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Tulsi Vivah | तुलसी एवं शालिग्राम विवाह

Culture, Festival, India

वैसे तो संसार की सभी सभ्यताओं में प्रकृति को पूजनीय माना जाता है, किंतु भारत में विशेष रूप से हिंदू धर्म में पौधों एवं पेड़ों को पवित्र देवी देवता का दर्जा दिया जाता है। 

इन्हीं में से एक है तुलसी का पौधा जो न केवल अपने औषधीय गुणों के कारण महत्वपूर्ण स्थान रखता है, अपितु उसकी नकारात्मक शक्तियों को दूर करने की शक्ति उसे पवित्रता का प्रतीक भी बनाती है। 

तुलसी को हिन्दू धर्म में अत्यंत पूजनीय पौधे के रूप में स्थान दिया गया है, क्योंकि मान्यता अनुसार उसे देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। 

दीपावली के त्यौहार की श्रृंखला के अंतर्गत ही तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) का आयोजन किया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार ग्यारस या देव उठनी एकादशी को तुलसी विवाह के साथ हिन्दू विवाह की शुरुआत हो जाती है। 

तुलसी जी एवं शालिग्राम का विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार चार माह से सोये हुए देव इसी दिन जागते है, तथा शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। 

तुलसी को लाल रंग की साड़ी या चुनरी पहनाई जाती हैं। उनकी शाखाओं को लाल-हरी चूड़ियाँ, कुमकुम एवं लाल बिंदी से सुशोभित किया जाता हैं। देवी का मंगलसूत्र सूखी हल्दी की जड़ से बनाया जाता है। 

महिलाएं भगवान कृष्ण की उपस्थिति मानकर फूलों एवं दूध से तुलसी की पूजा करती हैं। तुलसी विवाह हिंदुओं के लिए एक बहुत ही शुभ त्योहार है। 

इस त्यौहार को भारत में कटाई के मौसम का अंत एवं  विवाह के मौसम की शुरुआत माना जाता है। तुलसी विवाह में गन्ना, इमली एवं आंवला जैसी चीज़ों को शामिल किया जाता है।  

Myths about Tulsi Vivah | तुलसी विवाह का महत्व 

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तुलसी विवाह का उत्सव भारतीय हिन्दुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम के रूप में माता लक्ष्मी के तुलसी अवतार को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। 

हिन्दू कथाओं के अनुसार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने वर के रूप में प्राप्त करने के लिए वृंदा के रूप में जन्म लिया तथा भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से विवाह किया। 

इसलिए हिन्दू मान्यता में विश्वास करने वाले तुलसी विवाह में माता तुलसी का कन्यादान कर अपने कर्मों को सुधारने का प्रयास करते हैं, जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके। 

यदि किसी भी विवाह योग्य स्त्री पुरुष के विवाह में कुंडली अनुसार विवाह संस्कार में कोई बाधा एवं दोष हो तो कहा जाता है। इस दिन उनका भी बिना किसी रुकावट के विवाह संपन्न किया जा सकता है। 

तुलसी की पूजा द्वारा महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए आशीर्वाद लेती हैं। तुलसी के पत्ते का औषधीय महत्व भी है, क्योंकि यह सामान्य सर्दी सहित विभिन्न बीमारियों को ठीक करता है। 

हिन्दू मान्यता के अनुसार तुलसी के पौधे की एक या चार परिक्रमा करने से पापों के बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं। नव विवाहित महिलाएं अपने सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए माता तुलसी की आराधना करती हैं। 

तुलसी विवाह संपन्न करने को लेकर कुछ और मान्यताओं के अनुसार आपको निम्न लाभ प्राप्त होते है 

  • तुलसी विवाह से आपके जीवन से समस्त बाधाओं का अंत होता है, तथा आपके परिवार के सदस्यों को भी किसी भी प्रकार के दुर्भाग्य से बचाता है।
  • यदि आप अपने विवाह में विलम्ब की समस्या का  सामना कर रहे हैं, तो तुलसी विवाह पूजा करने से आपकी शादी की सारी मुश्किलें दूर हो सकती हैं।
  • तुलसी विवाह में माता तुलसी का कन्यादान करने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है।
  • तुलसी विवाह संपन्न करने से आपके घर परिवार में  सुख, समृद्धि एवं  धनागम होता  है।

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Story behind Tulsi Vivah | तुलसी विवाह की कथा 

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तुलसी विवाह को लेकर भारतीय हिन्दू समाज में बहुत सारी किद्वन्तियाँ एवं कथाएं प्रचलित है। अलग-अलग सम्प्रदायों एवं जगहों के लोग अपनी मान्यता एवं आस्था अनुसार तुलसी विवाह संपन्न करते है। 

एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक जालंधर नाम का दैत्य हुआ करता था। जिसका भय समस्त संसार ही नहीं बल्कि देवताओं में भी व्याप्त था। 

जालंधर को भगवान शिव का दैत्य पुत्र भी कहा जाता है, उसका विवाह वृंदा नामक स्त्री के साथ हुआ था। वृंदा अत्यंत पवित्र एवं पतिव्रता स्त्री थी। 

वृंदा की पवित्रता एवं पत्नी भक्ति के कारण जलंधर की शक्तियां और भी अधिक बढ़ गयी थी। वृंदा की पतिव्रता देवताओं को उसका विनाश करने में भी बाधक थी। 

ऐसे में सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना करने गए कि वह वृंदा की पवित्रता को भंग करके जालंधर की शक्तियों को कम करें, जिससे देवता उसका अंत कर सकें। 

देवताओं की प्रार्थना एवं वेदना सुनकर भगवान विष्णु ने उनकी मदद का आश्वासन दिया तथा जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास गए। 

वृंदा विष्णु जी के छद्म रूप को पहचान नहीं सकी एवं सारी रात्रि जालंधर रुपी विष्णु जी के साथ व्यतीत की जिससे उसकी पवित्रता भंग हो गयी। 

वृंदा की पवित्रता भंग होने के साथ ही जालंधर की शक्तियां क्षीण हो गयी, जिसके कारण देवता उसका अंत कर सके तथा समस्त संसार को उसके अत्याचार से मुक्त करा सके। 

भगवान विष्णु के धोखे से वृंदा की पवित्रता नष्ट करने से वह अत्यंत क्रोधित हो गयी। भगवान विष्णु भी अपने इस कृत्य पर अत्यंत दुखी एवं आत्म-ग्लानि से भर गए थे तथा वृंदा से क्षमा मांगना चाहते थे। 

अपने पति के विछोह में जब वृंदा ने भी अपने प्राण त्यागे तो भगवान ने उसकी आत्मा को तुलसी के पौधे में परिवर्तित कर दिया तथा अपने शालिग्राम के अवतार में उससे विवाह करके उसका उद्धार करने का वचन दिया। 

तभी से हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले तुलसी विवाह संपन्न करने लगे जिससे उनको भी माता वृंदा सामान भगवान् का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। 

हिन्दू धर्म के विश्वासियों द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है, दीपावली (Deewali ) जिसे भारत की पहचान के रूप में समस्त संसार में जाना जाता है। वही समस्त बंगाल में इसे काली पूजा (Kali Pooja) के रूप में मनाया जाता है।

इसकी शुरुआत धनतेरस (Dhanteras) के साथ होती है एवं पाचवे दिन भाई दूज (Bhai Dooj) से समाप्ति होती है।

Tulsi shaligram vivah preparations | तुलसी विवाह सामग्री 

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तुलसी जी एवं शालिग्राम का विवाह संस्कार भारत मे बिलकुल उसी प्रकार संपन्न कराया जाता है जैसे एक हिन्दू कन्या का विवाह संपन्न किया जाता है। 

इसके लिए वही सामग्री उपयोग में लायी जाती है जो एक हिन्दू विवाह संस्कार के लिए आवश्यक होती है। जैसे –

  • गमले में लगा तुलसी का पौधा
  • भगवान विष्णु,कृष्ण या शालिग्राम की एक तस्वीर अथवा  मूर्ति
  • लकड़ी की दो चौकी
  • लाल एवं  पीले कपड़े का टुकड़ा
  • गणेश पूजा के लिए – भगवान गणेश की मूर्ति, फूल, दूर्वा घास, जनेऊ, मौली, दक्षिणा, नारियल की भूसी, पान,सुपारी एवं फल 
  • कलश स्थापना के लिए – एक चांदी/तांबा/पीतल का कलश, आम के पत्ते, एक पूरा नारियल उसकी भूसी और मौली के साथ।
  • विवाह मंडप बनाने के लिए चार गन्ने या केले का तना 
  • तंबूलम – पान, सुपारी, नारियल, केला, दक्षिणा, मौसमी फल।
  • हल्दी, कुमकुम, रोली, अक्षत (कच्चा चावल हल्दी मिलाकर), जनेऊ।
  • माँ तुलसी के लिए श्रृंगार – मेहंदी, आलता, सिंदूर, बिंदी, चूड़ियाँ, साड़ी, हार आदि।
  • तुलसी मां के लिए एक लाल चुनरी
  • धूप, दीप, गंध (इत्र/इत्र), पुष्प और नैवेद्य
  • गठबंधन के लिए पीले कपड़े का एक टुकड़ा और एक लाल चुनरी।
  • कच्चे चावल आसन बनाने के लिए.
  • पानी
  • रंगोली
  • कपूर
  • जयमाला (वरमाला) के लिए दो माला
  • तुलसी माँ के लिए शगुन – इसकी भूसी, अक्षत, पान, सुपारी, दक्षिणा, इलायची, सूखे मेवे, फल, फूल आदि के साथ एक पूरा नारियल।

