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पुखराज रत्न की धारण विधी, फायदे और गुणदोष

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पुखराज रत्न – Pukhraj Ratna

पुखराज रत्न हिंदी – आज बृहस्पति गृह को बलिष्ठ करने हेतु पुखराज रत्न (yellow sapphire) किसे पहनना चाहिए, पुखराज रत्न किस उंगली में पहने और साथ ही पुखराज रत्न के फायदे (yellow sapphire benefits) तथा पुखराज रत्न धारण करने की विधि (Pukhraj Dharan Karne Ki Vidhi) के अलावा पुखराज रत्न की पहचान भी जानेंगे तो चलिए शरू करते है –

Yellow Sapphire – पुखराज रत्न इन हिंदी

नवग्रहों के नवरत्नों मे से वृहस्पति का पुखराज रत्न (yellow sapphire stone) होता है । इसे ‘गुरु रत्न’ भी कहा जाता है । पुखराज सफ़ेद, पीला, गुलाबी, आसमानी, तथा नीले रंगों मे पाया जाता है । किन्तु वृहस्पति गृह के प्रतिनिधि रंग ‘पीला’ होने के कारण ‘पीला पुखराज’ ही इस गृह के लिए उपयुक्त और अनुकूल रत्न माना गया है । प्रायः पुखराज विश्व के अधिकांश देशों मे न्यूनाधिक्य पाया जाता है , परंतु सामान्यतः ब्राज़ील का पुखराज क्वालिटी मे सर्वोत्तम माना जाता है । वैसे भारत मे भी उत्तम किस्म का पुखराज पाया गया है ।

ज्योतिष के नवग्रहों मे एकमात्र प्रमुख ग्रह वृहस्पति को देवताओं का गुरु होने का कारण ‘गुरु’ कहा जाता है । यही वह मुख्य ग्रह है जिसके अनुकूल रहने पर जन्मकुंडली के अन्य पापी अथवा क्रूर ग्रहों का दुष्प्रभाव मनुष्य पर नहीं पड़ता है । अतयव योगी ज्योतिषी किसी भी जातक की कुंडली का अध्ययन करने से पूर्व उस कुंडली मे वृहस्पति की स्थिति ओर बलाबल पर सर्वप्रथम ध्यान देता है ।

वृहस्पति के इस प्रतिनिधि पुखराज रत्न (Pukhraj Ratna Hindi) को हिन्दी मे – पुखराज, पुष्यराज , पुखराज ; संस्कृत मे – पुष्यराज ; अँग्रेजी मे – टोपाज अथवा यलो सैफायर ; इजीप्शियन मे – टार्शिश ; फारसी मे – जर्द याकूत ; बर्मी मे – आउटफ़िया ; लैटिन मे – तोपजियों ; चीनी मे – सी लेंग स्याक ; पंजाबी मे – फोकज ; गुजराती मे – पीलूराज ; देवनागरी मे – पीत स्फेटिक माठी ; अरबी मे – याकूत अल अजरक और सीलोनी मे – रत्नी पुष्परगय के नाम से पहचाना व जाना जाता है ।

पुखराज रत्न की पहचान – Stone Yellow Sapphire

1. चौबीस घंटे तक पुखराज को दूध मे पड़ा रहने पर भी उसकी चमक मे कोई अंतर नही आए तो उसे असली जाने ।
2. जहरीले कीड़े ने जिस जगह पर काटा हो वहाँ पुखराज घिसकर लगाने से यदि जहर तुरंत उतार जाये तो पुखराज असली जाने
3. असली पुखराज पारदर्शी व स्निग्ध  होने के साथ हाथ मे लेने पर वजनदार प्रतीत होता है ।
4. गोबर से रगड़ने पर असली पुखराज की चमक मे वृद्धि हो जाती है ।
5. धूप मे सफ़ेद कपड़े पर रख देने से असली पुखराज मे से पीली आभा (किरणे) फूट पड़ती है ।
6. आग मे तपाने पर असली पुखराज तड़कता नहीं है साथ ही उसका रंग बदलकर एकदम सफ़ेद हो जाता है ।
7. असली पुखराज मे कोई न कोई रेशा अवश्य होता है चाहे वह छोटा-सा ही क्यों न हो ?

