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कजरी तीज क्यों, कब और कैसे मनाई जाती है

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कजरी तीज व्रत – kajri teej ki katha

क्या आप जानते है की कजरी तीज व्रत कथा क्या है और कजरी तीज (kajli teej vrat katha hindi) क्यों मनाते हैं? कजरी या कजली तीज को भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन आसमान में छाई काली घटाओं के कारण इस त्यौहार को कजरी या कजली तीज के नाम से जाना जाता हैं।

कजरी तीज जिसे कजली या बड़ी तीज के रूप में भी जाना जाता है। यह भारत के तीन मुख्य तीज त्योहारों में से एक है। इसके अलावा हरियाली तीज और हरतालिका तीज भी हैं। हरियाली तीज के 15 दिन बाद Kajari teej का जश्न उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह आमतौर पर रक्षा बंधन के  तीन दिन बाद और कृष्ण जन्माष्टमी से पांच दिन पहले आता हैं।

कई जगहों पर कजरी तीज को सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। कजरी तीज का त्यौहार मुख्य रूप से महिलाओं का पर्व हैं। सुहागन महिलाओं के लिए कजरी तीज भी हरियाली तीज और हरतालिका तीज की तरह प्रमुख त्यौहार हैं।

कजरी तीज कैसे मनाते है – Kajli Teej Vrat

कजरी तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयू के लिए व्रत रखती है और अविवाहित लड़कियां इस पर्व पर अच्छा वर पाने के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन जौ, चने, चावल और गेंहूं के सत्तू बनाये जाते है और उसमें घी और मेवा मिलाकर कई प्रकार के भोजन बनाते हैं। चंद्रमा की पूजा करने के बाद उपवास तोड़ते हैं।

इसके अलावा, कजरी तीज के दिन गायों की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन घर में झूले लगाते है और महिलाएं इकठ्ठा होकर नाचती है और गाने गाती हैं। कजरी गाने इस उत्सव का एक अभिन्न हिस्सा हैं। Kajri teej पर नीम की पूजा भी की जाती है। उसके बाद चाँद को बलिदान देने की परंपरा हैं।

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कैसे करें पूजन – Kajli Teej Pooja Vidhi 

कजरी तीज के अवसर पर नीमड़ी माता की पूजा की जाती है. पूजन से पहले मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है. उसके पास नीम की टहनी को रोप देते हैं. तालाब में कच्चा दूध और जल डालते हैं. किनारे पर एक दीया जलाकर रखते हैं. थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि रखे जाते हैं. शाम के समय श्रृंगार के बाद नीमड़ी माता की पूजा की जाती है.


कजरी तीज का महत्त्व – Kajli Teej Vrat 

कड़ी गर्मी के बाद मानसून का स्वागत करने के लिए लोगों द्वारा कजरी तीज मनाई जाती है। कजरी तीज पूरे साल मनाए जाने वाले तीन तीज त्योहारों में से एक है। अखा और हरियाली तीज की तरह भक्त कजरी तीज के लिए विशेष तयारी करते हैं।

इस दिन देवी पारवती की पूजा करना शुभ माना जाता है। जो महिलाएं कजरी तीज पर देवी पार्वती की पूजा करती है उन्हें अपने पति के साथ सम्मानित संबंध होने से आशीर्वाद मिलता है।

किवंदती यह है की 108 जन्म लेने के बाद देवी पार्वती भगवान शिव से शादी करने में सफल हुई। इस दिन को निस्वार्थ प्रेम के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। यह निस्वार्थ भक्ति थी जिसने भगवान् शिव को अंततः देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का नेतृत्व किया।

कजरी तीज व्रत कथा – Kajli Teej Vrat Katha

एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। भाद्रपद महीने की कजली तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ। ब्राह्मण बोला, सातु कहां से लाऊं। तो ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सातु लेकर आओ। रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और जाने लगा। आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर ….चोर चिल्लाने लगे।

साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया।
ब्राह्मण बोला मैं चोर नहीं हूं। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था। साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सातु के अलावा कुछ नहीं मिला। चांद निकल आया था ब्राह्मणी इंतजार ही कर रही थी।

साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने ,रूपये,मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे … कजली माता की कृपा सब पर हो।

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