Wedding Ritual | तुलसी विवाह विधि 

तुलसी जी का विवाह हिन्दू धर्म  में आस्था रखने वालों के लिए उसी सामान हर्ष का विषय होता है, जिस प्रकार किसी भी परिवार में अपनी पुत्री का विवाह संपन्न कराने को लेकर होता है। 

सभी लोग दीवाली का जिस प्रकार साल भर इंतज़ार करते है। उसी प्रकार तुलसी विवाह करने तथा उसमे शामिल होना भी उनके लिए अत्यंत हर्ष का कारन होता है। 

सभी रीती-रिवाज़ उसी प्रकार पूरे किये जाते हैं, जैसे एक हिन्दू विवाह संपन्न किये जाते हैं, तो चलिए तुलसी विवाह की सम्पूर्ण प्रक्रिया या विधि को जानते हैं। 

अधिकतर सार्वजनिक रूप से तुलसी विवाह संस्कार मंदिरो में भी कराये जाते है। साथ ही लोग अपने घरों में पारिवारिक समारोह के रूप में भी तुलसी विवाह करते है। 

तुलसी विवाह के लिए जो व्यक्ति कन्यादान करता है, उसे उपवास रखना चाहिए तभी उसे तुलसी विवाह का सच्चा प्रतिफल प्राप्त हो पाता है। 

विवाह मंडप बनाने के लिए आप गन्नो की सहायता से उसे तैयार कर लीजिए, तत्पश्चात आप इसमें लकड़ी की दो चौकियों पर माता तुलसी एवं शालिग्राम को विधि – विधान से स्थापित कीजिये। 

मंडप को फूलों एवं रंगीन झालर से सजाएँ जैसे एक विवाह मंडप को तैयार किया जाता है। तुलसी जी को भी एक दुल्हन की तरह सजाया जाना चाहिए। 

आप एक कागज़ पर एक स्त्री का चेहरा बनाये तथा उस पर सभी श्रृंगार के समान लगा कर भी आप विवाह कन्या का प्रतिरूप बना सकते हैं। 

शालिग्राम के प्रतिरूप के लिए भगवान विष्णु की पीतल या मिट्टी की मूर्ति को स्थापित किया जा सकता है या शालिग्राम पत्थर को भी इसमें प्रयोग किया जा सकता है। 

विष्णु जी के स्वरूप को दूल्हे के समान तैयार किया जाना चाहिए, तथा विवाह भोज के लिए आप शाकाहारी भोजन को प्रसाद रूप में वितरित कर सकते है। 

विवाह संस्कार में सबसे पहले तुलसी जी एवं विष्णु जी के स्नान की प्रक्रिया संपन्न कराई जाती है। जोड़े के गठबंधन संस्कार के लिए पीले धागे का प्रयोग किया जाता। 

मंदिर में तुलसी विवाह का कार्यक्रम यदि मंदिर में आयोजित किया जा रहा हो तो पुजारी द्वारा विधि पूरी कराई जाती है। यदि घर में समारोह हो तो महिलाएं मिलकर पूजा संपन्न करती हैं। 

हिन्दू मान्यता के अनुसार तुलसी विवाह समारोह में केवल विधवाओं को भाग लेने की अनुमति नहीं है। विवाह समारोह के दौरान विवाह मंत्रों का जाप किया जाता है। 

शादी की रस्में पूरी होने के बाद नवविवाहितों को सिंदूर मिले चावल लगाए जाते है,जिससे उनके विवाहित जीवन में सुख -समृद्धि बनी रहे। 

पूजा के बाद तुलसी जी की आरती की जाती है और आरती के बाद पके हुए भोजन को फलों के साथ ‘भोग’ के रूप में परोसा जाता है। फिर प्रसाद को परिवार के सदस्यों एवं अन्य आगंतुकों के बीच साझा किया जाता है।

आप लोग भी इस वर्ष अपने यहाँ तुलसी विवाह संपन्न कराये और माता तुलसी का आशीर्वाद ले कर अपने परिवार में सुख समृद्धि को बढ़ाएं। 

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