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रूद्र मंत्र से शिव को करें प्रसन्न और जानें महत्व, लाभ और जाप विधि

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लेख सारिणी

Rudra Mantra – रूद्र मंत्र का महत्व और विशेषता

रुद्र मंत्र (Rudra Mantra) भगवान रूद्र को समर्पित है, जो भगवान शिव का ही रूप माने जाते हैं और व्यापक अर्थों में दोनों एक ही हैं। अर्थात सर्वशक्तिमान भगवान महादेव ही रुद्र हैं। रुद्र मंत्र (rudra mantra lyrics) के इष्ट देवता भगवान शिव ही हैं। रुद्र मंत्र की आवृत्तियों को बार-बार दोहराने अर्थात इनका जाप करने से भगवान शिव का पावन सानिध्य प्राप्त होता है और मंत्र जाप करने वाले की कोई भी इच्छा पूरी हो सकती है।

देवों के देव कहे जाने वाले महादेव शिव, जिन्हें रुद्र के नाम से भी जाना जाता है, रुद्र मंत्र (shiva rudra mantra) के जाप से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति भी कर देते हैं। भगवान शिव दुखों का नाश करने के लिए जब भी अपने संहारक रूप में आते हैं और उस काल में रौद्र रूप को रूप धारण करके सभी शत्रुओं को रुलाने से ही वे शिव रुद्र बन जाते हैं और इन्हीं की कृपा पाने के लिए रुद्र मंत्र का जाप करना चाहिए।

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रूद्र मंत्र का प्रभाव – Rudra Mantra Benefits

रुद्र मंत्र अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना गया है। इस मंत्र का जाप करने से भगवान शिव की कृपा मिलती है, जिसके परिणाम स्वरूप बड़ी से बड़ी बीमारी भी दूर हो सकती है और जो व्यक्ति काफी समय से विभिन्न प्रकार के कष्टों में घिरा हुआ हो, उसे भी रूद्र मंत्र का जाप करने से उन सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है और उसका जीवन धन्य हो जाता है। यही रूद्र मंत्र का विशेष प्रभाव है, जो इसको जपने वाले के साथ सदैव उपस्थित होता है।

रूद्र मंत्र का अर्थ – Rudra Mantra Lyrics

रुद्र मंत्र इस प्रकार है:

ॐ नमो भगवते रुद्राये।

मैं भगवान रुद्र अर्थात भगवान शिव को नमन करता हूं। उन्हें प्रणाम करता हूं।

रूद्र गायत्री मंत्र – Rudra Gayatri Mantra

ॐ सर्वेश्वराय विद्महे, शूलहस्ताय धीमहि | तन्नो रूद्र प्रचोदयात् ||

हे सर्वेश्वर भगवान आपके हाथ में त्रिशूल है और मेरा जीवन विभिन्न प्रकार के कष्टों और परेशानियों में घिरा हुआ है। ऐसे में आप मुझे अपनी कृपा में ले कर मेरे कष्टों को दूर कीजिए और मुझ पर कृपा कीजिए, क्योंकि मैं आपकी शरण में हूं।

शिव गायत्री मंत्र – Shiv Gaytrai Mantra

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि; तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

मैं महान भगवान आदर्श पुरुष भगवान महादेव के चरणों में प्रणाम करता हूं। हे प्रभु! आप मुझे बुद्धि दीजिए और ज्ञान के द्वारा मेरा मार्गदर्शन कीजिए।

शिव ध्यान मंत्र -Shiv Dhyan Mantra

करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

हे परम दयालु भगवान महादेव, कृपया मुझे पापों के लिए क्षमा करें। कृपया मेरे हाथों, पैरों, शरीर और कार्यों के माध्यम से किए गए पापों के लिए मुझे क्षमा करें। जानबूझकर या अनजाने में मेरे कान, आँख और दिमाग के माध्यम से किए गए सभी पापों को क्षमा करें।

