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Mistery of Roop kund lake | रूपकुंड झील

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निसंदेह भारत दुनिया के कुछ सबसे पेचीदा एवं रीढ़ कंपा देने वाले रहस्यों का घर हमेशा से रहा है। आप जहाँ जाओ आपको एक नया अनुभव बाहें फैलाये आमंत्रित कर रहा होता है। 

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप देश में किस जगह पर जा रहे हो। रहस्य एवं रोमांच से आपका सामना सभी जगह हो जाता है। 

हिमालय पर्वत श्रृंखला से होते हुआ उत्तर के मैदानों तक, वहां से राजस्थान के बंजर रेगिस्तान से दक्षिण में समुद्र की गहराइयों तक आपको भारत के हर कोने में एक नया रोमांच महसूस करने का मौका मिलता है। 

इसी सिलसिले को आगे बढ़ाने में उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमालय की गोंद में रूपकुंड की रहस्य्मयी झील आकर्षित एवं रोमांचित करती है। 

रूपकुंड की रहस्य्मयी झील (Roop kund lake) हर तरफ से प्राकृतिक अजूबों से घिरी हुई है। रूपकुंड का लंबी पैदल यात्रा का मार्ग पेचीदा पहेलियों से भरा हुआ है, जिन्हें अभी तक सुलझाया नहीं जा सका है।

समुद्र तल से 16,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड झील में बर्फ के नीचे पड़े सैकड़ों कंकालों के लिए बदनाम है। इसी कारण बहुधा इसे कंकालों वाली झील ( Skeleton lake ) भी कहा जाता है।

Begining of Roop kund lake mistery | रूपकुंड के रहस्य की शुरुआत 

रूपकुंड झील के रहस्य की कहानी 1942 में शुरू हुई, जब एक ब्रिटिश वन रेंजर एच के माधवाल ने सबसे पहले समुद्र तल से 16000 फीट की ऊंचाई पर एक झील में तैरते हुए कंकाल की खोज की थी।

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Begining of Roop kund lake mistery | रूपकुंड के रहस्य की शुरुआत 

इन कंकालों को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक जापानी आक्रमण दल का हिस्सा माना जाता था। हालांकि हड्डियों को द्वितीय विश्व युद्ध से भी पुराना होने का पता चला था।

बाद में 1956 में सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि कंकाल के दो सेट मिले  थे। एक विशाल ईरानी प्रकार का और दूसरा छोटा स्थानीय नागरिक का। 

आज तक मिले कंकाल के अवशेष 600-800 लोगों के बीच बताए जाते हैं। लेकिन आधी सदी से भी अधिक समय से, मनोविज्ञान तथा वैज्ञानिक कुछ अनुत्तरित प्रश्नों के साथ, कंकालों के इतनी गहराई में होने से हैरान हैं।

मौसम के अनुसार यह  झील, जो वर्ष के अधिकांश समय में जमी रहती है, गर्मी होने पर फैलती तथा ठंड में सिकुड़ती है। केवल जब बर्फ पिघलती है, तभी कंकाल दिखाई देते हैं। 

कुछ कंकाल कभी-कभी मांस वाले होते हैं तथा अच्छी तरह से संरक्षित होते हैं। आज तक यहां अनुमानित 600-800 लोगों के कंकाल अवशेष पाए गए हैं। 

लोगों में इस झील के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने के लिए पर्यटन विभाग एवं स्थानीय सरकार इसे “रहस्यमय झील” के रूप में वर्णित करती है।

Story behind Roop Kund Lake | रूपकुंड से जुड़ा रहस्य 

बर्फ के नीचे दबे लोग कौन थे, वे वास्तव में कैसे और कब मरे, लोग कहाँ से आए और इतने दुर्गम स्थान पर क्यों आए? ये ऐसे सवाल हैं, जो लंबे समय से वैज्ञानिकों को परेशान कर रहे हैं।

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Story behind Roop Kund Lake | रूपकुंड से जुड़ा रहस्य 

रूपकुंड की झील में मिले कंकालों से जुडी अन्य कहानियां एक दुसरे से विभिन्नता रखती हैं तथा अपने तरीके से सत्यता सिद्ध करने का प्रयास करती हैं। 

