Table of Contents
गोवर्धन पूजा | Govardhan Pooja
गोवर्धन पूजा का शुभ टाइम : गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन की जाती है। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja Time) या अन्नकूट पूजा असल में गोवर्धन पर्वत की पूजा है। यह पर्वत बृज में स्थित है, इसे गिरिराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्वत को श्री कृष्ण ने अपनी अंगुलि पर उठाकर गांव वालों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। दीपावली के पाँच दिन चलने वाले त्यौहार में धन तेरस, रूप चौदस और दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा या अन्न कूट पूजा का दिन होता है। इसके अगले दिन भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा कब है | गोवर्धन पूजा का मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 13 नवंबर, सोमवार को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से शुरू होगी और 14 नवंबर 2023, मंगलवार को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट पर समाप्त होगी। गोवर्धन पूजा को भगवान श्रीकृष्ण की ओर से इंद्र देव को पराजित किए जाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
वल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टिमार्गी), गौड़ीय सम्प्रदाय तथा स्वामीनारायण संप्रदाय के लोगों में इस दिन का विशेष महत्त्व होता है। वैष्णव मंदिरों में छप्पन भोग बना कर भगवान को भोग लगाया जाता है। जिसमें छप्पन प्रकार खाने की वस्तुएँ बनाई जाती है। यह भोग गोवर्धन पूजा का ही प्रतीक होता है। यह अन्न कूट कहलाता है। भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। हजारों की संख्या में लोग इस प्रसाद को पाने के लिए मंदिर पहुँचते है। इस प्रसाद का एक अलग ही स्वाद होता है।
गोवर्धन पूजा का शुभ टाइम
चलिए जानते है की गोवर्धन पूजा (Govardhan Pooja) कब है (Govardhan Puja Kab Hai) गोवर्धन पूजा सुविधानुसार सुबह या शाम के वक्त की जा सकती है। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja Date & Time 2023) की तारीख व शुभ मुहूर्त इस प्रकार है :
गोवर्धन पूजा कब है 2023 – Govardhan Puja Muhurat
गोवर्धन पूजा (14 नवंबर) को पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 43 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 52 मिनट तक है. पूजा की अवधि कुल 2 घंटे 9 मिनट की होगी. वहीं, इस दिन शोभन योग और अनुराधा नक्षत्र का निर्माण हो रहा है. शोभन योग 14 नवंबर को सुबह से दोपहर 1 बजकर 7 मिनट तक है. वहीं, अनुराधा नक्षत्र सुबह से लेकर 15 नवंबर की रात 3 बजकर 24 मिनट तक है.
गोवर्धन पूजन विधि – Govardhan Puja Vidhi
- इस पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनायें। इसे लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है।
- नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्डा बना लें।
- फूल , पत्तियों , टहनियों व गाय की आकृतियों से या अपनी सुविधानुसार सजायें ।
- शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू करें ।
- इस पूजा के लिए लक्ष्मी पूजन वाली थाली, बड़ा दीपक, कलश व बची हुई सामग्री काम में लेना शुभ मानते है।
- लक्ष्मी पूजन में रखे हुए गन्ने के आगे का हिस्सा तोड़कर गोवर्धन पूजा में काम लिया जाता है।
- पूजा के लिए रोली, मौली, अक्षत चढ़ायें।
- फूल माला, पुष्प अर्पित करें।
- धूप , दीपक, अगरबत्ती आदि जलाएँ।
- नैवेद्य के रूप में फल, मिठाई आदि अर्पित करें। गन्ना चढायें।
- एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर बिलोने से झेरते है और गोवर्धन के गीत गाते है।
- गोवर्धन की सात बार परिक्रमा लगाएं।
- पंचामृत अर्पित करें। पंचामृत, दूध, दही, शहद, घी और शक्कर मिलाकर बनाया जाता है।
- दक्षिणा चढ़ाएँ।
- श्री कृष्ण भगवान का ध्यान करते हुए श्रद्धा पूर्वक नमन करें।
- श्री गोवर्धन महाराज की आरती गाएँ।
श्री गोवर्धन महाराज की आरती
श्री गोवर्धन महाराज , ओ महाराज , तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े , तोपे चढ़े दूध की धार । तेरे माथे…..
तेरे गले में कंठा सोहे रह्यो , तेरी झांकी बनी विशाल । तेरे माथे ….
तेरे कानन कुंडल सोहे रह्यो ,तेरी ठोड़ी पे हीरा लाल । तेरे माथे ….
