को चन्दन और माला अर्पण किये बिना ही धूप देना, अपराध की श्रेणी में आता है जिसे मनुष्यो को बचना चाहिए

शिव जी को विल्व पत्र, विष्णु को तुलसी, गणेश जी को हरी दूर्वा, दुर्गा को अनेक प्रकार के पुष्प और सूर्य को लाल कनेर के पुष्प प्रिय हैं। शिवजी को केतकी के पुष्प, विष्णु को धतूरा और देवी को आक के पुष्प नहीं चढ़ाए जाते।

देवताओं को पूजन में अनामिका से गंध लगाना चाहिए। पुष्प हाथ में और चंदन ताम्र पत्र में रखें। जल,पात्र,घंटा,धूपदानी आदि बाईं ओर रखना चाहिए। भगवान के आगे जल का चैकोर घेरा बनाकर नैवेद्य रखें और देवी के दाईं ओर नैवेद्य रखना चाहिए।

पूजन में किसी सामग्री की कमी होने पर उसके स्थान पर अक्षत या फूल चढ़ा दें। शास्त्रों में मानस पूजा को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है अतः कल्पना द्वारा हर प्रकार के सुंदर पूजन से भी भगवान प्रसन्न होते हैं।

घर में पूर्व की ओर मुख करके दीपक रखने से वह आयु देता है,उत्तर की ओर धन,पश्चिम की ओर दुख और दक्षिण की ओर मुख करके रखने से हानि देता है। सभी देवताओं को सात,पांच,या तीन बार प्रणाम करना चाहिए।

भगवान की आरती करते समय भगवान के चरणों की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।

पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी, सरस्वती जी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियां घर में नहीं होनी चाहिए।

मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें व आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता -पिता व पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।

सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए. प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए. इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है.

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00