Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

सत्य साई बाबा जी

Uncategorized

राजू से सत्यसाईं तक का सफर

सत्य साईं बाबा के  बचपन का नाम सत्यनारायण राजू था। सत्य साईं का जन्म आन्ध्र प्रदेश के पुत्तपार्थी गांव में 23 नवंबर 1926 को हुआ था। वह श्री पेदू वेंकप्पाराजू एवं मां ईश्वराम्मा की संतानों में सत्यनारायणा एक भाई और दो बहनों के बाद सब से छोटे थे। उनके माता-पिता मजदूरी कर घर चलाते थे। कहा जाता है कि जिस क्षण उनका जन्म हुआ, उस समय घर में रखे सभी वायंत्र स्वत: बजने लगे और सर्प बिस्तर के नीचे से फन निकालकर छाया करता पाया गया।

यह भी जरूर पढ़े –

सत्य नारायण भगवान की पूजा का प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात शिशु का जन्म हुआ था, अतएव नवजात का नाम सत्य नारायण रखा गया। सत्यनारायण ने अपने गांव पुत्तपार्थी में तीसरी क्लास तक पढ़ाई की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो बुक्कापटनम के स्कूल चले गए। आठ वर्ष की अल्प आयु से ही उन्होंने ने सुंदर भजनों की रचना शुरू की। चित्रावती के किनारे ऊंचे टीले पर स्थित इमली के वृक्ष से साथियों की मांग पर, विभिन्न प्रकार के फल व मिठाइयां सृजित करते थे। यह इमली का वृक्ष आज भी है।


खुद को किया साई बाबा का अवतार घोषित:

कहा जाता है कि 8 मार्च 1940 को जब वो कहीं जा रहे थे तो उनको एक बिच्छू ने डंक मार दिया। कई घंटे तक वो बेहोश पड़े रहे। उसके बाद के कुछ दिनों में उनके व्यक्तित्व में खासा बदलाव देखने को मिला। वो कभी हंसते, कभी रोते तो कभी गुमसुम हो जाते। उन्होंने संस्कृत में बोलना शुरू कर दिया जिसे वो जानते तक नहीं थे।डॉक्टरों ने सोचा उन्हें दौरा पड़ा है। उनके पिता ने उन्हें कई डॉक्टरों, संतों,  और ओझाओं से दिखाया, लेकिन कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। 23 मई 1940 को उनकी दिव्यता का लोगों को अहसास हुआ। सत्य साईं ने घर के सभी लोगों को बुलाया और चमत्कार दिखाने लगे। उनके पिता को लगा कि उनके बेटे पर किसी भूत की सवारी आ गई है। उन्होंने एक छड़ी ली और सत्यनारायण से पूछा कि कौन हो तुम? सत्यनारायण ने कहा ‘मैं शिव शक्ति स्वरूप, शिरडी साईं का अवतार हूं ।’ इस उदघोषणा के बाद उन्होंने मुट्ठी भर चमेली के फूलों को हवा में उछाल दिया, जिनसे धरती पर गिरते ही तेलुगू अक्षरों में ‘साईंबाबा ’ लिख गया।

शिरडी के साईं बाबा, सत्य साईं की पैदाइश से 8 साल पहले ही गुजर चुके थे। खुद को शिरडी साईं बाबा का अवतार घोषित करने के वक्त सत्य साईं की उम्र 14 वर्ष थी। बाद में उनके पास श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी। उन्होंने मद्रास और दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों की यात्रा की। उनके भक्तों की तादाद बढ़ गई। हर गुरुवार को उनके घर पर भजन होने लगा, जो बाद में रोजाना हो गया।

20 अक्टूबर 1940 को उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और घोषणा की कि भक्तों की पुकार उन्हें बुला रही है और उनका मुख्य कार्य उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। 1944 में सत्य साईं के एक भक्त ने उनके गांव के नजदीक उनके लिए एक मंदिर बनाया जो आज पुराने मंदिर के नाम से जाना जाता है। उन्होंने पुट्टापत्र्ती में ‘प्रशांति निलयम ’ आश्रम की स्थापना की, जिसका उद्घाटन बाबा के 25वें जन्म दिन पर 1950 में उन्हीं के द्वारा किया गया।

