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ध्यान योग – श्री कृष्णा द्वारा बताई गयी ध्यान योग विधि, मुद्रा और आसन

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Dhyan lagane ki vidhi – ध्यान योग विधि

जो लोग शरीर के तल पर ज्यादा संवेदनशील हैं, उनके लिए ऐसी विधियां हैं जो शरीर के माध्यम से ही आत्यंतिक अनुभव पर पहुंचा सकती हैं। जो भाव-प्रवण हैं, भावुक प्रकृति के हैं, वे भक्ति-प्रार्थना के मार्ग पर चल सकते हैं। जो बुद्धि-प्रवण हैं, बुद्धिजीवी हैं, उनके लिए ध्यान, सजगता, साक्षीभाव उपयोगी हो सकते हैं। ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। ध्यान की हजारों विधियां बताई गई है।

हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं।

श्री कृष्णा द्वारा अर्जुन को बताई गयी ध्यान योग विधि

lord krishna ने अर्जुन से कहा: शुद्ध एवं एकांत स्थान पर कुशा आदि का आसन बिछाकर सुखासन में बैठें. अपने मन को एकाग्र करें. मन व इन्द्रियों की क्रियाओं को अपने वश में करें, जिससे अंतःकरण शुद्ध हो. इसके लिए, सर व गर्दन को सीधा रखें और हिलाएं-दुलायें नहीं. आँखें बंद रखें व साथ ही जीभ को भी न हिलाएं. अब अपनी आँख की पुतलियों को भी इधर-उधर नहीं हिलने दें और उन्हें एकदम सामने देखता हुआ रखें. एकमात्र ईश्वर का स्मरण करते रहें. ऐसा करने से कुछ ही देर में मन शांत हो जाता है और ध्यान आज्ञा चक्र पर स्थित हो जाता है और परम ज्योति स्वरुप परमात्मा के दर्शन होते हैं.

ध्यान योग से पहले मन पर नियंत्रण

ध्यान दें जब तक मन में विचार चलते हैं तभी तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती रहती हैं. और जब तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती हैं तब तक हमारे मन में विचार उत्पन्न होते रहते हैं. जैसे ही हम मन में चल रहे समस्त विचारों को रोक लेते हैं तो आँख की पुतलियाँ रुक जाती हैं. इसी प्रकार यदि आँख की पुतलियों को रोक लें तो मन के विचार पूरी तरह रुक जाते हैं. और मन व आँख की पुतलियों के रुकते ही आत्मा का प्रभाव ज्योति के रूप में दीख पड़ता है.

ध्यान की विधियां – Meditation Tips in Hindi

ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। ध्यान की योग और तंत्र में हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं।

भगवान शिव ने माँ पार्वती को 112 विधियां बताई थी जोविज्ञान भैरव तंत्र में संग्रहित हैं। इसके अलावा ved – puran और upnishad में ढेरों विधियां है। संत, महात्मा विधियां बताते रहते हैं। उनमें से खासकर ‘ओशो रजनीश’ ने अपने प्रवचनों में ध्यान की 150 से ज्यादा विधियों का वर्णन किया है।

सिद्धासन में बैठकर

  1. सर्वप्रथम भीतर की वायु को श्वासों के द्वारा गहराई से बाहर निकाले। अर्थात रेचक करें। फिर कुछ समय के लिए आंखें बंदकर केवल श्वासों को गहरा-गहरा लें और छोड़ें। इस प्रक्रिया में शरीर की दूषित वायु बाहर निकलकर मस्तिष्क शांत और तन-मन प्रफुल्लित हो जाएगा। ऐसा प्रतिदिन करते रहने से ध्यान जाग्रत होने लगेगा।
  2. सिद्धासन में आंखे बंद करके बैठ जाएं। फिर अपने शरीर और मन पर से तनाव हटा दें अर्थात उसे ढीला छोड़ दें। चेहरे पर से भी तनाव हटा दें। बिल्कुल शांत भाव को महसूस करें। महसूस करें कि आपका संपूर्ण शरीर और मन पूरी तरह शांत हो रहा है। नाखून से सिर तक सभी अंग शिथिल हो गए हैं। इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें। यह काफी है साक्षी भाव को जानने के लिए।
  3. किसी भी सुखासन में आंखें बंदकर शांत व स्थिर होकर बैठ जाएं। फिर बारी-बारी से अपने शरीर के पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक अवलोकन करें। इस दौरान महसूस करते जाएं कि आप जिस-जिस अंग का अलोकन कर रहे हैं वह अंग स्वस्थ व सुंदर होता जा रहा है। यह है सेहत का रहस्य। शरीर और मन को तैयार करें ध्यान के लिए।
  4. चौथी विधि क्रांतिकारी विधि है जिसका इस्तेमाल अधिक से अधिक लोग करते आएं हैं। इस विधि को कहते हैं साक्षी भाव या दृष्टा भाव में रहना। अर्थात देखना ही सबकुछ हो। देखने के दौरान सोचना बिल्कुल नहीं। यह ध्यान विधि आप कभी भी, कहीं भी कर सकते हैं। सड़क पर चलते हुए इसका प्रयोग अच्छे से किया जा सकता है। देखें और महसूस करें कि आपके मस्तिष्क में ‘विचार और भाव’ किसी छत्ते पर भिनभिना रही मधुमक्खी की तरह हैं जिन्हें हटाकर ‘मधु’ का मजा लिया जा सकता है। उपरोक्त चारों ही तरह की सरलतम ध्यान विधियों के दौरान वातावरण को सुगंध और संगीत से तरोताजा और आध्यात्मिक बनाएं। चौथी तरह की विधि के लिए सुबह और शाम के सुहाने वातावरण का उपयोग करें।