भगवान शिव के रुद्र एकादश नाम ऐसा माना जाता है कि जीवन में सभी प्रकार की समस्याओं को दूर करने के लिए भगवान रुद्र के इन एकादश रूद्र नामों को जपना चाहिए, जिससे सभी प्रकार की समस्यायें दूर हो सकती हैं। शिव के ये एकादश रूद्र नाम इस प्रकार हैंं : शिवपुराण में एकादश रुद्र के नाम

शिव पुराण में एकादश रूद्र को कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भु, चण्ड, और भव के नाम से जाना जाता है।

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शैवागम के अनुसार एकादश रुद्रों के नाम

यदि भगवान शिव को समर्पित शैवागम की बात की जाए तो उसमें एकादश रुद्रों को शम्भु, पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, सदाशिव, शिव, हर, शर्व, कपाली, और भव के रूप में परिभाषित किया है।

महाभारत के आदिपर्व के अनुसार एकादश रुद्रों के नाम

सबसे बड़े महाकाव्य के रूप में गिना जाने वाला महाभारत अपने आदि पर्व के विभिन्न अध्यायों में एकादश रूद्र के नाम इस प्रकार समाहित किए हुए हैं:

मृगव्याध, सर्प, निऋति, अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, पिनाकी, दहन, ईश्वर, कपाली, स्थाणु, भव

पुराणों में एकादश रुद्रों के नाम – Ekadasa Rudra Mantra

एकादश रूद्र को विभिन्न पुराणों में भी स्थान मिला है और अगर मुख्य पुराणों की बात करें तो मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण और पद्म पुराण में भी एकादश रूद्र का वर्णन आता है। उनके अनुसार एकादश रुद्र निम्नलिखित हैं: अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, विरूपाक्ष, रैवत, हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, सावित्र, जयन्त, पिनाकी, अपराजित।

श्रीमद्भागवत में एकादश रुद्रों के नाम

इसके अतिरिक्त श्रीमद्भागवत में भी एक आदर्श मित्रों का वर्णन मिलता है जिन्हें मन्यु, मनु, महिनस, महान्, शिव, ऋतध्वज, उग्ररेता, भव, काल, वामदेव, और धृतव्रत आदि कहा गया है।

आइये अब इन एकादश रुद्रों के बारे में जानते हैं। वास्तव में भगवान रूद्र एक ही हैं, लेकिन उन्होंने संसार के कल्याण के लिए अनेक रुद्रों के रूप में भी जन्म लिया, जिसमें ग्यारह रूद्र प्रमुख हैं। ऐसा माना जाता है कि राक्षसों द्वारा जब देवताओं को हराकर उनका राज्य हड़प लिया गया, तो महर्षि कश्यप ने भगवान शिव से अर्थात भगवान रुद्र से अपने पुत्र के रूप में जन्म लेने हेतु कठिन तपस्या करके वरदान प्राप्त किया और महर्षि कश्यप तथा सुरभि की संतान के रूप में ग्यारह रूद्रों ने जन्म लिया, जिन्हें एकादश रुद्र कहा जाता है। उन्होंने राक्षसों को हराकर पुनः देवताओं को स्थापित कराया। शैवागम के अनुसार एकादश रुद्र निम्नलिखित हैं:

1) शम्भू:

ब्रह्मविष्णुमहेशानदेवदानवराक्षसाः ।
यस्मात्‌ प्रजज्ञिरे देवास्तं शम्भुं प्रणमाम्यहम्‌ ॥

अर्थात जिनसे ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश और सभी देव, दानव, राक्षस, आदि की उत्पत्ति हुई है और जिन से सभी देवों का भी जन्म हुआ है, ऐसे प्रभु परम पावन शंभू को मैं प्रणाम करता हूं।

भगवान शंभू रुद्र देव का साक्षात ब्रह्म स्वरूप हैं और वही जगत के कर्ता, भर्ता और हर्ता हैं अर्थात जगत का निर्माण करने वाले, उसका पालन पोषण करने वाले और उसका संहार करने वाले हैं। वास्तव में रूद्र तो एक ही हैं, जो समस्त लोगों को अपनी शक्ति और ऊर्जा से संचालित करते रहते हैं। वही शंभू हैं, जिन्हें शिव और महादेव आदि के नाम से भी जाना जाता है। साक्षात रूप में शंभू ही महादेव हैं जो हमारे अंतर्मन में सभी के भीतर स्थित है। उनके शंभू स्वरूप को विभिन्न वेदों एवं पुराणों में स्थान दिया गया है।

