भारत में प्रचलित देवी-देवताओं की कहानियों का इतिहास वैदिक काल से भी पुरातन माना गया है। वेदों में सूर्य (Surya) को जगत की आत्मा कहा गया है। भारतीय मनीषियों ने सूर्य के महत्व को जानकार सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन माना है। भारत में पुरातन काल से सूर्य ग्रह को देवता का दर्जा प्राप्त है और सूर्योपासना को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। वेदों की ऋचाओं में अनेक स्थानों पर सूर्य देव (Surya Dev) की स्तुति की गई है। सूर्य देव का महत्व जानकर ही शास्त्रकारों ने सूर्य देव को अन्य सभी ग्रहों का राजा माना है। आदित्य लोक को सूर्य देव का निवास स्थान कहा जाता है। इनके चार हाथों में से दो में पद्म व् दो अन्य हाथ अभय और वरमुद्रा में हैं। सूर्य देव माता अदिति तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। छाया और संज्ञा सूर्य देव की पत्नियां हैं जिनसे उन्हें संतान प्राप्त हुई थी। इन संतानों में भगवान शनि (Shani) और यमराज (Yamraj) को मनुष्य जाति का न्यायाधिकारी माना जाता है। जहां मानव जीवन के सुख दुःख का सम्बन्ध शनि देव से माना गया वहीं दूसरी ओर शनि के छोटे भाई यमराज द्वारा आत्मा की मुक्ति के कारक हैं। इसके अलावा यमुना, तप्ति, अश्विनी तथा वैवस्वत मनु भी भगवान सूर्य की संतानें हैं। आगे चलकर मनु द्वारा ही सृष्टि की पुनर्स्थापना की कल्पना की गयी। इस प्रकार महृषि मनु को मानव जाति के प्रथम पुरुष में रूप मी जाना जाता है।
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सूर्य देवता की कहानी – Surya Dev Aur Sat Ghodo Ka Rahasya
कैसे हुई सूर्य देव की उत्पत्ति – Kaise Hui Surya Dev Ki Utpatti
मार्कंडेय पुराण से प्राप्त जानकारी के अनुसार यह सम्पूर्ण जगत प्रकाश से रहित था। उस समय कमलयोनि ब्रह्मा जी प्रकट हुए। उनके मुख से सूर्य का तेज रुपी सूक्ष्म रूप ॐ शब्द उच्चारित हुआ। तत्पश्चात ब्रह्मा जी के चार मुखों से चार वेद प्रकट हुए जो ॐ के तेज में एकाकार हो गए। इस वैदिक तेज को ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन व संहार के कारण कहे गए हैं।
सृष्टि रचना के समय ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि हुए जिनके पुत्र ऋषि कश्यप का विवाह अदिति से हुआ। अदिति भगवान् सूर्य को प्रस्सन करने हेतु कठोर तप किया। अदिति की साधना से प्रस्सन हो सूर्य देव ने उसकी इच्छा पूर्ति के लिए सुषुम्ना नाम की किरण से उसके गर्भ में प्रवेश किया। गर्भावस्था में भी अदिति चन्द्रायण जैसे कठिन व्रतों का पालन करती थी। ऋषि राज कश्यप गर्भस्थ शिशु को लेकर चिंचित हो उठे और उन्होंने क्रोधित हो कर अदिति से कहा “तुम इस तरह उपवास रख कर गर्भस्थ शिशु को क्यों मरना चाहती हो” यह सुन कर देवी अदिति ने गर्भ के बालक को उदर से बाहर कर दिया। यह जन्मजात शिशु दिव्य तेज से प्रज्वल्लित हो रहा था। भगवान् सूर्य शिशु रूप में उस गर्भ से प्रगट हुए। अदिति को मारिचम- अन्डम कहा जाने के कारण यह बालक मार्तंड नाम से प्रसिद्ध हुआ। ब्रह्मपुराण में अदिति के गर्भ से जन्मे सूर्य के अंश को विवस्वान कहा गया है।
सूर्य भगवान का रथ और सात घोड़ों का रहस्य – Surya Bhagwan Ka Rath Aur Sat Ghode
सूर्य भगवान (Surya Bhagwan) सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होते हैं। स्वयं सूर्य देव पीछे बैठते हैं और सारथी अरुण देव रथ चलाते हैं। अरुण देवता घोड़ों की कमान पकडे रहते हैं परन्तु उनका मुख सामने की ओर न होकर सूर्य देवता की ओर होता है जिससे वे सूर्य देव की उपासना करते रहते हैं। सूर्य देव के सात घोड़ों को सप्ताह के सात दिन भी माना जाता है और सात अलग अलग रंगों की रश्मियाँ भी जिनसे इंद्रधनुष का निर्माण होता है। सूर्य देव के रथ में एक ही पहिया है जिसकी बारह तिल्लियां बारह महीनो अर्थात एक वर्ष को दर्शाती हैं।
सूर्य देव के मुख्य मंदिर – Surya Dev Ke Mandir
भारत देश में विभिन्न स्थानों पर सूर्य देव के मंदिर (Temple) स्थापित किये गए हैं जिनमे सूर्य मंदिर (मोढ़ेरा), कोणार्क सूर्य मंदिर, मार्तंड सूर्य मंदिर, बेलाउर सूर्य मंदिर, झालरापाटन सूर्य मंदिर, औंगारी सूर्य मंदिर, उन्नाव का सूर्य मंदिर आदि प्रमुख हैं।