Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

संपदा देवी की कथा

संपदा देवी की कथा | Sampada Dalvi Ki Katha

एक समय की बात है। राजा नल अपनी पत्नी दमयंती के साथ बड़े प्रेम से राज्य करता था। होली के अगले दिन एक ब्राह्मणी रानी के पास आई। उसने गले में पीला डोरा बाँधा था। रानी ने उससे डोरे के बारे में पूछा तो वह बोली- ‘डोरा पहनने से सुख-संपत्ति, अन्न-धन घर में आता है।’ रानी ने भी उससे डोरा माँगा। उसने रानी को विधिवत डोरा देकर कथा कही।

रानी के गले में डोरा बँधा देख राजा नल ने उसके बारे में पूछा। रानी ने सारी बात बता दी। राजा बोले- ‘तुम्हें किस चीज कीकमी है? इस डोरे को तोड़कर फेंक दो।’ रानी ने देवता का आशीर्वाद कहकर उसे तोड़ने से इंकार कर दिया। पर राजा ने डोरातोड़कर फेंक दिया। रानी बोली- ‘राजन्‌! यह आपने ठीक नहीं किया।’

उसी रात राजा के स्वप्न में दो स्त्रियाँ आईं। एक स्त्री बोली- ‘राजा! मैं यहाँ से जा रही हूँ।’ दूसरी स्त्री बोली- ‘राजा मैं तेरे घरआ रही हूँ।’ स्वप्न का यही क्रम 10-12 दिन तक चलता रहा। इससे राजा उदास रहने लगा। रानी ने उदासी का कारण पूछातो राजा ने स्वप्न की बात बता दी। रानी ने राजा से उन दोनों स्त्रियों का नाम पूछने को कहा।

तब राजा ने उनसे उनकेनाम पूछे तो जाने वाली स्त्री ने अपना नाम ‘लक्ष्मी’ तथा आने वाली स्त्री ने ‘दरिद्रता’ बताया। लक्ष्मी के जाते ही सब सोना-चाँदी मिट्टी हो गया। रानी सहायता के लिए अपनी सखियों के पास गई। पर उनको फटेहालदेख कोई भी उनसे नहीं बोला। दुःखी मन से राजा-रानी पाँच बरस के राजकुँवर के साथ जंगल में कंदमूल खाकर अपनेदिन बिताने लगे।

चलते-चलते राजकुँवर को भूख लगी तो रानी ने कहा- ‘यहाँ पास ही एक मालन रहती है। जो मुझे फूलोंको हार दे जाती थी। उससे थोड़ा छाछ-दही माँग लाओ।’ राजा मालन के घर गया। वह दही बिलो रही थी। राजा के माँगनेपर उसने कहा- ‘हमारे पास तो छाछ-दही कुछ भी नहीं है।’

राजा खाली हाथ लौट आया। आगे चलने पर एक विषधर ने कुँवर को डस लिया और राजकुमार का प्राणांत हो गया।विलाप करती रानी को राजा ने धैर्य बँधाया। अब वे दोनों आगे चले। राजा दो तीतर मार लाया। भूने हुए तीतर भी उड़ गए।उधर राजा स्नान कर धोती सुखा रहा था कि धोती उड़ गई। रानी ने अपनी धोती फाड़कर राजा को दी। वे भूखे-प्यासे हीआगे चल दिए। मार्ग में राजा के मित्र का घर था। वहाँ जाकर उसने मित्र को अपने आने की सूचना दी।

मित्र ने दोनों कोएक कमरे में ठहरवाया। वहाँ मित्र ने लोहे के औजार आदि रखे हुए थे। दैवयोग से वे सारे औजार धरती में समा गए। चोरी का दोष लगने के कारण वे दोनों रातो-रात वहाँ से भाग गए। आगेचलकर राजा की बहन का घर आया। बहन ने एक पुराने महल में उनके रहने की व्यवस्था की। सोने के थाल में उन्हेंभोजन भेजा, पर थाली मिट्टी में बदल गई।

राजा बड़ा लज्जित हुआ। थाल को वहीं गाड़कर दोनों फिर चल पड़े। आगेचलकर एक साहूकार का घर आया। वह साहूकार राजा के राज्य में व्यापार करने के लिए जाता था। साहूकार ने भी राजाको ठहरने के लिए पुरानी हवेली में सारी व्यवस्था कर दी। पुरानी हवेली में साहूकार की लड़की का हीरों का हार लटकाहुआ था। पास ही दीवार पर एक मोर अंकित था। वह मोर ही हार निगलने लगा। यह देखकर राजा-रानी वहाँ से भी चलेगए।

अब रानी बोली- ‘किसी के घर जाने के बजाए जंगल में लकड़ी काट-बेचकर ही हम अपना पेट भर लेंगे।’ रानी की बात सेराजा सहमत हुआ। अतः वे एक सूखे बगीचे में जाकर रहने लगे। राजा-रानी के बाग में जाते ही बाग हरा-भरा हो गया।बाग का मालिक भी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने देखा वहाँ एक स्त्री-पुरुष सो रहे थे। उन्हें जगाकर बाग के मालिक ने पूछा- ‘तुम कौन हो?’ राजा बोला- ‘मुसाफिर हैं. मजदूरी की खोज में इधर आए हैं। यदि तुम रखो तो यहीं हम मेहनत-मजदूरीकरके पेट पाल लेंगे।’ दोनों वहीं नौकरी करने लगे।