2) पिनाकी

क्षमारथसमारूढ़ं ब्रह्मसूत्रसमन्वितम्‌ ।
चतुर्वेदैश्च सहितं पिनाकिनमहं भजे ॥

अर्थात जो क्षमा रूपी रथ पर विराजमान हैं और ब्रह्मसूत्र से समन्वित हैं, चारों वेदों को धारण करते हैं, ऐसे पिनाकी भगवान का मैं ध्यान करता हूं।

पिनाकी के रूप में दूसरे मित्र को मान्यता दी गई है चारों वेदों के रूप में शक्ति स्वरुप भगवान बिना की रुद्र के रूप में समस्त कष्टों का शमन करते हैं। शैवागम के अनुसार दूसरे रूद्र पिनाकी हैं और चारों वेद इनके रूद्र स्वरूप ही हैं।

3) गिरीश

कैलासशिखरप्रोद्यन्मणिमण्डपमध्यमगः ।
गिरिशो गिरिजाप्राणवल्लभोऽस्तु सदामुदे ॥

अर्थात कैलाश पर्वत के सबसे ऊँचे शिखर पर मणि मंडप के बीच में स्थित माता पार्वती के प्रमाण प्रिय अर्थात प्राण वल्लभ भगवान गिरीश सदा हमें आनंद प्रदान करते रहें।

शैवागम के अनुसार तीसरे रुद्र भगवान गिरीश हैं, जो कैलाश पर निवास करते हैं और इस रूप में सभी को सुख और आनंद देते हैं। भगवान शिव को कैलाश अत्यंत प्रिय है और इसलिए विभिन्न प्रकार की लीलाऐं कैलाश पर्वत पर भगवान गिरीश द्वारा की जाती हैं।

4) स्थाणु

वामांगकृतसंवेशगिरिकन्यासुखावहम्‌ ।
स्थाणुं नमामि शिरसा सर्वदेवनमस्कृतम्‌ ॥

अपने वाम भाग में अर्थात वामांग में माता पार्वती को स्थान देकर सुख प्रदान करने वाले तथा संपूर्ण देव मंडल के प्राण स्वरूप भगवान स्थाणु को मैं सिर से नमन करता हूं।

शैवागम के अनुसार भगवान रुद्र का चौथा स्वरूप स्थाणु कहा जाता है। यही रुद्र आत्मलीन होने तथा समाधि और तप करने के कारण स्थाणु कहलाते हैं। भगवान स्थाणु के वाम भाग में माता पार्वती विराजमान रहती हैं।

भगवान रूद्र के चौथे स्वरूप में स्थाणु रूद्र ने ही संसार के कल्याण के लिए सभी देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और पर्वतराज हिमावन की पुत्री पार्वती, जोकि माता आदिशक्ति का स्वरूप हैं, उन्हें अपने वाम भाग में धर्म पत्नी के रूप में स्थान दिया और समस्त संसार का कल्याण किया।

5) भर्ग

चंद्रावतंसो जटिलस्रिणेत्रोभस्मपांडरः ।
हृदयस्थः सदाभूयाद् भर्गो भयविनाशनः ॥

चंद्र का आभूषण जटाओं को धारण करने वाले त्रिनेत्र, भस्म लगाने से उज्जवल हैं तथा भय का नाश करने वाले भर्ग सदैव ही हमारे हृदय में निवास करें।

भर्ग के रूप में भगवान रूद्र बहुत ही तेजवान हैं। इनका यही तेजोमय स्वरूप जीवन में समस्त प्रकार की पीड़ाओं का नाश करता है और समस्त प्रकार के भय का हरण करता है। यदि आप किसी भी बीमारी से त्रस्त हों अथवा आपके जीवन में कोई कष्ट हो तो आपको इसी भर्ग रूद्र स्वरूप की उपासना करनी चाहिए। भय विनाशक भर्ग रूद्र स्वरूप समस्त संसार का कल्याण करते हैं और जीवन के कष्टों को दूर करके जीवन को सही दिशा में आगे ले जाते हैं।