ध्यान मुद्रा (Dhyan Mudra)

dhyan yog का महत्वपूर्ण तत्व है जो तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है. ध्यान के द्वारा हमारी उर्जा केन्द्रित होती है. उर्जा केन्द्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल (inner strength) बढ़ता है.

 में ध्यान का बहुत ही महत्व है. ध्यान के द्वारा हमारी उर्जा केन्द्रित होती है. उर्जा केन्द्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल (inner strength) बढ़ता है.ध्यान से वर्तमान को देखने और समझने में मदद मिलती है. वर्तमान में हमारे सामने जो लक्ष्य है उसे प्राप्त करने की प्रेरण और क्षमता भी ध्यान से प्राप्त होता है.

योग में ध्यान का महत्व (importance of meditation in Yoga)

ध्यान को योग की आत्मा कहा जाता है. प्राचीन काल में योगी योग क्रिया द्वारा अपनी उर्जा को संचित कर आत्मिक एवं पारलौकिक ज्ञान और दृष्ट प्राप्त करते थे. वास्तव में ध्यान योग का महत्वपूर्ण तत्व है जो तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है और उसे बल प्रदान करता है. हमारे मन में एक साथ कई विचार चलते रहते हैं. मन में दौड़ते विचरों से मस्तिष्क में

कोलाहल सा उत्पन्न होने लगता है जिससे मानसिक अशांति पैदा होने लगती है. ध्यान अनावश्यक विचारों को मन से निकालकर शुद्ध और आवश्यक विचारों को मस्तिष्क में जगह देता है. ध्यान का नियमित अभ्यास करने से spiritual power  बढ़ती और mental peace की अनुभूति होती है. ध्यान का अभ्यास करते समय शुरू में 5 मिनट भी काफी होता है. अभ्यास से 20-30 मिनट तक ध्यान लगा सकते हैं.

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ध्यान की तैयारी (Preparing for meditation)

आज की भाग दौड़ भरी जिन्दग़ी में मन को एकाग्र कर पाना और ध्यान लगाना बहुत ही कठिन है. meditation यानी ध्यान की क्रिया शुरू करने से पहले वातावरण को इस क्रिया हेतु तैयार कर लेना चाहिए. ध्यान की क्रिया उस स्थान पर करना चाहिए जहां शांति हो और मन को भटकाने वाले तत्व मौजूद नहीं हों. ध्यान के लिए एक निश्चित समय बना लेना चाहिए इससे कुछ दिनों के अभ्यास से यह दैनिक क्रिया में शामिल हो जाता है फलत ध्यान लगाना आसान हो जाता है.

ध्यान और आसन का महत्व (Importance of stance for meditation)

आसन में बैठने का तरीका ध्यान में काफी मायने रखता है. ध्यान की क्रिया में हमेशा सीधा तन कर बैठना चाहिए. दोनों पैर एक दूसरे पर क्रास की तरह होना चाहिए और आंखें मूंद कर नेत्र को मस्तिष्क के केन्द्र में स्थापित करना चाहिए. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस क्रिया में किसी प्रकार का तनाव नहीं हो और आपकी आंखें स्थिर और शांत हों. यह क्रिया आप भूमि पर आसन बिछाकर कर सकते हैं अथवा पीछे से सहारा देने वाली कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं.

सांस की गति का महत्व (Significance of breathing rate)

योग में सांस की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है. सांस लेने और छोड़ने की क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित करने में मदद मिलती है. ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे धीरे मन स्थिर हो जाता है और ध्यान केन्द्रित होने लगता है. ध्यान करते समय गहरी सांस लेकर धीरे धीरे से सांस छोड़ने की क्रिया से काफी लाभ मिलता है.

