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सोमवार व्रत कथा क्या है: महत्व और विधि -Somvar vrat katha Kya Hai: Mathav Aur Vidhi
Somvar Vrat Katha-सोमवार व्रत कथा एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है जो हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह व्रत हर सोमवार को किया जाता है और इसे करने से भगवान शिव की कृपा मिलती है। इस व्रत के दौरान भक्त भगवान शिव की पूजा करते हैं और उन्हें अर्घ्य देते हैं।
सोमवार व्रत कथा के अनुसार, एक बार पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि उन्हें कैसे पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव ने उन्हें सोमवार का व्रत रखने की सलाह दी। इस व्रत के द्वारा, भक्त अपने दुःखों से मुक्त होते हैं और उन्हें शिव की कृपा प्राप्त होती है।
धार्मिक महत्व
सोमवार व्रत का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है और उसे भगवान शिव की कृपा मिलती है। यह व्रत शिव जी की पूजा करने के लिए किया जाता है और इससे उनकी कृपा प्राप्त होती है।
सोमवार व्रत कथा कैसे किया जाता है -Somvar vrat katha Kese Kiya Jata Hai ?
सोमवार व्रत कथा क्या है-Somvar vrat katha
किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे। इतना सब कुछ संपन्न होने के बाद भी वह व्यापारी बहुत दुःखी था, क्योंकि उसका कोई पुत्र नहीं था। जिस कारण अपने मृत्यु के पश्चात् व्यापार के उत्तराधिकारी की चिंता उसे हमेशा सताती रहती थी।
पुत्र प्राप्ति की इच्छा से व्यापरी प्रत्येक सोमवार भगवान् शिव की व्रत-पूजा किया करता था और शाम के समय शिव मंदिर में जाकर शिवजी के सामने घी का दीपक जलाया करता था। उसकी भक्ति देखकर माँ पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया।
भगवान शिव बोले: इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। जो प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।
शिवजी द्वारा समझाने के बावजूद माँ पार्वती नहीं मानी और उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ति हेतु वे शिवजी से बार-बार अनुरोध करती रही। अंततः माता के आग्रह को देखकर भगवान भोलेनाथ को उस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देना पड़ा।
वरदान देने के पश्चात् भोलेनाथ माँ पार्वती से बोले: आपके आग्रह पर मैंने पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दे दिया परन्तु इसका यह पुत्र 16 वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा। उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी के स्वप्न में आए और उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की भी बात बताई।
भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार के दिन भगवान शिव का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीनों के बाद उसके घर एक अति सुन्दर बालक ने जन्म लिया, और घर में खुशियां ही खुशियां भर गई।
बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया परन्तु व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प-आयु के रहस्य का पता था। जब पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने उसे उसके मामा के साथ पढ़ने के लिए वाराणसी भेज दिया। लड़का अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति हेतु चल दिया। रास्ते में जहाँ भी मामा-भांजे विश्राम हेतु रुकते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते।
लम्बी यात्रा के बाद मामा-भांजे एक नगर में पहुंचे। उस दिन नगर के राजा की कन्या का विवाह था, जिस कारण पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे भय था कि इस बात का पता चलने पर कहीं राजा विवाह से इनकार न कर दे।
इससे उसकी बदनामी भी होगी। जब वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूँ। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा।
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वर के पिता ने लड़के के मामा से इस सम्बन्ध में बात की। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया।
राजा ने बहुत सारा धन देकर राजकुमारी को विदा किया। शादी के बाद लड़का जब राजकुमारी से साथ लौट रहा था तो वह सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी के ओढ़नी पर लिख दिया: राजकुमारी, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी पढ़ने के लिए जा रहा हूँ और अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है।
जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा को जब ये सब बातें पता लगीं, तो उसने राजकुमारी को महल में ही रख लिया।
उधर लड़का अपने मामा के साथ वाराणसी पहुँच गया और गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब उसकी आयु 16 वर्ष की हुई तो उसने यज्ञ किया। यज्ञ के समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को वह अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही उसके प्राण-पखेड़ू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा मृत भांजे को देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे।
लड़के के मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वतीजी ने भी सुने।
माता पार्वती ने भगवान से कहा: प्राणनाथ, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।
भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर देखा तो भोलेनाथ, माता पार्वती से बोले: यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु पूरी हो गई है।
माँ पार्वती ने फिर भगवान शिव से निवेदन कर उस बालक को जीवन देने का आग्रह किया। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा।
शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुँचे, जहाँ उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा और उसने तुरंत ही लड़के और उसके मामा को पहचान लिया।
यज्ञ के समाप्त होने पर राजा मामा और लड़के को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र आदि देकर राजकुमारी के साथ विदा कर दिया।
इधर भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे परन्तु जैसे ही उसने बेटे के जीवित वापस लौटने का समाचार सुना तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। वह अपनी पत्नी और मित्रो के साथ नगर के द्वार पर पहुँचा।
अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा: हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। पुत्र की लम्बी आयु जानकार व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।
शिव भक्त होने तथा सोमवार का व्रत करने से व्यापारी की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं, इसी प्रकार जो भक्त सोमवार का विधिवत व्रत करते हैं और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
पूजा विधि
सोमवार व्रत को श्रद्धालु लोग बड़े ध्यान से करते हैं। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा विधि के अनुसार अनेक प्रकार की वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। सोमवार के दिन शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है और शिवजी को भोग लगाकर पूजा की जाती है। व्रत करने वाले लोग शिवलिंग के आगे बैठकर शिवजी की आराधना करते हैं।
व्रत के दौरान क्या करें?
सोमवार व्रत के दौरान श्रद्धालु लोग नियमित रूप से शिवजी की पूजा करते हैं। इसके अलावा वे शिवलिंग के आगे बैठकर मंत्र जप भी करते हैं। वे सोमवार के दिन नौ नारियल चढ़ाते हैं और शिवलिंग के आगे धूप जलाते हैं। वे व्रत के दौरान शिवजी के नाम का जाप करते हुए उन्हें अर्पण करते हैं।
सोमवार व्रत कथा का महत्व- Somvar vrat katha Ka Mahtav
धार्मिक महत्व
सोमवार व्रत कथा का धार्मिक महत्व बहुत उच्च है। इस व्रत के द्वारा भगवान शिव की कृपा प्राप्त की जाती है। इस व्रत को रखने से शिव भक्त को अपनी इच्छाओं की पूर्ति मिलती है। यह व्रत शिव जी के उत्सवों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
आर्थिक महत्व
सोमवार व्रत कथा का आर्थिक महत्व भी है। इस व्रत को रखने से लोगों को धन, समृद्धि और सफलता मिलती है। यह व्रत व्यापार में भी लोगों को लाभ देता है। व्यापारी इस व्रत को रखने से अपने कारोबार को आगे बढ़ाने में सफल होते हैं।
स्वास्थ्य महत्व
सोमवार व्रत कथा का स्वास्थ्य महत्व भी है। इस व्रत को रखने से लोगों को शांति और सुख मिलता है। यह व्रत लोगों को तनाव से मुक्त करता है और मानसिक चंगा रखने में मदद करता है। सोमवार को शिव जी की पूजा करने से लोगों को दिल की बीमारियों से भी राहत मिलती है।
व्रत के फल
सोमवार व्रत करने से श्रद्धालु लोगों को बड़े फल मिलते हैं। इस व्रत से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख शांति आती है। इस व्रत से श्रद्धालु लोगों के सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें निरोगी जीवन मिलता है।