कंकालों को लेकर कई बातें एवं अलग-अलग मिथक हैं। हर व्यक्ति अपने अनुसार इस जगह का इतिहास बताता है। इससे जुड़ी घटनाओं का विश्लेषण करता है।  

लंबे समय से प्रचलित कथाओं में से एक के अनुसार यह अवशेष एक भारतीय राजा एवं उनकी पत्नी, बच्चों तथा परिचारकों के हैं, जो लगभग 870 साल पहले एक भयंकर ओलावृष्टि में मारे गए थे।

एक अन्य कथा के अनुसार यह अवशेष उन सैनिकों के थे, जिन्होंने 1841 में तिब्बत पर आक्रमण करने की कोशिश की थी तथा  इस प्रक्रिया में मारे गए थे। 

जबकि एक अन्य का कहना है, कि वे उन लोगों के अवशेष हैं, जो एक महामारी में मारे गए थे और उन्हें वहीं दफनाया गया था।

रूपकुंड झील की पौराणिक कथाओं से जुड़ी एक और शाही कथा है। जिसके अनुसार कन्नौज के राजा जसधवल ने कई साल पहले अपनी गर्भवती पत्नी- रानी बलमवा के साथ होमकुंड की यात्रा की थी।

कन्नौज के पुजारी के अनुसार, दंपति अपने जल्द से जल्द बच्चे के लिए नंदा देवी का आशीर्वाद लेना चाहते थे। इसके लिए वह देवी की शरण में जल्द पहुंचना चाहते थे। 

तीर्थयात्रा राजा के शाही परिवार, नौकरों, नृत्य मंडली और उनके देश के अधिकांश लोगों के साथ शुरू हुई। कथा अनुसार यदि तीर्थ यात्रा के दौरान यदि नर्तकी  देवी नंदा देवी को प्रभावित नहीं करती, तो देवी उसे दंड देती। 

इसका प्रमाण आपको रूपकुंड के रास्ते में पातर नाचौनी (पत्थर नर्तकी) नामक एक शिविर से मिलता है, कहा जाता है यहीं पर देवी ने नर्तकी को श्राप दिया था।

राजा एवं रानी ने देवी से नर्तकी को  क्षमा करने की याचना की। शाही जोड़े के क्षमा याचना से देवी को प्रसन्न किया गया और उन्हें हर 12 साल में एक बार यात्रा करने का निर्देश दिया। 

कुछ वर्षों के बाद, राजा ने तीर्थ यात्रा के नियमों की अवहेलना की और देवी ने उन्हें रूपकुंड से गुजरते हुए ओलावृष्टि का श्राप दिया।

रेगिस्तानी क्षेत्र होने के कारण, राजस्थान में भूतों के गाँवों की कहानियों की कोई कमी नहीं है, लेकिन उनमें से कुछ को भानगढ़ (Bhangarh fort) एवं कुलधरा (Kuldhara) जितना महत्व नहीं मिल पाया है। 

Another Story | दूसरी कथा 

राजा अपनी पत्नी के साथ बेदनी बुग्याल से आगे निकल गए। देवी ने अपने प्रकोप से पूरे क्षेत्र में तूफान लाया क्योंकि राजा ने देवी की आज्ञा की अवहेलना की। 

देवी के आदेश के अनुसार अली बेदनी बी उग्याल से आगे महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं थी। जिस कारण पूरे डेरे का देवी ने विध्वंस कर दिया। 

अपने अद्भुत सौंदर्य और निर्माण कला के लिये विश्व के सात अजूबो में शामिल भारत के ताजमहल (Taj mahal) के रहस्यों को भी अवश्य जाने।

Third Story | तीसरी कथा 

रूपकुंड से संबंधित एक और कथा के अनुसार रानी ने यात्रा के दौरान ही पुत्र को जन्म दिया। कुछ सैनिकों ने राजा की ख़ुशी में शामिल हुए बिना तीर्थयात्रा जारी रखी, जिससे राजा रुष्ट हो गया।  

बाद में राजा ने उन सभी सैनिकों को दण्डित किया। दंडस्वरूप उसने उनको ओलावृष्टि के समय खुले आसमान में मरने के लिए छोड़ दिया। उन्ही सैनिकों के कंकाल इस झील में समाहित हो गए। 