ध्यान और अन्तर्दृष्टि (Meditation and insight)

ध्यान करते समय अगर आप उस स्थान को अपनी अन्तर्दृष्टि से देखने की कोशिश करते हैं जहां जाने की आप इच्छा रखते हैं अथवा जहां आप जा चुके हैं और जिनकी खूबसूरत एहसास आपके मन में बसा हुआ है तो ध्यान आनन्द दायक हो जाता है. इससे ध्यान मुद्रा में बैठा आसान होता एवं लम्बे समय तक ध्यान केन्द्रित करने में भी मदद मिलती है. अपनी अन्तर्दृष्टि से आप मंदिर, बगीचा, फूलों की क्यारियों एवं प्राकृतिक दृष्यों को देख सकते हैं.

नींद ,आचेत ध्यान है | ध्यान सहज नींद है | नींद में हमें थोड़ी सी ही शक्ति मिलती है | ध्यान से भरपूर शक्ति मिलती है | ये शक्ति हमारे शरीर की दिमाग की और बुद्धि की शक्ति बडाती है | छठी इन्द्रि उजगर करते है और भी बहुत कुछ | इस ध्यान से बढ़ी हुई शक्ति से हम बिना तनाव के स्वस्थ

और सुख रह सकते है | हमारी शक्ति बहुत बढ जाती है | ध्यान , हमारी चेतना स्वयम् कि ओर आने के सिवा कुछ नही है | ध्यान से हम जानबूझकर अपने शरीर से दिमांग तक जाते है , दिमांग से ज्नान , और ज्नान से स्वयम की ओर , और उससे भी आगे पहुंच जाते है | ध्यान करने के लिये , हमे अपने शरीर की सारी हरकतों को बन्द करना पडता है , जैसे शरीर का हिलना , देखना , बॉलना और सोचना .

ध्यान कैसे करे

  • ध्यान के लिये पहला काम है – स्थिति, आप किसी भी तरह बैठ सकते है, बैठना आरामदेह और निश्चल होना चाहिए | हम ज़मीन और कुर्सि पर बैठकर ध्यान कर सकते हैं, ध्यान हम किसी भी जगह कर सकते जहा हम सुखदायी हों | आराम से बैठिए |
  • पैरों को मोड़ के उसमे उंगमियों को फंसाइए, आंखे बन्द कीजिए | अन्दर और बाहर की आवाजों पर रोक लगाइये | किसी भी मन्त्र का उच्चारण नहीं कीजिए | जब हम पैरों को मोड्ते है और उंगलियों को फंसा लेते हैं तो शक्ति का दायार बढ़ जाता है | स्थिरता बढ़ जाती है |
  • आंखें दिमाग के द्वार हैं, इसीलियें आंखें बन्द होनी चाहिए, मन्त्रोच्चारण या कोई भी ध्वनियां – अन्दर या बाहर की सिर्फ मन की क्रियाएं है इसलिये इन्हे बन्द करना होगा |
  • जब शरीर ढीला छोड़ दिया जाता है, चेतना दूसरे कक्ष में पहुंच जाती है, मन विचारों का समूह है अतः बहुत से विचार हमारे मन में उभरते रहते हैं, जब विचार आते हैं तो प्रश्न भी उठ खडें होते हैं जाने और अनजाने |
  • मन और बुध्दि को भावातीत करने के लिए हमे अपनी संस पर ध्यान देना चाहिए, अपने आप पर ध्यान देना हमारा प्रकृति है | जान बूझकर सांस न लिजिए जान बूझकर सांस न लिजिए न छोडिए | सांस लेना या छोड्ना अनायास होना चाहिए | प्राकृतिक सांस पर ध्यान दीजिए, यही तरीका है . . .
  • विचारों का पीछा मत कीजिए, विचारों, सवालों से चिपक मत जाइये, विचारो को हटा दीजिये, सांस पर पुनः ध्यान दीजिए, सांस में खो जाइये |
  • इसके बाद सांसों की जगराई कम होती जाएगी, धीरे धीरे सांस हलकी और छोटी होती जाएगी, आखिर में सांस बहुत छोटी हो जाएगी और दोनो भावों के बीच में चमक का रूप ले लेगी | इस दशा में न सांस पर ध्यान रहेगा और ही विचार पर वो क्षण विचारों से परे हो जाएगा और वही दशा पर ध्यान की दशा कहलाती है

निर्मल स्थिती या बिना बिचारों की दशा

ये ध्यान की दशा है . . . ये वो अवस्था है . . . जब हम पर विश्व शक्ति की बोछार होने लगती है | हम जितना ज़्यादा ध्यान करेंगे उतना ही ज़्यादा विश्व शक्ति हमे प्राप्त होगी | विश्व शक्ति प्राणमय शरीर की शक्ति में प्रावाह करती है | शक्ति से भरा हुआ शरीर प्राणमय शरीर कहलाती है | उपरोक्त ध्यान विधियों के दौरान वातावरण को सुगंध और संगीत से तरोताजा और आध्यात्मिक बनाएं।

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