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जाने पंच बद्री का रहस्य और देव भूमि बद्रीनाथ धाम से जुडी शिव और विष्णु की रोचक कथाएं

बद्रीनाथ धाम | Badrinath Temple

Badrinath Temple : हजारों साल से धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं में बद्रीनाथ (badrinath mandir) को सबसे पवित्र स्थान के तौर पर माना जाता रहा है। यह महान चार धाम यात्रा (Char Dham Yatra) तीर्थ स्थान गढ़वाल की लहरदार पहाडिय़ों में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है | बद्रीनाथ धाम में सनातन धर्म के सर्वश्रेष्ठ आराध्य देव श्री बद्रीनारायण भगवान के पांच स्वरूपों (badrinath darshan) की पूजा अर्चना होती है। विष्णु के इन पांच रूपों को “पंच बद्री” के नाम से जाना जाता है। बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार बद्रियों के मंदिर भी यहां स्थापित है।

श्री विशाल बद्री 

श्री विशाल बद्री (श्री बद्रीनाथ में) विशाल बद्री के नाम से प्रसिद्घ मुख्य बद्रीनाथ मन्दिर, पंच बद्रियों में से एक है। इसकी देव स्तुति का पुराणों में विशेष वर्णन किया जाता है। ब्रह्मा, धर्मराज तथा त्रिमूर्ति के दोनों पुत्रों नर तथा नारायण ने बद्री नामक वन में तपस्या की, जिससे इन्द्र का घमण्ड चकनाचूर हो गया। बाद में यही नर नारायण द्वापर युग में कृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए तत्पश्चात बद्रीनारायण नारद शिला के नीचे एक मूर्ति के रूप प्राप्त हुए। जिन्हें हम विशाल बद्री के नाम से जानते हैं।

श्री योगध्यान बद्री

श्री योगध्यान बद्री (पाण्डुकेश्वर में) 1500 वर्षो से भी प्राचीन योगध्यान बद्री का मन्दिर जोशीमठ तथा पीपलकोठी पर स्थित है। महाभारत काल के अंत में कौरवों पर विजय प्राप्त करने के, कलियुग के? प्रभाव से बचने हेतु पाण्डव हिमालय की ओर आए और यही पर उन्होंने स्वर्गारोहण के पूर्व घोर तपस्या की थी।

श्री भविष्य बद्री

श्री भविष्य बद्री (जोशीमठ के पास) जोशीमठ के पूर्व में 17 कि.मी. की दूरी पर और तपोवल के सुबैन के पास भविष्य बद्री का मंदिर स्थित है। आदि ग्रंथों के अनुसार यही वह स्थान है जहां बद्रीनाथ का मार्ग बन्द हो जाने के पश्चात धर्मावलम्बी यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

श्री वृद्घ बद्री

श्री वृद्घ बद्री (अणिमठ पैनीचट्टी के पास) यह जोशीमठ से 8 कि.मी. दूर 1380 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि जब कलियुग का आगमन हुआ तो भगवान विष्णु मंदिर में चले गये। यह मंदिर वर्ष भर खुला रहता है। वृद्घ बद्री को आदि शंकराचार्य जी की मुख्य गद्दी माना जाता है।

श्री आदि बद्री

कर्ण प्रयाग-रानी खेत मार्ग पर कर्ण प्रयाग से 18 कि.मी. दूर स्थित है। आदि बद्री को अन्य चार बद्रियों का पिता कहा जाता है। यहां 16 छोटे मंदिरों का समूह है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इन मंदिरों के निर्माण की स्वीकृति गुप्तकाल में आदि शंकराचार्य ने दी थी जो कि हिन्दू आदर्शो के प्रचार-प्रसार को देश के कोने-कोने में करने के लिए उद्दत थे।

पौराणिक मान्यताएं

बद्रीनाथ की पवित्रता धर्मशास्त्रों में स्पष्ट शब्दों में अंकित है। कहा जाता है कि जब गंगा देवी मानव जाति के दुर्खों को हरने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई तो पृथ्वी उनका प्रबल वेग सहन न कर सकी। गंगा की धारा बारह जल मार्गो में विभक्त हुई। उसमें से एक है अलकनंदा का उद्गम। यही स्थल भगवान विष्णु के निवास स्थान के गौरव से शोभित होकर बद्रीनाथ कहलाया। एक अन्य मान्यता है कि प्राचीन काल में यह स्थल बदरियाँ (जंगली बेरों) से भरा रहने के कारण इसको बद्री वन भी कहा जाता था। पाण्डव अपनी स्वर्ग की यात्रा में जाते समय यहां से अन्तिम गांव माण से गुजरे थे। यह भी माना जाता है कि माणा में मौजूद एक गुफा में व्यास ने महाभारत लिखी थी।