6) भव

योगीन्द्रनुतपादाब्जं द्वंद्वातीतं जनाश्रयम्‌ ।
वेदान्तकृतसंचारं भवं तं शरणं भजे ॥

जिनके चरण कमलों की वंदना स्वयं योगीन्द्र करते हैं और जो द्वंदो से अतीत तथा भक्तों के आश्रय स्थल हैं तथा जिनसे वेदांत का प्रादुर्भाव और संचार हुआ है, मैं उन भव की शरण ग्रहण करते हुए उन्हें भजता हूं।

भगवान रुद्र का यह भव रूप अत्यंत ही अनोखा है, क्योंकि इस रूप में रूद्र ज्ञान का बल, योग का बल और भगवत प्रेम के रूप में सभी प्रकार के आनंद प्रदान करते हैं। अर्थात इस स्वरूप की आराधना करने से व्यक्ति को ज्ञान रूपी बल की प्राप्ति होती है। उसे योग का ज्ञान मिलता है और भगवत प्रेम की गंगा में डुबकी लगाने का मौका मिलता है। इन्हें ही जगद्गुरु और वेदांत तथा योग का उपदेशक भी माना जाता है। वे ज्ञान तथा योग के बल पर सभी के आत्म कल्याण का मार्ग दिखाते हैं।

यदि किसी को योग, विद्या, भक्ति, ज्ञान, वेद, आदि का मूल और वास्तविक रहस्य जानना हो तो उसे भगवान भव की कृपा प्राप्त करना आवश्यक है। शिव पुराण के पूर्व भाग में बाइसवें अध्याय में तथा लिंग पुराण के सातवें अध्याय में भगवान रुद्र के भव स्वरूप के योगाचार्य स्वरूप का विशेष वर्णन किया गया है। ये सभी को यम, नियम, आसन, क्रियाकलाप, संयम आदि द्वारा जीवन में योग का प्रतिपादन भी करते हैं।

7) सदाशिव

ब्रह्मा भूत्वासृजँल्लोकं विष्णुर्भूत्वाथ पालयन्‌ ।
रुद्रो भूत्वाहरन्नंते गतिर्मेऽस्तु सदाशिवः ॥

जो ब्रह्मा के स्वरूप में सभी लोकों की सृष्टि और उत्पत्ति करते हैं, विष्णु के स्वरूप में सभी का पालन पोषण करते हैं और रुद्र के रूप में सभी का संहार करके मुक्ति प्रदान करते हैं, वह सदाशिव रूप में मुझे परम गति के रूप में प्राप्त हों।

शैवागम के अनुसार यही सदाशिव छठे रूद्र के रूप में जाने जाते हैं। भगवान सदाशिव का स्वरूप निराकार ब्रह्म के साकार रूप में जाना जाता है। यह सभी को वैभव प्रदान करते हैं, सुख, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति भी इन्हीं के माध्यम से होती है। ऐसा भी माना जाता है कि धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी और धन के संरक्षक कुबेर को भी धन भगवान सदाशिव ने ही प्रदान किया है। वह अपने दोनों हाथों से सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं, जिससे समस्त संसार का कल्याण होता है।

निराकार परब्रह्म का साकार चिन्मय स्वरूप ही सदाशिव के रूप में वंदनीय है। प्राचीन विद्वानों के द्वारा सदाशिव रूद्र को ही ईश्वर माना जाता है और उन्हीं के द्वारा महा शक्ति अंबिका की उत्पत्ति भी मानी जाती है।

8) शिव

गायत्री प्रतिपाद्यायाप्योंकारकृतसद्मने ।
कल्याणगुणधाम्नेऽस्तु शिवाय विहितानतिः ॥

जिन का प्रतिपादन स्वयं गायत्री करती हैं और ओंकार ही जिनका सदन अर्थात भवन है, ऐसे संसार के समस्त कल्याण और गुणों के परम धाम शिव को मेरा प्रणाम है।

