भारत की भूमि रहस्य एवं रोमांच की भूमि है। यही कारण है, कि समस्त देशो से लोग भारत भ्रमण के लिए आकर्षित होते हैं।
भारत के समृद्ध इतिहास ने कई राजवंशों को देखा है, तथा उनको पनपते, बिखरते एवं उनका पतन होते देखा है। इन राजवंशों की प्रेम, विरह शत्रुता से जुड़ी अनेकों कहानियां भारत के इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं।
भारत के विशाल आकार, सांस्कृतिक भिन्नताओं, पौराणिक कथाओं के कारण यह स्वाभाविक रूप से विचित्र कथाओं का देश बन जाता है।
भारतीय ऐतिहासिक स्थलों की श्रंखला में एक नाम शनिवार वाड़ा (Shaniwar Wada) भी है। इसकी कहानियां पुणे आने वाले हर पर्यटक को अपनी और आकर्षित करती हैं।
कुछ कहानियाँ लोगों द्वारा फैलाई गयी अफवाहों से पैदा होती हैं या कुछ उनकी कल्पना का परिणाम भी होती हैं। यह कहानियां लोगों के भीतर उत्सुकता को बढाती है।
भारतीय राजवंशों द्वारा बनाये गए किले अपने भीतर अनेकों कहानियों को छिपाये हुए सर उठाए खड़े हैं। इनसे जुडी कहानियां लोगों के भीतर इनको जानने के लिए कौतुहूल उत्पन्न करती हैं।
शनिवार वाड़ा भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर में स्थित है। पेशवाओं द्वारा निर्मित यह किला अपने भीतर रहस्य्मयी कहानियों का खज़ाना छिपाये हुए है।
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Shaniwar Wada meaning | शनिवार वाड़ा का अर्थ
इस किले को शनिवार वाडा नाम मिलने के पीछे की कहानी भी अत्यंत रोचक है। इस किले की औपचारिक नींव 30 जनवरी सन 1730 को शनिवार के दिन रखी गयी थी। जिसके कारण इसका नाम शनिवार वाड़ा पड़ा।
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History of Shaniwar Wada | शनिवार वाडा का इतिहास
शनिवार वाड़ा का किला 18वीं शताब्दी का एक विशाल भवन है, जिसे महान मराठा योद्धा पेशवा बाजीराव बल्लाल बालाजी भट्ट की निडरता एवं साहस के सम्मान में बनाया गया था।
शनिवार वाड़ा की इमारत का निर्माण सन 1730 में महाराष्ट्र के पुणे शहर में मुथा नदी के तट पर किया गया था। पुणे ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण से बाहर होने से पहले सन 1818 तक पेशवा के अधिकार में था।
इस किले के विषय में कहा जाता है, कि इस किले ने कई विनाश एवं त्रासदियों का मुकाबला किया है। पूर्णता विनाश से पहले, शनिवार वाड़ा किले के परिसर के अंदर कई खूबसूरत इमारतें थीं।
पेशवा बाजीराव की मृत्यु के पश्चात् उनके छोटे भाई ने मराठा साम्राज्य की कमान संभाली तथा पेशवा की गद्दी पर विराजमान हुए। इस किले के भीतर घटी घटनाओं ने इसको आज एक भूतिया स्थल के रूप में प्रसिद्ध कर दिया है।
शनिवार वाड़ा पुणे एवं भारतीय इतिहास एक बड़ा महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका निर्माण बाजीराव प्रथम ने करवाया था। शनिवार वाड़ा का किला 625 एकड़ जमीन पर बना हुआ है।
यह उनका एवं उनकी पत्नी काशीबाई का निवास हुआ करता था। यह किला पत्थरों एवं ईंटों से बना एक खूबसूरत स्थल है। इसके प्रवेश द्वार पर आपको बाजीराव की विशाल प्रतिमा दिखाई देगी।
शनिवार वाड़ा पेशवा साम्राज्य की रक्षा के लिए बनाया गया था, लेकिन जब आप इसके इतिहास को देखते हैं, तो यह विश्वासघात, लालच तथा हत्याओं से भरी जगह बन जाता है।
