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माणिक्य रत्न – सूर्य को बल और उसका प्रतिनिधित्व करने वाला अनमोल रत्न

Vedic Astrology

माणिक्य रत्न – सूर्य को बल और उसका प्रतिनिधित्व करने वाला अनमोल रत्न

आज के परिवेश में आमतौर पर हर व्यक्ति रत्नों (Gems) के चमत्कारी प्रभावों का लाभ उठा कर अपने जीवन को समृ्द्धिशाली व खुशहाल बनाना चाहता है. रत्न भाग्योन्नति में शीघ्रातिशीघ्र अपना असर दिखाते हैं. रत्न समृ्द्धि व ऎश्वर्य के भी प्रतीक होते हैं. अत: इनकी चमक हर व्यक्ति को अपने मोहपाश में बाँध अपनी ओर आकर्षित करती है. ज्योतिष शास्त्र (Astrology) के साथ -साथ चिकित्सीय जगत में भी रत्नों के प्रभावशाली लाभों को मान्यता प्राप्त है. ऐसे में प्रमुख नवरत्नों की यदि बात करें तो हर रत्न की अपनी अलग विशेषता है.

नवरत्न जैसे माणिक्य (Ruby), हीरा (Dimond), पन्ना , मोती, मूंगा, गोमेद, पुखराज, नीमल, लहसुनिया सभी रत्नों में भिन्न-भिन्न गुण विद्यमान हैं व हर रत्न की अपनी अलग उपयोगिता है . परंतु यदि हम इनमें से माणिक्य की बात करें तो यह एक बेहद खूबसूरत व बहुमूल्य रत्न होने के साथ – साथ अनेकों प्रभावशाली गुणों से भी युक्त है . माणिक्य रत्न जड़ित आभूषण हर उम्र के लोगों के व्यक्तित्व में चार- चाँद तो लगाते ही हैं , साथ ही साथ भीड़ से अलग एक बेहतरीन व राजसी लुक भी प्रदान करते हैं . तो आइये इस संदर्भ में जानते हैं माणिक्य के बारे में कुछ खास बातें :-

माणिक्य को माणक भी कहा जाता है. यह एक अति मूल्यवान रत्न है. संस्कृ्त भाषा में इसे लोहित, पद्यराग, शोणरत्न , रविरत्न, शोणोपल, वसुरत्न, कुरुविंद आदि नामों से जाना जाता है. हिन्दी – पंजाबी में चुन्नी, उर्दू- फारसी में याकत व अंग्रेज़ी में ये रुबी के नाम से प्रचलित है. यह लाल रक्तकमल जैसे सिंदूरी, हल्के नीले आदि रंगों में पाया जाता है . असली व निर्दोष माणिक्य हल्की नीले आभा वाला होता है, जिससे लाल रंग की किरणें निकलती हैं .

वैदिक ज्योतिष के अनुसार माणिक्य रत्न की उपयोगिता :

वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य का प्रत्येक कुंडली में विशेष महत्व है तथा किसी कुंडली में सूर्य का बल, स्वभाव और स्थिति कुंडली से मिलने वाले शुभ या अशुभ परिणामों पर बहुत प्रभाव डाल सकती है। सूर्य के बल के बारे में चर्चा करें तो विभिन्न कुंडली में सूर्य का बल भिन्न भिन्न होता है जैसे किसी कुंडली में सूर्य बलवान होते हैं तो किसी में निर्बल जबकि किसी अन्य कुंडली में सूर्य का बल सामान्य हो सकता है।

किसी कुंडली में सूर्य के बल को निर्धारित करने के लिय बहुत से तथ्यों का पूर्ण निरीक्षण आवश्यक है हालांकि कुछ वैदिक ज्योतिषी (Vedic Astrologer) यह मानते हैं कि कुंडली में सूर्य की किसी राशि विशेष में स्थिति ही सूर्य के कुंडली में बल को निर्धारित करती है जबकि वास्तविकता में किसी भी ग्रह का किसी कुंडली में बल निर्धारित करने के लिए अनेक प्रकार के तथ्यों का अध्ययन करना आवश्यक है।

विभिन्न कारणों के चलते यदि सूर्य किसी कुंडली में निर्बल रह जाते हैं तो ऐसी स्थिति में सूर्य उस कुंडली तथा जातक के लिए अपनी सामान्य और विशिष्ट विशेषताओं के साथ जुड़े फल देने में पूर्णतया सक्षम नहीं रह पाते जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