हो सकता है, कि उपरोक्त कथाओं में से कोई एक कथा रूपकुंड के रहस्य को सिद्ध करती हो, किन्तु इन कथाओं से संबंधित कोई प्रमाण नहीं मिलते। 

ऐसे ही भारत के एक और अद्भुत स्थान शांगरिला ( Shangri-La) के रहस्यों के बारे में पढ़े। कहा जाता है, चीन ने इसी स्थान को पाने के लिए भारत पर हमला किया था।

Scientific facts about Roop Kund Lake | वैज्ञानिक सत्य  

रूपकुंड के रहस्य को समझने का प्रयास काफी लम्बे समय से किया जा रहा है, किन्तु अभी तक मिले साक्ष्यों तथा वहां से सम्बंधित किदवंतियों के मध्य कोई वैज्ञानिक सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाया है। 

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Scientific facts about Roop Kund Lake | वैज्ञानिक सत्य  

इससे सम्बंधित पहले अध्ययनों के अनुसार अनुमान लगाया गया, कि जो कंकाल रूपकुंड में मिले है। वह माध्यम आयु वर्ग के व्यस्क लोग थे। जिनकी औसत आयु 35 से 40 वर्ष के मध्य की थी। 

अनुमान के अनुसार वो सभी लोग सामान्य रूप से स्वस्थ थे एवं उनमे से कोई भी बच्चा नहीं था। सभी पूर्ण व्यस्क लोग थे। 

इस जगह से जुड़े रहस्यों की हालिया खोज से हमको कुछ अलग ही संकेत प्राप्त होते हैं। गए वर्ष एक प्राकृतिक विषयों के प्रकाशक समूह द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार ऐसा नहीं है। 

कथित तौर पर भारत, अमेरिका तथा  जर्मनी के 16 संस्थानों के 28 शोधकर्ताओं को शामिल करते हुए पांच साल के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष सामने आया था, कि पिछले सिद्धांतों में से कोई भी सत्य नहीं था।

वैज्ञानिकों ने कंकालों के आनुवंशिक आधार का विश्लेषण किया एवं  कार्बन डेटिंग का भी सहारा लिया। झील में मिले 38 शवों में, जिनमें 15 महिलाएं भी शामिल हैं, यह पाया गया कि उनमें से कुछ कंकाल 1,200 साल पुराने थे।

शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों के कंकाल मिले हैं। वह सभी आनुवंशिक रूप से एक दुसरे से पूरी तरह अलग थे। एक दिलचस्प बात यह है, कि उनकी मृत्यु के समय में लगभग 1000 वर्षों तक का अंतर हो सकता है। 

आनुवांशिक विश्लेषण से कुछ और भी दिलचस्प बात सामने आई जैसे, कि मृत लोग विविध आनुवंशिक पृष्ठभूमि के थे।  उनमें से कुछ वर्तमान दक्षिण एशियाई आबादी से संबंधित थे, तो कुछ अन्य भूमध्यसागरीय मूल के निवासी थे। 

Questions | रूपकुंड की वैज्ञानिक खोज एवं उससे उत्पन्न प्रश्न 

जहाँ विज्ञान की सहायता से हमको रूपकुंड के रहस्यों से जुड़े कई सारे सवालों के उत्तर मिलते है, वहीँ यह वैज्ञानिक आधार हमारे भीतर कुछ नए प्रश्नो को जन्म देता है। 

इन सभी नवीन प्रश्नो के उत्तर खोजने का प्रयास वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है। भविष्य में हो  प्राचीन झील से जुड़े हर प्रश्न का उत्तर हमें और आपको प्राप्त हो जाये। 

किंतु जब तक इसके रहस्यों से पूरी तरह पर्दा नहीं उठता तब तक यह झील अपने भीतर छिपे हज़ारों कंकालों की प्रचलित कथाओं के साथ सबको रोमांचित करती रहेगी। 

भारतीय समाज के इतिहास, विकास, भाषाओ, विविधताओं और उससे विभिन्न कलाओ पर पड़ने वाले प्रभाव को विस्तृत रूप से जानने के लिए भारतीय संस्कृति (Indian culture) पर जाये।

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