शैवागम के अनुसार सातवें रुद्र शिव ही हैं। ‘वश कान्तौ’ धातु से ही शिव तत्व की उत्पत्ति हुई है। जिसको सभी चाहते हो, पसंद करते हो वही शिव हैं। आनंद, शांति, मोक्ष की प्राप्ति के लिए शिव आराधना ही सर्वोपरि है।

शिव रूप में रूद्र अत्यंत सुख देने वाले और कल्याणकारी माने जाते हैं। यदि जीवन में किसी को मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा हो, तो उसके लिए भगवान शिव रूद्र की ही आराधना सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह शक्ति के साथ शिव कहलाते हैं और शक्ति के बिना शव के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए शिव का यह रूप सभी को कल्याण और सुख देने वाला माना गया है।

9) हर

आशीविषाहार कृते देवौघप्रणतांघ्रये ।
पिनाकांकितहस्ताय हरायास्तु नमस्कृतः ॥

जो भुजंग का भूषण अर्थात सर्पों को आभूषण के रूप में धारण करते हैं, समस्त देवता जिनके चरणों में शीश झुकाते हैं और जिनकी विनती करते हैं, हाथों में पिनाक धारण करने वाले उन भगवान हर को मेरा नमस्कार है।

शैवागम के अनुसार एकादश रूद्र में आठवें स्वरूप को हर के नाम से ही जाना जाता है। इन्हें नागभूषण या सर्प भूषण भी कहा जाता है। यह संदेश देते हैं कि सभी प्रकार का कष्ट और उसका समाधान ईश्वर शरीर में ही विद्यमान हैं। सृष्टि का आदि और अंत करने वाले रूद्र को संहारक के रूप में नागों जैसी संहारक सामग्री धारण भी करनी पड़ती है। काल रूपी नागों को अपने शरीर पर धारण करने वाले भगवान हर ही कालातीत कहलाते हैं।

यही कालातीत भगवान हर अपनी शरण में आने वाले सभी भक्तों को तीनों प्रकार के तापों अर्थात आधिदैविक, अधिभौतिक और आध्यात्मिक पापों से मुक्ति प्रदान करते हैं और उनके जीवन में कष्टों का हरण करने के कारण ही इनका हर नाम सार्थक है। समस्त समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए पिनाक त्रिशूल को हाथ में धारण करने वाले हर रूद्र अपने भक्तों को अभय प्रदान करते हैं। विषैले नागों को आभूषण के रूप में धारण करने वाले हर स्वरूप रूद्र ही सभी प्रकार के सांसारिक, शारीरिक तथा मानसिक दुखों का हरण करते हैं। जिस प्रकार नागों पर इनका नियंत्रण होता है, उसी प्रकार काल पर भी इन हर का नियंत्रण होता है।

10) शर्व

तिसृणां च पुरां हन्ता कृतांतमदभंजनः ।
खड्गपाणिस्तीक्ष्णदंष्ट्रः शर्वाख्योऽस्तु मुदे मम ॥

त्रिपुरों का नाश करने से त्रिपुरहंता, मृत्यु के देवता यमराज के भी अभिमान का हनन करने वाले अर्थात भंजन करने वाले, खंगपाणि एवं तीक्ष्णदंष्ट्र शर्व मेरे लिए आनंददायक हों।

शैवागम के अनुसार नौवें रूद्र के रूप को शर्व के नाम से जाना जाता है। कालों के भी काल कहलाने वाले महाकाल हैं। शर्व रूद्र के रूप में काल को भी अपने नियंत्रण में रखते हैं।

सर्वदेवमय रथ पर सवार होने के बाद त्रिपुरों का संहार इन्होंने ही किया था इसी कारण इन्हें शर्व रूद्र और त्रिपुरारी भी कहा जाता है। यह शर्व रुद्र सभी जगह व्याप्त हैं, तीनों लोकों के अधिपति भी हैं और सभी में विद्यमान हैं। जीवन में प्राण घातक कष्ट आने पर शर्व रूद्र की उपासना सबसे अधिक फलदायक मानी जाती है