एक ओर जहाँ इसने बाजीराव प्रथम की दुखद मृत्यु देखी, तो वही बाजीराव एवं मस्तानी की अदभुत प्रेम कहानी का साक्षी भी बना।
एक ओर जहाँ आगे चलकर नानासाहेब की मृत्यु शनिवार वाड़ा में हुई। वही नानासाहेब के 3 पुत्रों का पतन भी यही हुआ। अनादि बाई का लालच और परिवार के खिलाफ एक परिवार का विश्वासघात, सब कुछ किले ने देखा।
18वीं शताब्दी में इस पर लगातार हमला किया गया था, जिसके फलस्वरूप अब आप केवल किले के नीचे के खंडहर ही देख सकते हैं। 1818 में पद्मावती युद्ध के अंत में किले पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था।
1818 के भीषण युद्ध में शनिवार वाड़ा किले का वह हिस्सा जो ईंटों से बना था, पूरी तरह नष्ट हो गया। अब केवल इसका केवल भूतल बच गया है ।
1828 में 27 फरवरी को एक आग लगी थी, इस अप्राकृतिक आपदा ने किले को राख कर दिया। बाद में अन्य शासकों द्वारा इसके जीर्णोद्धार का प्रयास किया गया।
इस अग्निकांड को समाप्त होने में 7 दिनों का समय लगा। इस आग ने किले के अंदर फर्नीचर, कपड़े, सजावटी सामान आदि सब कुछ नष्ट कर दिया।
आज शनिवार वाडा स्थानीय लोगों के लिए एक पर्यटन आकर्षण एवं पिकनिक स्थल बन गया है, लेकिन अतीत में इसने बहुत कुछ देखा है। किले के कुछ हिस्सों का रखरखाव अच्छी तरह से नहीं किया गया है।
भारत के उत्तराखंड में एक झील है, जो आश्चर्य जनक रूप से कंकालों से भरी है। जिसमे समय समय पर कंकाल सतह पर आते रहते है। यह झील रूपकुंड की रहस्य्मयी झील (Roop kund lake) के नाम से प्रसिद्द है।
Shaniwar Wada haunted story | शनिवार वाड़ा का डरावना सच
शनिवार वाड़ा को देखकर सबसे पहला विचार जो हम सभी के मन में आता है, वह इसके डरावने इतिहास और डरावनी कहानियों के पीछे की सच्चाई को लेकर उठता है।
ऐसा क्या हुआ कि जिस किले का निर्माण पेशवाओं को बहादुरी, साहस एवं राजशाही को सम्मानित करने के लिए किया गया था। उसका इतिहास आज तक प्रेतवाधित घटनाओं से भर गया।
क्यों यह विशाल किला रातों-रात रहस्यों के भंवर जाल में फंस गया? क्या कारण है, कि शनिवार वाड़ा का इतिहास विश्वासघात, दर्द तथा बदकिस्मती से जुड़ गया!
एक समय में यह किला सबसे शानदार स्थापत्य कला की पहचान के रूप में जाना जाता था। लेकिन वर्तमान में, यह पूर्णिमा की रात को अपनी असाधारण गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।
First Haunted story | पहली रहस्य कथा
स्थानीय कथाओं एवं जानकारियों के अनुसार यह महल नारायण राव के भूत द्वारा प्रेतवाधित है, जो बाजीराव के पोते थे तथा पांचवें पेशवा शासक थे।
किले की रहस्यमय गतिविधियों के पीछे चाचा रघुनाथ राव तथा चाची आनंदीबाई द्वारा सत्ता के लालच और विश्वासघात की कहानी है। माधवराव, विश्वासराव और नारायण राव पेशवा नानासाहेब के तीन पुत्र थे।
पानीपत की तीसरी लड़ाई में पेशवा नानासाहेब की मृत्यु के बाद, उनके सबसे बड़े पुत्र माधवराव पेशवा के रूप में गद्दी पर विराजमान हुए ।
लेकिन माधवराव की भी अपने भाई विश्वासराव की मृत्यु के बाद रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। इसके बाद नारायण राव 16 साल की उम्र में पेशवा बने।
जबकि उनके चाचा रघुनाथराव अपने युवा भतीजे की ओर से राज्य के प्रभारी नियुक्त हुए। रघुनाथराव की पत्नी आनंदीबाई को इस बात से बहुत तकलीफ हुई।