तेरी सात कोस की परिकम्मा, चकलेश्वर है विश्राम । तेरे माथे….
श्री गोवर्धन महाराज , ओ महाराज , तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो ।
गोवर्धन पूजा क्यों होती है – गोवर्धन पूजा कथा
एक समय की बात है श्रीकृष्ण अपने मित्र ग्वालों के साथ पशु चराते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि बहुत से व्यक्ति एक उत्सव मना रहे थे| श्रीकृष्ण ने इसका कारण जानना चाह तो वहाँ उपस्थित गोपियों ने उन्हें कहा कि आज यहाँ मेघ व देवों के स्वामी इंद्रदेव की पूजा होगी और फिर इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे, फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा| यह सुन श्रीकृष्ण सबसे बोले कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिनके कारण यहाँ वर्षा होती है और सबको इंद्र से भी बलशाली गोवर्धन का पूजन करना चाहिए।
श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी गोवर्धन की पूजा करने लगे। जब यह बात इंद्रदेव को पता चली तो उन्होंने क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें। भयावह बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण के पास गए। यह जान श्रीकृष्ण ने सबको गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलने के लिए कहा| सभी गोप-ग्वाले अपने पशुओं समेत गोवर्धन की तराई में आ गए। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिïका अंगुली पर उठाकर छाते-सा तान दिया।
इन्द्रदेव के मेघ सात दिन तक निरंतर बरसते रहें किन्तु श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह अद्भुत चमत्कार देखकर इन्द्रदेव असमंजस में पड़ गए| तब ब्रह्माजी ने उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है| सत्य जान इंद्रदेव श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगे। श्रीकृष्ण के इन्द्रदेव को अहंकार को चूर-चूर कर दिया था अतः उन्होंने इन्द्रदेव को क्षमा किया और सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को भूमितल पर रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाए| तभी से यह पर्व प्रचलित है और आज भी पूर्ण श्रद्धाभक्ति से मनाया जाता है|
छप्पन भोग – 56 Bhog
कुछ लोग घर पर ही छप्पन प्रकार की खाने की वस्तुएं बना कर भगवान को छप्पन भोग लगा कर पूजा करते है । भोग के बाद रिश्तेदार , पड़ोसी , मित्र आदि के साथ प्रसाद का आनंद उठाते है। कुछ घरों में इसमें साबुत अनाज की खिचड़ी , कढ़ी , तथा पालक , मेथी , मूली , बैगन , टमाटर , गोभी आदि सब्जियों को मिलाकर विशेष सब्जी बनाई जाती है जो राम भाजी या अन्य नामों से जानी जाती है।
Please Read Also – 56 Bhog – कान्हा को छप्पन भोग क्यों लगाते है ?
महाराष्ट्र में यह दिन बलि पड़वा के नाम से जाना जाता है। कहते है इस दिन राजा बलि ( जिसको वामन अवतार के रूप में भगवान ने पाताल लोक में भेज दिया था ) एक दिन के लिए पाताल लोक से निकलकर धरती लोक पर आता है।
गोवर्धन पूजा प्रकृति के समीप रहने का सन्देश देती है। यह गाय से होने वाले लाभ के महत्त्व को समझने का समय होता है। इसीलिए इस दिन गाय बैल आदि की पूजा की जाती है । गाय बैल आदि को नहला कर साफ सुथरा करके लाल पीले कपड़े से सजाया जाता है। इनके सींग पर तेल और गेरू लगाया जाता है। घर पर बने भोजन में से पहले गाय को खिलाते है। घर में गाय नहीं हो तो बाहर जाकर गाय को खिलाते है। इस दिन चाँद नहीं देखना चाहिए। यह अशुभ माना जाता है।
कुछ जगह इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी की जाती है। विश्वकर्मा देव शिल्प माने जाते है जिनका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था। इन्हें यांत्रिक विज्ञानं तथा वास्तु कला का जनक कहा जाता है। कहा जाता है कि मुख्य पौराणिक भवन व नगरी जैसे श्री कृष्ण की द्वारिका, लंका नगरी, हस्तिनापुर आदि का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा किया गया था। फैक्ट्री के मजदूर, मिस्त्री, कारीगर, शिल्पकार, फर्नीचर बनाने वाले, मशीनों पर काम करने वाले लोग इस दिन मशीनों औजारों आदि की साफ सफाई करते है, उनकी पूजा करते है तथा भक्ति भाव और हर्षोल्लास से भगवान विश्कर्मा का पूजन किया जाता है।