11) कपाली

दक्षाध्वरध्वंसकरः कोपयुक्तमुखाम्बुजः ।
शूलपाणिः सुखायास्तु कपाली मे ह्यहर्निशम्‌ ॥

प्रजापति दक्ष का यज्ञ विध्वंस करने वाले तथा और रौद्र रूप में क्रोधित मुख कमल वाले शूलपाणि कपाली हमें रात-दिन सुख प्रदान करें।

शैवागम के अनुसार दसवें रुद्र को कपाली के नाम से जाना जाता है। यह अपने साथ कपाल अर्थात खोपड़ी भी रखते हैं और मुंड माला धारण करते हैं।

ये संहारक शक्ति के प्रखर देवता है और पद्मपुराण के सृष्टि खंड के सत्रहवें अध्याय के अनुसार कपाली रूप में भगवान ने कपाल धारण करके यज्ञ में स्थान ग्रहण किया, जिसके कारण उन्हें यज्ञ के प्रवेश द्वार पर रोकने का प्रयास किया गया। इसके बाद भगवान कपाली रूद्र ने अपना प्रभाव दिखाया और उसके बाद सभी ने उनसे क्षमा याचना की और फिर कपाली रूद्र को ब्रह्मा के उत्तर में स्थान दिया गया। कपाली के रूप में ही भगवान रूद्र ने प्रजापति दक्ष के अभिमान को नष्ट करने के लिए उनके यज्ञ का विध्वंस किया था यह रूप उनकी क्रोधित मुद्रा को दर्शाता है।

ॐ नमः शिवाय मंत्र मैडिटेशन, Om Namah Shivaya Mantra Meditation For 10 Minutes

रूद्र मंत्र जाप करने की विधि

प्रत्येक मंत्र को जपने के दो तरीके हो सकते हैं। पहला सकाम तथा दूसरा निष्काम। यदि आप निष्काम अर्थात बिना किसी विशेष प्रयोजन के केवल प्रभु को प्रसन्न करने के उद्देश्य मंत्र जाप करना चाहते हैं, तो किसी खास नियम को मानने की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि यदि आप सकाम रूप से किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मंत्र जाप करना चाहते हैं, तो रूद्र मंत्र का जाप करने से पहले आपको कुछ बातें जान लेना आवश्यक है, जिनका पालन करने से आपको रूद्र मंत्र के जाप का पूरा फल मिल सकता है। मंत्र जाप करने की पूरी विधि इस प्रकार है:

  • इस मंत्र का जाप विशेष रूप से शुक्ल पक्ष के सोमवार को करना चाहिए और यदि उस दिन प्रदोष व्रत हो तो अति उत्तम माना गया है।
  • यदि आप चाहें, तो उस दिन उपवास भी रख सकते हैं।
  • यह मंत्र जाप सावन के महीने में सोमवार या किसी विशेष दिन से भी शुरू किया जा सकता है।
  • इस दिन स्वच्छ वस्त्र पहन कर स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्वाभिमुख होकर बैठें और मन में भगवान शिव का ध्यान करें।
  • सर्वप्रथम शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करें।
  • उसके बाद बेल पत्र, धतूरा, चंदन, धूप, फल, पुष्प, आदि श्रद्धा भाव से अर्पित करने चाहिए और भगवान शिव के मंत्र का जाप करने का संकल्प लेना चाहिए।
  • संकल्प यह लेना है कि आप रुद्र मंत्र का कितना जाप करेंगे और उसके पीछे आपका उद्देश्य क्या है।
  • उसके बाद आपको भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि भगवान रुद्र आपको रुद्र मंत्र का पाठ करने में सफलता प्रदान करें।
  • प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में जप करें और जो जप संख्या प्रथम दिन की है, किसी भी हालत में उस दिन से कम जाप किसी अन्य दिन ना करें। इस संख्या को निश्चित रखें, तो बेहतर होगा।
  • मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष की माला सर्वोत्तम मानी गई है।
  • जाप सदैव एक ही रूप में करें अर्थात या तो चुपचाप, या केवल होंठ हिलाकर बिना आवाज़ निकले या उच्च स्वर में। सबसे अच्छा मंत्र जप मौन रूप से किया जाता है।
  • मंत्र जपते समय जल्दबाजी ना करें। गर्दन जोर-जोर से न हिलायें या गा गाकर मंत्र जाप ना करें।
  • सोना, छींकना और लघु शंका करना निषेध माना गया है।
  • मंत्र जाप करते समय मंत्र का उच्चारण स्पष्ट हो, इस बात का पूरा ध्यान रखें।
  • जब भी आप मंत्र जाप कर चुकें, तो अपने आसन को प्रणाम करके ही उठें।
  • मुख्य तौर पर सवा लाख की संख्या में जाप करें।
  • आपका जाप पूरा होने के उपरांत दशांश हवन करें, तर्पण करें, मार्जन करें और उसके पश्चात ब्राह्मण भोजन कराएं।
  • यदि आप बिना किसी प्रयोजन के रूद्र मंत्र का जाप करना चाहते हैं, तो प्रतिदिन कम से कम 108 की संख्या में जाप अवश्य करें।
  • रूद्र मंत्र जाप करने से पहले भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें।
  • नारियल पानी, केतकी के पुष्प, कुमकुम, हल्दी, आदि शिवलिंग पर बिल्कुल ना चढ़ाएं।
  • प्रतिदिन जाप के उपरांत भगवान शिव की आरती अवश्य करें।