बद्रीनाथ धाम की कथा

क्या आप बद्रीनाथ की कथा जानते हैं? यह वो जगह है, जहां शिव और पार्वती रहते थे। यह उनका घर था। एक दिन नारायण यानी विष्णु के पास नारद गए और बोले, ‘आप मानवता के लिए एक खराब मिसाल हैं। आप हर समय शेषनाग के ऊपर लेटे रहते हैं। आपकी पत्नी लक्ष्मी हमेशा आपकी सेवा में लगी रहती हैं, और आपको लाड़ करती रहती हैं। इस ग्रह के अन्य प्राणियों के लिए आप अच्छी मिसाल नहीं बन पा रहे हैं। आपको सृष्टि के सभी जीवों के लिए कुछ अर्थपूर्ण कार्य करना चाहिए।’

इस आलोचना से बचने और साथ ही अपने उत्थान के लिए (भगवान को भी ऐसा करना पड़ता है) विष्णु तप और साधना करने के लिए सही स्थान की तलाश में नीचे हिमालय तक आए। वहां उन्हें मिला बद्रीनाथ, एक अच्छा-सा, छोटा-सा घर, जहां सब कुछ वैसा ही था जैसा उन्होंने सोचा था। साधना के लिए सबसे आदर्श जगह लगी उन्हें यह।


वह उस घर के अंदर गए। घुसते ही उन्हें पता चल गया कि यह तो शिव का निवास है और वह तो बड़े खतरनाक व्यक्ति हैं। अगर उन्हें गुस्सा आ गया तो वह आपका ही नहीं, खुद का भी गला काट सकते हैं। ऐसे में नारायण ने खुद को एक छोटे-से बच्चे के रूप में बदल लिया और घर के सामने बैठ गए। उस वक्त शिव और पार्वती बाहर कहीं टहलने गए थे। जब वे घर वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बच्चा जोर-जोर से रो रहा है।

पार्वती को दया आ गई। उन्होंने बच्चे को उठाने की कोशिश की। शिव ने पार्वती को रोकते हुए कहा, ‘इस बच्चे को मत छूना।’ पार्वती ने कहा, ‘कितने क्रूर हैं आप ! कैसी नासमझी की बात कर रहे हैं? मैं तो इस बच्चे को उठाने जा रही हूं। देखिए तो कैसे रो रहा है।’ शिव बोले, ‘जो तुम देख रही हो, उस पर भरोसा मत करो। मैं कह रहा हूं न, इस बच्चे को मत उठाओ।’

बच्चे के लिए पार्वती की स्त्रीसुलभ मनोभावना ने उन्हें शिव की बातों को नहीं मानने दिया। उन्होंने कहा, ‘आप कुछ भी कहें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे अंदर की मां बच्चे को इस तरह रोते नहीं देख सकती। मैं तो इस बच्चे को जरूर उठाऊंगी।’ और यह कहकर उन्होंने बच्चे को उठाकर अपनी गोद में ले लिया।

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बच्चा पार्वती की गोद में आराम से था और शिव की तरफ बहुत ही खुश होकर देख रहा था। शिव इसका नतीजा जानते थे, लेकिन करें तो क्या करें? इसलिए उन्होंने कहा, ‘ठीक है, चलो देखते हैं क्या होता है।’ पार्वती ने बच्चे को खिला-पिला कर चुप किया और वहीं घर पर छोडक़र खुद शिव के साथ गर्म पानी से स्नान के लिए बाहर चली गईं।

वहां पर गर्म पानी के कुंड हैं, उसी कुंड पर स्नान के लिए शिव-पार्वती चले गए। लौटकर आए तो देखा कि घर अंदर से बंद था। शिव तो जानते ही थे कि अब खेल शुरू हो गया है। पार्वती हैरान थीं कि आखिर दरवाजा किसने बंद किया? शिव बोले, ‘मैंने कहा था न, इस बच्चे को मत उठाना। तुम बच्चे को घर के अंदर लाईं और अब उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है।’ पार्वती ने कहा, ‘अब हम क्या करें?’