पुखराज रत्न धारण करने पर दोष

दोषयुक्त पुखराज कदापि धारण नहीं करना चाहिए । भले ही इसके बदले मे पुखराज का कोई उपरत्न ही धारण कर लें । पुखराज मे प्रायः निम्न दोष बताए गए है – प्रभाहीन , धारीदार , लाल छीटें , खरोचकर , चारी , सुषम , दूधक , जालक, अनरखी , श्याम बिन्दु , श्वेत बिन्दु, रक्तक  बिन्दु, गड्ढेदार , छीटेदार, खड़ी रेखा से युक्त , अपारदर्शी तथा रक्ताभ धब्बों से युक्त पुखराज दोषी होता है । इस प्रकार का पुखराज धारण करना अनिष्टकारी रहता है ।

पुखराज रत्न के फायदे – Benefits of Yellow Sapphire

वृहस्पति का प्रतिनिधि रत्न होने के कारण चिकना , चमकदार , पानीदार, पारदर्शी ओर अच्छे पीले रंग का पुखराज धारण करने से व्यापार तथा व्यवसाय मे वृद्धि होती है । यह अध्ययन तथा शिक्षा के क्षेत्र मे भी उन्नति का कारक माना गया है । वृहस्पति जीव अर्थात पुत्रकारक गृह होने के कारण इसे धारण करने से वंशवृद्धि होती है । पुत्र अथवा संतान की कामना के इच्छुक दम्पतियों को दोषरहित पीला पुखराज अवश्य ही धारण कर लेना चाहिए । यह भूत-प्रेत बाधा से रक्षा करता है । इसे धारण करने से धन-वैभव और ऐश्वर्य की सहज मे ही प्राप्ति होती है  ।

निर्बल वृहस्पति की स्थिति मे निर्दोष पुखराज धारण करना परम कल्याणकारी होता है । यह रत्न अविवाहित जातको (विशेषकर कन्याओं को) विवाह सुख, गृहिणियों को संतान सुख व पति सुख, दंपत्तियों को वैवाहिक जीवन मे सुख एवं व्यापारियों को अत्यधिक लाभ देता है । इसे धारण कर लेने से अनेकानेक प्रकार के शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक ओर दैवीय कष्टों से मुक्ति मिल जाती है ।

पुखराज रत्न से रोगोपचार – Yellow Sapphire Stones

पुखराज हड्डी का दर्द, काली खांसी , पीलिया , तिल्ली, एकांतरा ज्वर मे धारण करना लाभप्रद है । इसे कुष्ठ रोग व चर्म रोग नाशक माना गया है । इसके अलावा इस रत्न को सुख व संतोष प्रदाता, बल-वीर्य व नेत्र ज्योतिवर्धक माना गया है । आयुर्वेद मे इसको जठराग्नि बढ़ाने वाला , विष का प्रभाव नष्ट करने वाला, वीर्य पैदा करने वाला, बवासीर नाशक , बुद्धिवर्धक , वातरोग नाशक, और चेहरे की चमक मे वृद्धि करने वाला लिखा गया है ।

जवान तथा सुंदर युवतियाँ अपने सतीत्व को बचाने के लिए प्राचीन काल मे इसे अपने पास रखती थी क्योंकि इसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है । पेट मे वायु गोला की शिकायत अथवा पांडुरोग मे भी पुखराज धारण करना लाभकारी रहता है ।

पुखराज के उपरत्न

इन्हे पुखराज की अपेक्षाकृत ज्यादा वजन मे तथा अधिक समय तक धारण करने पर ही प्र्याप्त लाभ परिलक्षित होता है । पुखराज के उपरत्न इस प्रकार है – सुनैला (सुनहला ) , केरु, घीया , सोनल , केसरी, फिटकरी व पीला हकीक इत्यादि । इनमे से भी पीला हकीक तथा सुनैला ही सर्वाधिक प्रभावी पाये गए है ।