1957 में साईं बाबा उत्तर भारत के दौरे पर गए। 1963 में उन्हें कई बार दिल का दौरा पड़ा। ठीक होने पर उन्होंने एलान किया कि वो कर्नाटक प्रदेश में प्रेम साईं बाबा के रूप में पुन: अवतरित होंगे।

29 जून 1968 को उन्होंने अपनी पहली और एकमात्र विदेश यात्रा की। वो युगांडा गए जहां नैरोबी में उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैं यहां आपके दिल में प्यार और सद्भाव का दीप जलाने आया हूं, मैं किसी धर्म के लिए नहीं आया, किसी को भक्त बनाने नहीं आया, मैं तो प्यार का संदेश फैलाने आया हूं।

भारतीय प्रधानमंत्री लेते रहे हैं आशीर्वाद:

यह अलग बात है कि नरसिम्हाराव, अटलबिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और न जाने कितने ही भारत के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, नौकरशाह व नेता उसके पैर में अपना सिर नवाते रहे हैं। क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर व डांसर माइकल जैक्सन भी उनके शिष्य रहे हैं। लाखों भक्त उनके भभूत निकालने, सोने की जंजीर निकालने और ऐसे कई चमत्कारों की वजह से उन्हें अपना भगवान मानते रहे हैं।

कैसे-कैसे चमत्कार:

सत्य साईं बाबा उस वक्त ज़्यादा लोकप्रिय हुए जब उन्होंने तरह-तरह के चमत्कार दिखने शुरू किया- जैसे हाथ में अचानक सोने की चेन ले आना, अपने पेट से उल्टी के जरिए शिवलिंग उगलना, हवा से भभूत पैदा करना आदि। उनके चमत्कारों की बात फैलने लगी और हवा में हाथ घुमा कर विभूति या राख से लेकर बहुमूल्य आभूषण और कीमती घड़ियाँ प्रस्तुत करने की क्षमता के चर्चे होने लगे

वैसे-वैसे उनके भक्तों की संख्या भी बढ़ने लगी। लेकिन सन 1990 में सत्य सार्इं ने ढोंगी होने का आरोप लगने के बाद चमत्कार दिखाना बन्द कर दिया। बाद के वर्षों में देश विदेश में बसे उनके अनेक भक्तों ने दावा किया कि उनके घरों में सभी देवी देवताओं की मूर्तियों तथा चित्रों से विभूति, कुमकुम, शहद, रोली शिवलिंग प्रकट होते हैं, जिसे वह खुद के लिए सत्य साईं का आशीर्वाद मानते हैं।

सत्य साईं की शिक्षा:

इस समय विश्व के लगभग 167 जगहों पर सत्य साईं केंद्रों की स्थापना हो चुकी है। भारत के लगभग सभी प्रदेशों में साईं संगठन  हैं। सत्य साई का कहना है कि विभिन्न मतों को मानने वाले, अपने-अपने धर्म को मानते हुए, अच्छे मानव बन सके। साईं मिशन को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि बच्चों को बचपन से ऐसा वातावरण उपलब्ध हो, जिसमें उनको अच्छे संस्कार मिलें और पांच मानवीय मूल्यों, सत्य, धर्म, शान्ति, प्रेम और अहिंसा को अपने चरित्र में ढालते हुए वे अच्छे नागरिक बन सकें।

यह भी जरूर पढ़े –

निधन :

86 वर्षीय साईं बाबा को हृदय और सांस संबंधी तकलीफों के बाद 28 मार्च, 2011 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई। हालत नाजुक होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। लो ब्लड प्रेशर और यकृत बेकार होने से उनकी हालत और चिंताजनक हो गई थी। उनके शरीर के लगभग सभी अंगों पर दवाइयाँ बेअसर साबित होने लगी थीं। 24 अप्रैल, 2011 की सुबह 7:40 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00