ऐसी स्थिति में कुंडली में निर्बल सूर्य को ज्योतिष के कुछ उपायों के माध्यम से अतिरिक्त उर्जा प्रदान की जाती है जिससे सूर्य कुंडली में बलवान हो जायें तथा जातक को लाभ प्राप्त हो सकें। सूर्य को किसी कुंडली में अतिरिक्त उर्जा प्रदान करने के उपायों में से उत्तम उपाय है सूर्य का रत्न माणिक्य धारण करना जिसे धारण करने के पश्चात धारक को सूर्य के बलवान होने के कारण लाभ प्राप्त होने आरंभ हो जाते हैं।

माणिक्य रत्न सूर्य की उर्जा तरंगों को अपनी उपरी सतह से आकर्षित करके अपनी निचली सतह से धारक के शरीर में स्थानांतरित कर देता है जिसके चलते जातक के आभामंडल में सूर्य का प्रभाव पहले की तुलना में बलवान हो जाता है तथा इस प्रकार सूर्य अपना कार्य अधिक बलवान रूप से करना आरंभ कर देते हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि सूर्य का रत्न माणिक्य किसी कुंडली में सूर्य को केवल अतिरिक्त बल प्रदान कर सकता है तथा माणिक्य किसी कुंडली में सूर्य के शुभ या अशुभ स्वभाव पर कोई प्रभाव नहीं डालता।


इस प्रकार यदि किसी कुंडली में सूर्य शुभ हैं तो माणिक्य धारण करने से ऐसे शुभ सूर्य को अतिरिक्त बल प्राप्त हो जायेगा जिसके कारण जातक को सूर्य से प्राप्त होने वाले लाभ अधिक हो जायेंगें जबकि यही सूर्य यदि किसी जातक की कुंडली में अशुभ है तो सूर्य का रत्न धारण करने से ऐसे अशुभ सूर्य को और अधिक बल प्राप्त हो जायेगा जिसके चलते ऐसा अशुभ सूर्य जातक को और भी अधिक हानि पहुंचा सकता है।

इस लिए सूर्य का रत्न माणिक्य केवल उन जातकों को पहनना चाहिये जिनकी कुंडली में सूर्य शुभ रूप से कार्य कर रहे हैं तथा ऐसे जातकों को सूर्य का रत्न कदापि नहीं धारण करना चाहिये जिनकी कुंडली में सूर्य अशुभ रूप से कार्य कर रहें हैं।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार माणिक्य रत्न के प्रभाव !

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वैदिक ज्योतिष के अनुसार माणिक्य रत्न, सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है!  इस रत्न पर सूर्य का स्वामित्व है! यह लाल या हलके गुलाबी रंग का होता है! यह एक मुल्वान रत्न होता है, यदि जातक की कुंडली में सूर्य शुभ प्रभाव में होता है तो माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए, इसके धारण करने से धारण करता को अच्छे स्वास्थ्य के साथ साथ पद-प्रतिष्ठा, अधिकारीयों से लाभ प्राप्त होता है! शत्रु से सुरक्षा, ऋण मुक्ति, एवं आत्म स्वतंत्रता प्रदान होती है I

माणिक्य एक बहुमुल्य रत्न है और यह उच्च कोटि का मान-सम्मान एवम पद की प्राप्ति करवाता है! सत्ता और राजनीती से जुड़े लोगो को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि यह रत्न सत्ता धारियों को एक उचे पद तक पहुचाने में बहुत सहायता कर सकता है

माणिक्य धारण करने की विधि :

माणिक्य रत्न का शुद्धिकरण तथा प्राण प्रतिष्ठा करवाने के पश्चात आपको अगले चरण में अपने रत्न को धारण करना होता है। वैदिक ज्योतिष माणिक्य रत्न को रविवार सुबह धारण करने का परामर्श देता है। शनिवार की रात को अपने माणिक्य को गंगाजल अथवा कच्चे दूध से भरी कटोरी में रख दें तथा रविवार की प्रात: स्नान करने के पश्चात अपनी दैनिक प्रार्थना करें और उसके पश्चात अपने माणिक्य की अंगूठी को सामने रखकर सूर्य देव का ध्यान करें और सूर्य के मूल मंत्र या बीज मंत्र का 108 बार या 27 बार जाप करें, सूर्य देव से इस रत्न के माध्यम से शुभातिशुभ फल प्रदान करने की प्रार्थना करें तथा तत्पश्चात माणिक्य की अंगूठी को साफ वस्त्र से पोंछ कर धारण कर लें।