शिव के पास दो विकल्प थे। एक, जो भी उनके सामने है, उसे जलाकर भस्म कर दें और दूसरा, वे वहां से चले जाएं और कोई और रास्ता ढूंढ लें। उन्होंने कहा, ‘चलो, कहीं और चलते हैं क्योंकि यह तो तुम्हारा प्यारा बच्चा है इसलिए मैं इसे छू भी नहीं सकता। मैं अब कुछ नहीं कर सकता। चलो, कहीं और चलते हैं।’

इस तरह शिव और पार्वती को अवैध तरीके से वहां से निष्कासित कर दिया गया। वे दूसरी जगह तलाश करने के लिए पैदल ही निकल पड़े। दरअसल, बद्रीनाथ और केदारनाथ के बीच, एक चोटी से दूसरी चोटी के बीच, सिर्फ दस किलोमीटर की दूरी है। आखिर में वह केदार में बस गए और इस तरह शिव ने अपना खुद का घर खो दिया। आप पूछ सकते हैं कि क्या वह इस बात को जानते थे। आप कई बातों को जानते हैं, लेकिन फिर भी आप उन बातों को अनदेखा कर उन्हें होने देते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका का खास महत्व है क्योंकि बद्रीनाथ मदिर की प्राण प्रतिष्ठा आदि शंकराचार्य ने की थी। यह अद्भुत जगह सचमुच दर्शनीय है।

कथा शिव और बद्रीनाथ की :

बद्रीनाथ के बारे में एक कथा है। यह हिमालय में 10,000 की ऊंचाई पर स्थित एक शानदार जगह है, जहां शिव और पार्वती रहते थे। एक दिन, शिव और पार्वती टहलने गए। जब वे वापस लौटे, तो उनके घर के दरवाजे पर एक नन्हा शिशु रो रहा था। बच्चे को चीख-चीख कर रोते देख, पार्वती की ममता जाग

उठी और वह बच्चे को उठाने लगीं। शिव ने उन्हें रोका और बोले, ‘उस बच्चे को मत छुओ।’ पार्वती बोलीं, ‘आप कितने निर्दयी हैं। आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?’

शिव बोले, ‘यह कोई अच्छा शिशु नहीं है। यह अपने आप हमारे दरवाजे पर कैसे आ गया? आस-पास कोई नहीं दिख रहा, बर्फ में इसके माता-पिता के पैरों के कोई निशान भी नहीं हैं। यह कोई बच्चा नहीं है।’ मगर पार्वती बोलीं, ‘मैं कुछ नहीं जानती। मेरे अंदर की मां इस बच्चे को इस तरह नहीं छोड़ सकती।’ और वह बच्चे को घर के अंदर ले गईं। बच्चा बहुत सहज हो गया और पार्वती की गोद में बैठकर प्रसन्नतापूर्वक शिव को देखने लगा। शिव इसका नतीजा जानते थे, मगर वह बोले, ‘ठीक है, देखते हैं, क्या होता है।’

पार्वती ने बच्चे को चुप कराया और उसे दूध पिलाया। फिर वह उसे छोड़कर शिव के साथ नजदीकी गरम पानी के झरने में स्नान करने चली गईं। जब वे लोग वापस लौटे, तो उन्होंने पाया कि घर अंदर से बंद था। पार्वती आश्चर्यचकित रह गईं, ‘दरवाजा किसने बंद किया?’ शिव बोले, ‘देखो, मैंने कहा था कि इस बच्चे को मत उठाओ। तुम उस बच्चे को घर में ले कर आई और अब उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया है।’

पार्वती बोलीं, ‘अब हम क्या करेंगे?’

शिव के पास दो रास्ते थे – पहला, अपने सामने हर चीज को जला डालना। दूसरा, कोई और रास्ता ढूंढकर चले जाना। वह बोले, ‘चलो, हम कहीं और चलते हैं। यह तुम्हारा प्यारा बालक है, इसलिए मैं उसे स्पर्श नहीं कर सकता।’

इस तरह शिव अपना ही घर गंवा बैठे, और शिव-पार्वती एक तरह से ‘अवैध प्रवासी’ बन गए। वे रहने के लिए भटकते हुए सही जगह ढूंढने लगे और आखिरकार केदारनाथ में जाकर बस गए। आप पूछ सकते हैं, कि क्या उन्हें पता नहीं था। आपको बहुत चीजें पता होती हैं, मगर फिर भी आप उन्हें होने देते हैं।

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