समय के साथ नारायण राव ने सत्ता की कमान अपने हाथ में लेते हुए अपने चाचा की शक्तियों पर नियंत्रण प्रारम्भ कर दिया। कुछ समय बाद उसने उनको घर में नज़रबंद करवा दिया।
नारायण राव ने सेनापति को आदेश के लिए एक पत्र लिखा जिसमे रघुनाथराव की मृत्यु का आदेश था, जिसको चाची आनंदीबाई ने बदल कर नारायण राव की हत्या के पत्र में बदल दिया।
शनिवार वाड़ा किले में उनके चाचा रघुनाथराव एवं चाची आनंदीबाई के आदेश पर सिपाहियों द्वारा उन्हें बेरहमी से मार डाला गया था। हत्या के बाद उनके मृतक शरीर को अंतिम संस्कार किए बिना ही नदी में फेंक दिया गया था।
हिन्दू मान्यता में ऐसा माना जाता है, कि अगर किसी का अंतिम संस्कार विधि-विधान के अनुसार नहीं किया जाता है, तो आत्मा मृत्यु के स्थान पर फंस जाती है।
कहा जाता है, कि नारायण राव की प्रताड़ित आत्मा मदद के लिए रोती है। जिसकी रात में रोने की आवाज सुनी जा सकती है।
इस किले के बारे में यह भी कहा जाता है, कि हर पूर्णिमा की रात नारायण राव की आत्मा इस किले में मदद की पुकार के साथ विचरण करती है और लगातार ‘काका मला वाचवा’ पुकारती है।
Another story | दूसरी रहस्य कथा
शनिवार वाड़ा के रहस्यों को साक्षी करने के विषय में एक और अत्यंत प्रसिद्ध कथा के अनुसार काशीबाई की बचपन की सबसे अच्छी दोस्त हुआ करती थी।
किसी कारणवश बाजीराव ने उसके पति को देशद्रोही होने के संदेह में मृत्यु दंड दिया। इससे रुष्ट काशीबाई की सहेली ने बाद इस किले को श्राप दिया था।
कहा जाता है, इस श्राप के कारण ही शनिवार वाडा हमेशा अपने ही लोगों द्वारा विश्वासघात और बेईमानी के बीच संघर्ष करता रहा ।
शनिवार वाड़ा के काले भूतिया इतिहास एवं घटनाओं की फेरहिस्त यहीं ख़तम नहीं होती है। इसके बाद भी यहाँ की दर्दनाक घटनाओं की कहानी जारी है।
Shaniwar Wada location | शनिवार वाड़ा पर्यटन
शनिवार वाड़ा भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर में स्थित है। पेशवाओं द्वारा निर्मित यह किला अपने भीतर रहस्य्मयी कहानियों का खज़ाना छिपाये हुए है।
शनिवार वाडा ने अपनी भव्यता एवं अद्भुत संरचना के कारण हमेशा पर्यटकों को आकर्षित किया है। इसके महल की लोकप्रियता अत्यंत बढ़ गई।
जब लोगों को शनिवार वाड़ा की डरावनी कहानी के बारे में पता चला कि यह महल भूतिया है,तो इस किले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आने लगे।
कुछ लोगों ने तो नारायण राव की दर्दनाक पुकार को सुनने के लिए नदी के किनारे अपने शिविर भी लगा दिए। इसकी प्रसिद्धि लगातार बढ़ने लगी।
यह खूबसूरत किला मराठा साम्राज्य के बारे में वीर गाथाओं को दर्शाता है। शनिवार वाड़ा परिसर के अंदर कई खूबसूरत बगीचे हैं, जो पर्यटकों को अपनी सुंदरता से आकर्षित करते हैं।
शनिवार वाड़ा परिसर में एक प्रभावशाली कमल-रुपी फव्वारा, हजारी करंजा (एक हजार विमानों का फव्वारा) भी था।
शनिवार वाड़ा किले में रात में लाइट एंड साउंड शो होता है, जिसमें मराठाओं की वीरता और साहस की कहानी दिखाई जाती है।
भले ही आप एक पर्यटक की तरह इस स्थान पर जाएँ किन्तु जब आप यहाँ से वापस आते हो तो इस किले में घटित दुखद घटनाओं की छाप अपने हृदय में लेकर वापस होते हो।
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