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शास्त्रानुसार इन क्रियाओं को करने से शुभ रहेगा हर दिन

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शास्त्रानुसार इन क्रियाओं को करने से शुभ रहेगा हर दिन

प्रातः इष्ट स्मरण क्यों ?

दिन की शुरूआत mental peace  और मांगलिक घटनाओं के साथ हो, इसलिए  hindu dharm  में  प्रातः इष्ट स्मरण का विधान किया हैं। जिस प्रकार चित्र के पीछे चरित्र छिपा रहता है, उसी प्रकार नाम के साथ रूप और उससे संबंधित सद्गुणों की समूची कथा मानस पटल पर घूम जाती है। प्रातः काल मन शांत रहता है, इसलिए आदर्श नामों का स्मरण सुप्त शुभ संस्कारों को जाग्रत करता है। मन-मस्तिष्क पर पडी़ इष्ट-चरित्रों की छाप आने वाली क्रियाओं को जाने-अनजाने ऐसी दिशा देती हैं, जिसका लक्ष्य शुभ, सुख और शांति ही होता है।

ब्रहा मुहूर्त में निद्रा त्यागने के निम्नलिखित लाभ होते है-

-आलस्य, सुस्ती, तंद्रा नष्ट होती है।

-शरीर में नवशक्ति का संचार होता है।

-पूरे दिन शरीर चुस्त-दुरूस्त रहता है।

-अधिक परिश्रम करने पर भी शरीर नही थकता है।

-शुद्व, स्वच्छ एवं प्राणदायी वायु शरीर में संचरण करके रक्त को शुद्व बनाती है और शरीर में लालकण की वृद्वि करती है।

-सारा दिन मन प्रसन्न व प्रफुलित रहता है।

-कार्य क्षमता में वृद्वि होती है जिससे शरीर की निराधक शक्ति अधिक प्रबल होती है।

-स्मरण शक्ति तीव्र और बुद्वि कुशाग्र होती है।

-शरीर की सभी क्रियाएं सामान्य रूप् से चलती है।

-प्रत्येक कार्य में मन लगता है। मन-मस्तिष्क विचलित नहीं होते।

– नकारात्मक विचारो का नाश और सकारात्मक विचारों का उद्भव इसी मुहूर्त मे होता हैं।

इस संदर्भ मे कहा गया है

वर्ण कीर्ति मतिं लक्ष्मी स्वास्थ्यमायुश्च विदति।

ब्रहो मुहूर्त संजाग्रछिंयं वा पंकजं यथा।।

अर्थात् ब्रह्म मुहूर्त में निद्रा त्याग करने से सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्वि, स्वास्थ्य व आयु की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति का शरीर भी कमल पुष्प् की भांति सुंदर व प्रफल्लित हो जाता है।

इसके अतिरिक्त प्रातः काल की हवा में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा सर्वाधिक होती है। हमारा प्राण ऑक्सीजन से ही है और यही सांस द्वारा शरीर में जाकर प्रत्येक अंग-प्रत्यंग का पोषण करता है।

प्रातःकाल कर-दर्शन क्यों ?

प्रातः काल अपने इष्टदेव का स्मरण करने के बाद उन्हें दोनो हाथ से प्रणाम कर दोनों की हथेलियों का दर्शन करते हुए निम्न श्लोक बोले-

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।

करमूले तु गोविन्दः प्रभाते कर दर्शनाम्।।

हाथों के अग्र भाग में  lakshmi , मध्य में saraswatiऔर मूल भाग में स्वयं lord krishna विराजमान रहते हैं।  अतएव इस श्लोक को पढतें हुए हाथों के दर्शन करें। दोनों हाथों को कर्मो का प्रतीक माना गया है। कर्मों को समपन्न करने में  lakshmi  और saraswati  अर्थात् धन और बुद्वि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। lord Vishnuसृष्टि के पालनकर्ता है। जीवन में धन, ज्ञान और ईश्वरीय अनुकंपा का जो महत्त्व है, उससे इंकार नहीं किया जा सकता। अतः कर-दर्शन से इन तीनों प्रकार के लाभों की प्राप्ति होती हैं।

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शुभ दर्शन का विधान क्यों ?

प्रातः काल जागने के बाद तीसरी क्रिया शुभ दर्शन की है। शुभ mantra से ही शुभ का जागरण होता है। जो मनुष्य सवेरे जागने के बाद सधवा स्त्री, वेदपाठी पुरूष, cow , यज्ञाग्नि, ब्राह्मण, विद्वान, शिशु के दर्शन करता है, वह संकटों से बचा रहता है। इनके दर्शन शुभ कहे गए हैं।

अर्ध(गौण) स्नान क्यों ?

स्नान न करना hindu dharm की  दृष्टि से बडा़ दोष है परंतु कभी-कभी शारीरिक अस्वस्थता, प्रवास या yatra trip में रहने या जल के अभाव में स्नान करना संभव नहीं हो पाता। ऐसे में मुख्य स्नान के स्थान पर अर्ध या गौण स्नान का काफी महत्त्व है। इसके अलावा बाहर से घर आने के बाद, भोजन  से पूर्व भोजन  के बाद, शोक होने के बाद, रोना-धोना करने के बाद मन अस्वस्थ होने पर भी अर्ध स्नान करना चाहिए।

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मुखशुद्वि क्यों ?

hindu dharm में मुखशुद्वि को आवश्यक माना गया है, किंतु केवल मुह धो लेने या कुल्ला करने से ही मुख की शुद्वि नहीं हो जाती, दांतों आदि की सफाई भी जरूरी है। प्रातः काल सोकर उठने पर महसूस होता है कि जिह्म पर कुछ मैल सा जमा हुआ है। इससे मुख स्वाद बिगडा हुआ सा महसुस होता हैं। इस बिगडे़ हुए स्वाद वाले मुख से प्रभु की वंदना में मन नहीं लग सकता ।

जिह्म और दांतो का मैल साफ करने के लिए गूलर, नीम आदि की दातुन का उपयोग करना चाहिए। समस्त भारतवासी, विशेषकर हिंदू लोग दातुन करने के लाभ जानते हैं।

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