पुखराज रत्न किसे पहनना चाहिए

जन्मकुंडली मे वृहस्पति की शुभ भाव मे स्थिति होने पर प्रभाव मे वृद्धि हेतु और अशुभ स्थिति अथवा नीच राशिगत होने पर दोष निवारण हेतु पीला पुखराज धारण करना चाहिए । वृहस्पति की महादशा तथा अंतर्दशा मे भी इसे धारण अवश्य करना चाहिए । धनु, कर्क, मेष, वृश्चिक तथा मीन लग्न अथवा राशि वाले जातक भी इसे धारण करके लाभ उठा सकते हैं । यदि जन्मदिन गुरुवार ठठा पुष्य नक्षत्र हो अथवा जन्म नक्षत्र पुनर्वसु , विशाखा या पूर्वभाद्रपद हो तभी पुखराज धारण करने से लाभ होता है । जिनकी कुंडली मे वृहस्पति केन्द्र अथवा त्रिकोणस्थ अथवा इन स्तनों का स्वामी हो अथवा जन्मकुंडली मे गुरु लग्नेश या प्रधान गृह हो तो उन जातकों को निर्दोष व पीला पुखराज धारण करके अवश्य लाभ उठाना चाहिए ।

पुखराज रत्न धारण करने की विधि – Pukhraj Dharan Karne ki Vidhi

पुखराज रत्न (Pukhraj Ratna) को सोने की अंगूठी मे जड़वाकर तथा शुक्लपक्ष मे गुरुवार को प्रायः स्नान-ध्यान के पश्चात दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली मे धारण करना चाहिए । अंगूठी मे पुखराज इस प्रकार इस प्रकार से जड़वाएँ की रत्न का निचला सिरा खुला रहे तथा अंगुली से स्पर्श करता रहे । अंगूठी बनवाने के लिए कम से कम चार कैरट अथवा चार रत्ती के वजन अथवा उससे अधिक वजन का पारदर्शी , स्निग्ध तथा निर्दोष पुखराज लेना चाहिए ।

गुरुवार के दिन अथवा गुरुपुष्य नक्षत्र मे प्रायः सूर्योदय से ग्यारह बजे के मध्य पुखराज की अंगूठी बनवाणी चाहिए । तत्पश्चात अंगूठी को सर्वप्रथम गंगाजल से, फिर कच्चे दूध से तथा पुनः गंगाजल से धोकर वृहस्पति के मंत्र (ॐ बृं बृहस्पतये नमः ) अथवा (ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः ) का जाप करते हुए धारण करनी चाहिए । अंगूठी धारण करने के पश्चात ब्राह्मण को यथायोग्य दक्षिणा (पीला वस्त्र, चने की दाल, हल्दी, शक्कर, पीला पुष्प तथा गुरु यंत्र इत्यादि) का दान अवश्य देना चाहिए ।

पुखराज रत्न को गले में धारण करे – How To Wear Pukhraj Ratna

जो जातक अंगूठी धारण करने मे असुविधा महसूस करते हों उन्हे सोने के लॉकेट मे गुरु यंत्र के साथ पुखराज धारण कर लेना चाहिए । बल्कि सोने के गुरु यंत्र लॉकेट मे पुखराज धारण करने से जहां एक ओर सदैव रत्न व यंत्र पवित्र बना रहेगा वही नित्य स्नान के समय स्वतः ही रत्न स्नान भी होता रहेगा । अतएव अंगूठी की अपेक्षाकृत रत्न को लॉकेट मे जड़वाकर धारण करना श्रेयस्कर रेहता है ।

पुखराज की प्रभाव अवधि

अंगूठी अथवा लॉकेट मे जड़वाने के दिन से लेकर चार वर्ष तीन महीने और अट्ठारह दिनों तक पुखराज एक व्यक्ति के पास प्रभावशाली रेहता है । अतः इस अवधि के पश्चात रत्न को किसी दूसरे व्यक्ति को बेच देना चाहिए तथा स्वयं को पुनः दूसरे पुखराज की अंगूठी बनवाकर पूर्वोक्त विधिनुसार धारण कर लेनी चाहिए ।

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