यदि आपने अपनी अंगूठी को कच्चे दूध में रखा हो तो इस पहले साफ पानी से धो लें तथा तत्पश्चात इसे साफ वस्त्र से पोंछ कर धारण कर लें। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि माणिक्य रत्न को पहली बार धारण करते समय इसे रविवार प्रात: धारण किया जाता है जबकि एक बार धारण करने के पश्चात अधिकतर स्थितियों में फिर इसे जीवन भर धारण किया जाता है

माणिक्‍य रत्न का प्रयोग : 

कम से कम 2.5 रत्‍ती माणिक्‍य धारण करना चाहिए। किन्‍तु यदि संभव हो तो 5 रत्‍ती ही धारण करें। इसे सोने की अंगूठी में जड़वाकर रविवार, सोमवार और बृहस्‍पतिवार के दिन धारण करना चाहिए। इस बात का अवश्‍य ध्‍यान रखें कि माणिक्‍य का स्‍पर्श आपकी त्‍वचा से अवश्‍य हो रहा हो।

माणिक्‍य को धारण करने से पूर्व इसे खरीद कर इसका शुद्धिकरण व जागृत करना बहुत आवश्‍यक है। शुद्धि‍करण के लिए इसे गाय के कच्‍चे दूध या फिर गंगा जल में कुछ समय रखकर, बाहर निकाल कर पानी से धोने के उपरांत फूल, तिलक और धूप दिखाना चाहिए। इसके बाद इसे धारण करते समय 7000 बार ऊं घृणि: सूर्याय नम: का उच्‍चारण कर धारण करना चाहिए।

माणिक्‍य रत्न का विकल्‍प (Alternate Gems )

माणिक्‍य बहुत मूल्‍यवान रत्‍न है। अत: सभी इसे खरीदकर पहने ऐसा संभव नही है। अत: कुछ ऐसे रत्‍न हैं जो माणिक्‍य से कम मूल्‍यवान है किन्‍तु माणिक्‍य के जैसे ही हैं। इसमें सबसे पहला स्‍थान स्‍पाइनेल का आता है जिसे हिन्‍दी में लालड़ी कहते हैं। दूसरा गारनेट रत्‍न है तीसरा जिरकॉन और चौथा एजेट हैं। माणिक्‍य न मिलने की स्थिति में या आर्थिक कारणों से माणिक्‍य न धारण कर पाने की स्‍थ‍िति में इन्‍हें धारण किया जा सकता है।

सावधानी

जिस तरह से ये रत्‍न लाभ पहुंचाते हैं उसी तरह से यदि अनजाने में भी गलत रत्‍न धारण कर लें तो बहुत तेजी से शरीर को नुकसान भी पहुंचाते हैं। इसलिए ध्‍यान रखना चाहिए कि माणिक्‍य और उसके किसी भी विकल्‍प के साथ हीरा, नीलम, लहसुनिया और गोमेद को नहीं पहनना चाहिए।

माणिक्य को वैदिक ज्योतिष द्वारा सुझाई गईं विधियों के माध्यम से ही धारण करने पर यह रत्न आपको अपने अधिक से अधिक शुभ लाभ प्रदान करने में सक्षम हो जाता है इसलिए यथासंभव प्रत्येक जातक को पूर्ण विधि के साथ ही अपना माणिक्य रत्न धारण करना चाहिये। माणिक्य को धारण करने वाले प्रत्येक जातक को अपने रत्न से निरंतर लाभ प्राप्त करते रहने के लिए इसकी नियमित रूप से सफाई भी करते रहना चाहिए जिससे आपका रत्न सदा आपको शुभ लाभ प्रदान करता रहे।

माणिक्य को सामान्यतया 3 से 6 मास की अवधि में एक बार अच्छी प्रकार से साफ कर लेना चाहिए क्योंकि ऐसा न करने पर आपके रत्न पर जमी धूल इसे सूर्य की उर्जा तरंगों को आपके शरीर में स्थानांतरित करने में बाधा उपस्थित कर सकती है जिससे आपका रत्न  पूर्ण रूप से आपको लाभ प्रदान नहीं कर पाता।.

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