रूद्र मंत्र जाप करने के लाभ

  • रूद्र मंत्र का जाप मुख्य रूप से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त यदि व्यक्ति को किसी प्रकार का भय हो या वह किसी प्रकार की बीमारी से त्रस्त हो तो भी रूद्र मंत्र का जाप करना सबसे अधिक फ़ायदेमंद साबित होता है।
  • कठिन से कठिन बीमारी के इलाज के लिए रूद्र मंत्र का जाप सर्वोपरि माना गया है और इसके जाप से व्यक्ति को बीमारियों से मुक्ति मिल कर उसे उत्तम स्वास्थ्य लाभ होता है।
  • इसके अतिरिक्त जीवन ऊर्जा की कमी होने पर या जब आप काफी कमजोर महसूस करें, तब भी भगवान रुद्र के मंत्र का जाप कर सकते हैं, जिससे आपको शक्ति प्राप्त होगी और ना केवल आप मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी काफी मजबूत हो जाएंगे।
  • विभिन्न ग्रहों द्वारा जनित दोषों के निवारण के लिए भी और जीवन में सुख शांति की प्राप्ति के उद्देश्य से भी रूद्र मंत्र का जाप करना फ़ायदेमंद होता है। इसके जाप करने से आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होता है और नकारात्मकता समाप्त होती है तथा ग्रह जनित दोषों से भी मुक्ति मिलती है।
  • रुद्र मंत्र के जाप से मानसिक तनाव, अवसाद और उन्माद जैसी नकारात्मकतायें दूर होती हैं और शरीर तथा मन और आत्मा की शुद्धि होती है।
  • ज्योतिषीय उपाय के रूप में भी रूद्र मंत्र का जाप करना अत्यंत लाभकारी माना गया है।
  • यदि आप पवित्र भाव के साथ शिव गायत्री मंत्र का जाप करते हैं या फिर रूद्र गायत्री मंत्र को निश्चित संख्या में जपते हैं तो आपको कालसर्प दोष, राहु, केतु, शनि ग्रहों द्वारा जनित दुःपरिणामों से भी मुक्ति मिलती है और भगवान शिव के साथ-साथ माता गायत्री का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • जीवन में सुख, समृद्धि, मानसिक शांति, धन, वैभव, यश, समृद्धि और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए भी आपको और रूद्र मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए।

हम आशा करते हैं कि रुद्र मंत्र पर दिया गया हमारा यह लेख आपको पसंद आएगा और इस लेख के माध्यम से आप अपने जीवन में रूद्र मंत्र की महत्ता को समझकर उसे अपनाएंगे और उसके द्वारा जीवन को समृद्ध बनाएँगे।


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