एक दिन बाग की मालकिन संपदा देवी की कथा सुन डोरा ले रही थी। रानी के पूछने पर उसने बताया कि यह संपदा देवीका डोरा है। रानी ने भी कथा सुनी। डोरा लिया। राजा ने फिर पत्नी से पूछा कि यह डोरा कैसा बाँधा है? तो रानी बोली- ‘यहवही डोरा है जिसे आपने एक बार तोड़कर फेंक दिया था। उसी के कारण संपदा देवी हम पर नाराज हैं।’ रानी फिर बोली- ‘यदि संपदा माँ सच्ची हैं तो फिर हमारे पहले के दिन लौट आएँगे।’

उसी रात राजा को पहले की तरह स्वप्न आया। एक स्त्री कह रही है- ‘मैं जा रही हूँ।’ दूसरी कह रही है- ‘राजा! मैं वापस आरही हूँ।’ राजा ने दोनों के नाम पूछे तो आने वाली ने अपना नाम ‘लक्ष्मी’ और जाने वाली ने ‘दरिद्रता’ बताया। राजा नेलक्ष्मी से पूछा अब जाओगी तो नहीं? लक्ष्मी बोली- यदि तुम्हारी पत्नी संपदाजी का डोरा लेकर कथा सुनती रहेगी तो मैंनहीं जाऊँगी।

यदि तुम डोरा तोड़ दोगे तो चली जाऊँगी। बाग की मालकिन जब वहाँ की रानी को हार देने जाती तो दमयंती हार गूँथकरदेती। हार देखकर रानी बड़ी प्रसन्न हुई। उसने पूछा कि हार किसने बनाया है तो मालन ने कहा- ‘कोई पति-पत्नी बाग मेंमजदूरी करते हैं। उन्होंने ही बनाया है।’ रानी ने मालन को दोनों परदेसियों के नाम पूछने को कहा। उन्होंने अपना नामनल-दमयंती बता दिया। मालन दोनों से क्षमायाचना करने लगी। राजा ने उससे कहा- ‘इसमें तुम्हारा क्या दोष है। हमारेदिन ही खराब थे।’

अब दोनों अपने राजमहलों की तरफ चले। राह में साहूकार का घर आया। वह साहूकार के पास गया। साहूकार ने नईहवेली में उनके ठहरने का प्रबंध किया तो राजा बोला- ‘मैं तो पुरानी हवेली में ही ठहरूँगा।’ वहाँ साहूकार ने देखा दीवार परचित्रित मोर नौलखे हार उगल रहा था। साहूकार ने राजा के पैर पकड़ लिए। राजा ने कहा- ‘दोष तुम्हारा नहीं। मेरे दिन हीबुरे थे।’

राजा आगे चलकर बहन के घर पहुँचा। बहन ने नए महल में ही रहने की जिद की। पैरों के नीचे की धरती खोदी तो हीरों सेजड़ित थाल वहाँ से निकल आया। राजा ने बहन को वह थाल भेंट स्वरूप दिया। राजा आगे चल मित्र के घर पहुँचे तो उसनेनए मकान में ठहरने की व्यवस्था की, पर राजा पुराने कमरे में ही ठहरा। वहीं मित्र के लोहे के औजार मिल गए। आगे चलेतो नदी किनारे जहाँ राजा की धोती उड़ गई थी वह एक वृक्ष से लटकी हुई थी। वहाँ नहा-धोकर धोती पहने राजा आगे चलातो देखा कि कुँवर खेल रहा है।

माँ-बाप को देखकर उसने उनके पैर छुए। नगर में पहुँचकर राजा की मालन दूर्बा लेकर आई तो राजा बोला- ‘आज दूर्बालेकर आ रही हो उस दिन छाछ के लिए मना कर दिया था।’ रानी ने राजा से कहा- ‘वह तो तुम्हारे बुरे दिनों का प्रभाव था।’ महलों में गए। रानी की सखियाँ धन-धान्य से भरे थाल लिए गीत गाती आईं। नौकर-चाकर सब पहले के समान ही आगए। संपदाजी का डोरा बाँधने के कारण ही यह सब फल प्राप्त हुआ। इसलिए सभी को श्रद्धापूर्वक माँ संपदाजी की पूजाकरनी चाहिए और स्त्रियों को कथा-पूजन कर डोरा धारण करना चाहिए।

संपदा देवी का पूजन

धन-धान्य की देवी संपदाजी का पूजन होली के दूसरे दिन किया जाता है। इस दिन स्त्रियाँ संपदा देवी का डोरा बाँधकरव्रत रखती हैं तथा कथा कहती-सुनती हैं। मिठाई युक्त भोजन से व्रत खोला जाता है। हाथ में बँधे डोरे को वैशाख माह मेंकिसी भी शुभ दिन शुभ घड़ी में खोल दिया जाता है। यह डोरा खोलते समय भी व्रत रखकर कथा कही-सुनी जाती है।

संपदा देवी का पूजन निम्नानुसार होता है

सर्वप्रथम पूजा की थाली में सारी पूजन सामग्री सजा लें।

संपदा देवी का डोरा लेकर इसमें सोलह गठानें लगाएँ।

(यह डोरा सोलह तार के सूत का बना होता है तथा इसमें सोलहगठानें भी लगाने का विधान है।)

गठानें लगाने के बाद डोरे को हल्दी में रंग लें।

तत्पश्चात चौकी पर रोली-चावल के साथ कलश स्थापित कर उस पर डोरा बाँध दें।

इसके बाद कथा कहें-सुनें।

कथा के पश्चात संपदा देवी का पूजन करें।

इसके बाद संपदा देवी का डोरा धारण करें।

पूजन के बाद सूर्य के अर्घ्य दें।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
1 item - 45,600.00